1-बूढ़े बरगद की आँखें नम हैं
गाँव-गाँव पे हुआ
कहर है, होके खंडहर
बसा शहर है l
बूढा
बरगद रोता घूमे, निर्जनता
का अजब कहर है ll
नीम
की सिसकी विह्वल देखती, हुआ बेगाना अपनापन
है l
सूखेपन
सी हरियाली में, सुन सूनेपन
का खेल अजब है ll
ऋतुओं
के मौसम की रानी,
बरखा रिमझिम करे सलामी l
बरगद
से पूंछे हैं सखियाँ, मेरा
उड़नखटोला गया किधर है ll
सूखे
बम्बा, सूखी नदियाँ, हुई
कुएं की लुप्त लहर
है l
निर्जन
बस्ती व्यथित खड़ी है, पहले
सुख था अब जर्जर
है ll
शहर
गये कमाने जब से, गाँव
लगे है पिछड़ा उनको l
राह
तके हैं बूढ़े बरगद,
व्यथित पुकारे विजन डगर है ll
कैसी
ये ईश्वर की लीला न्यारी,
मन में मेरे प्रश्न
प्रहर है l
तोड़
के बंधन माँ का
आंचल, इनके लिए बस
यही प्रथम है ll
घर-घर दिल हैं
लगे सुलगने, बच्चों की किलकारी कम
है l
उजड़
गयी कैसे फुलवारी, पहले
घर था अब बना
खण्डहर है ll
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2- एक
अल्हड़ सी गोरी के
स्वप्न…
सूरज
को मैं बांधू राखी,
फिर घोलूं किरणों की शोखी l
बन
जाए मेरा भाई सूरज,
सज जाए मेरी भी
डोली ll
किरणें
चित्र उकेरें अँगना, है प्रीत तेरी
हमें बांधन निकली l
धरती
का मैं लहंगा सिला
लूँ, हरियाली की पहनूं चोली ll
अम्बर
की बन जाए ओढ़नी,
देखूं फिर नववर्ष रंगोली l
तारों
की मैं माला गूंथुं,
चाँद बने बिंदिया की
रोली ll
बने
चांदनी मेरी मेहँदी, सज
जाए मेरी भी हथेली l
नेह
झड़ी की आस लगाए,
सुलगी जाए मरी दूब
हठीली ll
सूरज
को मैं बांधू राखी,
फिर घोलूं किरणों की शोखी l
बन
जाए मेरा भाई सूरज,
सज जाए मेरी भी
डोली ll.....
केसर
रंग में मांग सजाऊं,
देख घटा की अलक
श्यामली l
प्रेम
रंग अनमोल पिया का, पहनूं
चूड़ी लाल हरी और
पीली ll
शीतल
मंद पवन सी डोले,
नीले अम्बर की वो भूरी
बदली l
आँगन
के तुलसी का बिरवा, झूम-झूम के करे ठिठोली ll
मन
वीणा ने तार बजाए,
जब प्रेमप्रीत मेरी बनी सहेली l
भोर
किरण ने चूम के
पलकें, सौगातों से भरी पोटली ll
बन
जाए मेरा भाई सूरज,
सज जाए मेरी भी
डोली.....
तू
दीपक मैं बाती प्रियतम,
बाँध पिटारी मैं तेरी हो
ली l
मैं
नदिया तू सागर प्रियतम,
दो नयनों से मैंने पी
ली ll
आतुर
सी कोई श्यामल बदरी,
यूं ही मुझको लगे
है भोली l
रोप
दिए है बिरवे दिल
के, हमने देख के
सौंधी माटी गीली ll
धुप
गुनगुनी गाये बन्दन, प्रेम
सुधा रस भर गई
झोली l
फिर
क्या डरना अंधे जग
से, जब ये जोगन
तेरी हो ली ll
बन
जाए मेरा भाई सूरज,
सज जाए मेरी भी
डोली......
..............................................................................
2- हां
मैं एक पुरुष हूँ
और अगर मैं एक
पुरुष हूँ !
हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !
तो
मुझे बनना भी चाहिए
उस पुरुष की तरह
जो
बेरोजगारी की भेंट चढ़कर,
अपने फर्ज़ निभाता रहे,
सुबह
से शाम तक रोजी
रोटी की जुगाड़ में
जैसे
हो कोई जादूगर, जिसके
हांथों में हो गरीबी
का हुनर
टूटी
चप्पलें और घिसते पेंट
की मोहरी से, झलके उसकी
गरीबी
और
ये नाक वाले नेता,
छीन सके हम गरीबों
के मुंह का निवाला
और
कह सकें “तुम मुझे वोट
दो मैं तुम्हे नौकरी
दूंगा”
जैसे
हम गरीब हों बिना
पेट के पुतले, पेट
हो जैसे मेरा एक
खुबसूरत डस्टबिन,
जिसमें
ये दंभी नाक वाले
दबंग नेता डाल सकें,
घटिया राशन और घटिया
चीनी
और
मैं मुस्करा कर कहूँगा ................“प्लीज़ यूज़
मी”.............
हां
मैं एक गरीब हूँ
! और अगर मैं एक
गरीब पुरुष हूँ !
तो
मुझे देखना होगा भ्रष्ट नेताओं
का छल कपट
सहना
होगा गरीबी नामक दर्द का
दंश, वो भी इसलिए
क्योंकि
भुखमरी गरीबों की बपौती है
जिन्होंने देखी नहीं थाली
में रोटी है
मेरी
तरह एक गरीब माँ
असहाय है और बेबस
है
भूख
से तडपते बच्चे को देखकर, उसकी
आँखों में आसूं हैं
ठंडी
चूल्हे की आग हैं,
खौलती आंतें हैं, सूखी छाती,
शून्य को तकती आँखें
हैं
खाली
पतीली में खडकते चम्मच
की असहनीय आवाज़ उसे सहनी
है
मैंने
रोज यहाँ से गुजरते
हुए, बच्चे को भूख से
तडपते हुए देखा है
और
मैं मुस्कराकर कहूँगा.......……..मुझमें सहने की छमता
है ….....
हां
मैं एक गरीब हूँ और
अगर मैं एक गरीब
पुरुष हूँ
तो
मुझे उन् सारी परम्पराओं,
नियमों, कायदों का अंधानुकरण करना
ही है
जिन्हें
बनाया गया है सिर्फ
हमारे लिए कोई भी
सवाल उठाए बिना
अगर
कोई सवाल करूँगा, तो
पेट की आग में
दफ़न मासूमों का स्वप्न होगा
सरकार
के विरुध कुछ ना कहना
है बस सफ़र करते
हुए गरीबी से लड़ना है
इसलिए
मुझे चुप रहना है
क्योंकि सुदामा की गरीबी मिटाने
को श्री कृष्णा थे
अब
इस कलयुग में न तो
कोई श्री कृष्णा है
ना ही कोई राजा
हरिश्चन्द्र
हर
बार सब गणतंत्र दिवस
मनाएंगे, स्वतन्त्रता दिवस भी मनाएंगे
और
मैं मुस्कराकर कहूँगा...........मैं भारत देश
का निवासी हूँ......
सुनीता दोहरे
प्रबंध संपादक /इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
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