भारतीय संस्कृति का भारतीय परिवेश में खत्म होता वजूद :(सच का आईना )
विश्व में भारतीय संस्कृति अपनी विशिष्ट पहचान के कारण सदैव के लिए आदरणीय एवं वन्दनीय रही है ! विश्व को प्राचीन भारत की लोक कल्याणकारी भाई चारे और समन्वय की भावना ने शान्ति, समता और अंहिसा का मार्ग दिखाया ! भारत ने जगतगुरू के नाम से विश्व में ख्याति प्राप्त की है ! भारत के लोगों की अपनी एक अध्यात्मिक सोच रही है ! कुटुम्बकम की भावना, जनमानस के लिए प्रेरणा व आदर्श रही है ! इसके प्रमुख कारण यह हैं कि समाज एक सामाजिक सम्बन्धों का जटिल जाल होता है और स्वयं मनुष्य ही इन सम्बन्धों का निर्माता होता है ! मनुष्य ही सामाजिक प्राणी के रूप में समाज के संगठन में व्यवस्था सुचारू रूप से स्थापित करते हुए इसे प्रगति एवं गतिशीलता की दिशा में ले जाने हेतु सदैव प्रयत्नशील रहा है !
भारतीय संस्कृति क्या है ?
कभी-कभी लोगों के इस तरह के सवाल मेरे मन को विचलित कर देते है कि इस देश में रहने वाले नागरिकों के मन की व्यथा भारतीय संस्कृति के प्रति कितनी सजग है ! अमूमन लोग पूछते हैं कि जैसे----हमारे इतने सारे देवी देवता क्यों है ? हमारी संस्कृति कैसी है जो हम एक जैसे होकर भी विभिन्न प्रकार की जातियों- प्रजातियों में क्यों बटे है ? भारत में इतनी भाषाओं के होते हुये हमें कौन सी बात जोड़े हुये है ? हमारे देश के हर त्योहारों के साथ में कोई ना कोई कथा क्यों जुड़ी है ? हमारे देश की धर्म और संस्कृति में इतने विरोधाभास क्यों है ? वर्ण सिस्टम का क्या महत्व है ? ये एक सभ्य नागरिक से सुनकर मन पीड़ा से कराह उठता है ! क्योंकि भारतीय संस्कृति के बारे में जानता हर नागरिक है पर भारतीय संस्कृति के खतम होते वजूद को बचाने में विवश और मूक दर्शक है ......
भारतीय संस्कृति में चार मूल्यों को प्रमुख रूप से प्रधानता दी गयी है --- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ! लेकिन कोई भी व्यक्ति इन चारों पुरुषार्थों अथवा मूल्यों को एक ही काल में एक ही साथ चरितार्थ नहीं कर सकता है, क्योंकि व्यक्ति का जीवन एक सीमित अवधि में होता है, इसलिए हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था एवं पुनर्जन्म पर बल दिया गया है ! यदि गुण और कर्म पर वर्णाश्रम व्यवस्था को आधारित माने तो यह व्यवस्था आज भी अत्यन्त वैज्ञानिक एवं उपादेय प्रतीत होती है. यह हिन्दू संस्कृति की समानता का एक प्रतीक है ! किसी भी देश का अपना इतिहास होता है , अपनी परम्परायें होती है ! यदि हम देश को शरीर माने तो, संस्कृति उसकी आत्मा होती है, या फिर धडकन के रूप में ह्र्दय में चलने वाली सांस….....जो शरीर को सजीव रखने के लिये अतिआवश्यक है ! किसी भी देश की संस्कृति में अनेक आदर्श रहते हैं , आदर्श मूल्य है , और मूल्यों का मुख्य संवाहक संस्कृति होती है ! विभिन्न वेद शास्त्र हमारी संस्कृति का हिस्सा है, इसके अतिरिक्त भारत की अन्य परम्परायें जैसे-- सामाजिक आचार व्यवहार, अनेकता मे एकता , शरणागत रक्षा , सर्वधर्म सम्भाव, अतिथि देवो भवः, वसुधैव कुटुम्बकम, जैसी मान्यताएं प्रमुख है !
