Posts

Showing posts from December, 2024
Image
        फिर वही कहानी “ नारी व्यथा ”    आज फिर सुर्ख़ियों में पढ़कर एक नारी की व्यथा , व्यथित कर गयी मेरे मन को स्वतः नारी के दर्द में लिपटे ये शब्द संजीव हो उठे हैं... इस समाज के दम्भी पुरुष.... कभी किसी दीवार के पार उतर के निहारना, नारी और पुरुष के रिश्ते की उधडन नजर आएगी   तुम्हें, कलाइयों को कसके भींचता हुआ , खींचता है अपनी ओर बिस्तर पर रेंगते हुए , बदन को कुचलता है..... बेबसी और लाचारी में सिसकती है , दबी सहमी नारी की देह पर ठहाकों से लिखता है , अपने समय की कब्र में , एक कटुता का रिश्ता, अपने जख्मों को निहारती, लहुलुहान रिश्तों को जेहनी गुलामी का नाम देकर सहलाती है , पुचकारती है , दर्द में बिन आंसुओं के रोती है जिन्दगी भर उस गुलामी को सहेजती है , ऐ खुदा तेरी बनाई ये नारी ........ माथे की बिंदी से पाँव के बिछुओं तक  में, लिखती हैं पुरुष का नाम..... चूड़ियों का कहकशा , जर्द आँखों की जलन...
Image
  सिंदूर की लालिमा (अंतिम भाग ) "कहानी गुल की".......      गतांक से आगे.......                                         मेरा मन सिर्फ मनु को सोचता था हर पल सिर्फ मनु की ख़ुशी देखता था हर घड़ी अन्जान थी मैं उन दर्द की राहों से जिन राहों से मेरा प्यार चलकर मुझ तक आया था ! मेरे लिये तो मनु का प्यार और मेरा मनु पर अटूट विस्वास ही कभी भोर की निद्रा, साँझ का आलस और रात्रि का सूरज, तो कभी एक नायिका का प्रेमी, जो उसे हँसाता है, रिझाता है और इश्क़ फरमाता है, कभी दुनियाभर की समझदारी की बातें कर दुनिया को अपने समझदार होने की दिलासा देता हुआ मनु का साथ ही मेरे उन सभी क्षणों का साथी बन गया था ! लेकिन मनु काफी बिजी रहते थे उनके पास इतना समय नही होता था कि चौबीस घंटों में से दो पल मेरे लिए भी फिक्स कर देते लेकिन मैं कोई न कोई बहाना बनाकर उनके व्यस्त जीवन से समय छीन ही लेती थी.  स्क्रिप्ट लिखने में कभी कभी मुझे कुछ पॉइंट समझ नही आते तो मैं मनु की मदद ले लिया करती थी और फिर मनु इस...
Image
     सिन्दूर की लालिमा ( पहला हिस्सा ) " कहानी गुल की" मेरी कल्पनाये हर पल सोचतीं है, व्यथित हो विचरतीं हैं .....! बैचेन हो बदलतीं हैं, दम घुटने तक तेरी बाट जोहती हैं.......!! लेकिन फिर ना जाने क्यूँ, तुझ तक पहुँच विलीन हो जातीं है......! सारी आशाएं पल भर में सिमट के, दूर क्षितिज में समा जातीं है......!! एक नारी मन की भावनाएं उसकी कल्पनाओं में सजती और संवरती है और उन कपोल कल्पित बातों को एक कवि ही अपनी रचना में व्यक्त कर सकता है मेरे कवि मन ने भी कुछ ऐसा ही लिखने की सोची और फिर शुरू हुई कलम और कल्पना की सुरमई ताल !...........      लेकिन मन ना लगा तो मैं बाहर निकल आई कहने को बात कुछ विचित्र जरुर है लेकिन आज की शाम कुछ अटपटी सी है जैसे जेठ की भरी दोपहरी के बाद एक विचलित करती हुई उदास शाम हो जिसने नस नस में एक थकान सी भर दी हो ! बड़ा बेजान सा माहौल था तीखी धूप में हवा बौरा सी गयी थी बेरहम हवा रह रह कर उन बेजान पत्तियों को दूर धकेल रही थी जो अपनी डाल से टूटकर बेघर हो चुकी थी लम्बे शिरीष के दरख्त कतारों में खड़े अपनी हाजिरी दे रहे थे मैंने जी भरकर धूप...
Image
1-बूढ़े   बरगद   की   आँखें   नम   हैं गाँव - गाँव पे हुआ कहर है , होके खंडहर बसा शहर है l बूढा बरगद रोता घूमे , निर्जनता का अजब कहर है ll नीम की सिसकी विह्वल देखती , हुआ बेगाना अपनापन है l सूखेपन सी हरियाली में , सुन सूनेपन का खेल अजब है ll   ऋतुओं के मौसम की रानी , बरखा रिमझिम करे सलामी  l बरगद से पूंछे हैं सखियाँ, मेरा उड़नखटोला गया किधर है ll   सूखे बम्बा , सूखी नदियाँ , हुई कुएं की लुप्त लहर है l निर्जन बस्ती व्यथित खड़ी है, पहले सुख था अब जर्जर है ll   शहर गये कमाने जब से , गाँव लगे है पिछड़ा उनको l राह तके हैं बूढ़े बरगद, व्यथित पुकारे विजन डगर है ll   कैसी ये ईश्वर की लीला न्यारी , मन में मेरे प्रश्न प्रहर है  l तोड़ के बंधन माँ का आंचल, इनके लिए बस यही प्रथम है ll   घर - घर दिल हैं लगे सुलगने , बच्चों की किलकारी कम है l उजड़ गयी कैसे फुलवारी, पहले घर था अब बना खण्डहर है ll -----------------------------------------------------------  ...