इस आधुनिक युग में भारतीय संस्कृति का खतम होता वजूद :--
अब बात आती है कि भारतीय संस्कृति को छोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने वाली युवा पीढ़ी की जो आज भी आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्कृति सभ्यता को गाली देना २१ वी सदी या यूँ कहे आधुनिक लोगो के लिए फैशन बन चुका है ! आज हमारे समाज मैं भारतीय सभ्यता और संस्कारों के उलट आचरण करने को ही आधुनिकता कहा जाने लगा है परन्तु वास्तव मैं उन लोगो को इस छदम आधुनिकता के भयानक परिणामों की जानकारी नहीं है ! इस आधुनिक युग में भारतीय संस्कृति का वजूद दिन पर दिन खतम क्यों होता जा रहा है ! भारत का इतिहास उठाकर देखिये कि भारत वर्ष पर अंग्रेजों की हुकुमत तक़रीबन दो सौ सालों तक रही है और उसका असर आज तक भारतीय परिवेश की जिन्दगी में उथल पुथल मचाये हुये है ! १५ अगस्त १९४७ को वह भारत छोड़ कर अपने मुल्क को वापस तो चले गए , लेकिन इन दो सौ सालों में अंग्रेजों ने इस धरती पर कुछ ऐसे बीज़ रोप दिए थे ! जो कि अब वो बीज़ अंकुरित होकर एक विशाल और विनाशकारी पेड़ का रूप धारण कर चुके है ! उस विशाल और विनाशकारी पेड़ की शाखाएं इतनी बढ़ चुकी हैं कि आज पूरे मुल्क में फ़ैल चुकी है ! आज जगह-जगह पूरे भारत में कॉन्वेंट स्कूलों की भरमार है और दिन प्रतिदिन इसकी तादाद बढती ही जा रही है ! अब माध्यमिक विद्यालयों में पहला वर्ग या दूसरा वर्ग नहीं होता है बल्कि नर्सरी, के जी और के जी- 1 से क्लास शुरू होता है ! अब छोटे बच्चे “क ख ग ” नहीं पढ़ते है वो “A B C ” से अपनी पढाई शुरू करते है ! माँ बाप भी अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों में दाखिला दिलाकर गौरवान्वित महसूस करते है ! कॉन्वेंट स्कूल पहले सिर्फ महानगरों तक सीमित हुआ करते थे ! अब महानगरों से होते हुए छोटे शहरों तक और अब हालात ये हैं कि गाँव और छोटे कस्बों तक कॉन्वेंट स्कूलों की भरमार है ! इस फैलाव के कारण आज हिंदी माध्यम के स्कूल कम होते जा रहें हैं और जो है वो बंद होने के कगार पर है ! माता-पिता अपने बच्चे को हिंदी पढ़ाने में तौहीनी समझते है ! पाश्चात्य सभ्यता की आंधी ने हमारी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में उथल-पुथल मचा रखी है ! पाश्चात्य सभ्यता हमारी संस्कृति , भारतीय समाज एवं हमारी वर्षों क़ी धरोहर सभ्यता के लिए घोर अभिशाप व् घातक है ! जिस देश मैं खुद भगवान कई रूपों में अवतार लेते रहें है उस देश मैं ऐसी संस्कार हीन पीढ़ी का जनम होगा ये वास्तविकता बहुत भयानक है !
आज हमारे समाज मैं भारतीय सभ्यता और संस्कारों के ठीक उलट आचरण करने को ही आधुनिकता कहा जाने लगा है ! देखा जाये तो वास्तव में आधुनिकता से ओत- प्रोत लोग इस इस छदम आधुनिकता के भयानक परिणामों से परिचित नहीं है !
आज हमारे समाज मैं भारतीय सभ्यता और संस्कारों के ठीक उलट आचरण करने को ही आधुनिकता कहा जाने लगा है ! देखा जाये तो वास्तव में आधुनिकता से ओत- प्रोत लोग इस इस छदम आधुनिकता के भयानक परिणामों से परिचित नहीं है !
क्या हम भारतीय संस्कृति के सही मायने में अनुयायी हैं ?
यदि नहीं तो इसी समय संकल्प लेंगे कि अमुक बुरी आदत, बुराई या अनुचित कार्य को त्यागने की और उसके साथ ही साथ एक और संकल्प लेंगे की समाज, देश के लिए हम क्या, कैसे और कितना योगदान कर सकते हैं , करना चाहिए और करेंगे ! संकल्प योजना बद्ध और घोषणा करके करेंगे ताकि हमारा संकल्प आत्म संकल्प और द्रढ़ हो ! हमको, आपको एवं सबको इस षड्यंत्र को भारत से निकाल फेकना है ! और इससे उत्पन्न होने वाले समाज में असंतुलन, आरजकता व् पूर्वजों से मिली धरोहर को दूषित होने से बचाना होगा ! हम अपने अंदर द्रढ़ संकल्प करें कि हम इस दुराचार से बचेंगे , और न ये दुराचार होने देंगे " हम सुधरेगे तो जग सुधरेगा ! न हम ऐसा करेंगे न जग को करने देगें " ! हम अपनी संतानों को अव्यवहारिक कार्य नहीं करने देंगे , हम सब ये जानते हैं कि आधुनिक युग की नई पीढी नई स्फूर्ति से परिपूर्ण है ये सब बस मार्ग से भटक गए है और भटक रहें है आइये हम सब मिलकर ये संकल्प लें कि हमारी लुप्त होती हुई सभ्यता, और संस्कृति को हम किसी भी रूप में दूषित नहीं होने देंगे ! सर्व प्रथम हम स्वयं को सुधारेगें, आदर्शपूर्ण आदर्शों को अपनायेंगे तभी तो फिर जग को सुधारने में सहायक हो सकेगें और नयी पीढी को पतन की ओर जाने से रोकेंगे ! और स्वयं उदाहरण बन कर आदर्शों का प्रतिमान स्थापित करेंगे !
इसलिए जागो भारतवासियों जागो और इसके साथ ही सर्व भारतीय समाज को इस छदम आधुनिकता से मुक्त करवाओ !
मेरा ये लेख भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को या पश्चिमी सभ्यता को कष्ट पहुंचाने के लिए नहीं लिखा गया है अपितु छदम आधुनिकता के नाम पर जिस प्रकार से भारत में पाश्चात्य सभ्यता को भारतीय समाज में लाया गया है और हमारी संस्कृति को नष्ट करने और पश्चिमी सभ्यता की गंदगी और जूठन को समाज को परोसने का जो गन्दा खेल खेला जा रहा है उसके खिलाफ है !
जय-जय माँ भारती -
सुनीता दोहरे ....
लखनऊ
सुनीता दोहरे ....
लखनऊ
Comments
Post a Comment