10 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस ( सच का आईना )
Heading…….10
दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस ( सच का आईना )
sub heading……बहुत गहरी है हिन्दुस्तान में मानव अधिकार की
जड़ें
मानवाधिकार
मनुष्य को बिना किसी भेदभाव के सम्मान के साथ जीने का अधिकार सुनिश्चित कराता है !
मानव अधिकारों के लिए जारी संघर्ष , इन्सानी अधिकारों की पहचान और वजूद को
अस्तित्व में लाने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (यूनिवर्सल
ह्यूमन राइट्स डे) मनाया जाता है. मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने और
अमानवीय कृत्यों के खिलाफ संघर्ष की आवाज को मुखर करने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण
भूमिका है !
सही मायने में देखा जाए तो मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा होकर नहीं सोच सकते. पर अपने राजनीतिक या अन्य बुरे मंसूबों को सफल बनाने के लिए मानवाधिकारों का सहारा लेना बिलकुल गलत है. मानव अधिकार जो कि प्रकृति ने मानव को जन्म के समय उपहार स्वरूप प्रदान किये इन मानव अधिकारों को कभी-कभी मूलभूत अधिकार ,आधारभूत अधिकार , अन्तर्निहित अधिकार ,प्राकृतिक अधिकार और जन्म सिद्द अधिकार भी कहा जाता है ये अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए नितांत आवश्यक हैं क्योंकि ये मानव की गरिमा एवं स्वतंत्रता के अनुरूप है तथा शारीरिक ,मानसिक ,बौद्धिक ,नैतिक ,सामाजिक और भौतिक कल्याण के लिए आवश्यक हैं. इन अधिकारों की अनुउपलब्धता की स्थिती में मानव कभी भी किसी प्रकार का विकास नहीं कर सकता है, ये मानव अधिकार मानव को मूलवंश , धर्म ,लिंग व राष्ट्रीयता के विभेद बिना हासिल होते हैं. मानव अधिकार के संरक्षण के प्रमाण प्राचीन काल की बेबिनिया बिधि , असीरिया विधि और हित्ती विधि तथा भारत में वैदिक कालीन धर्म में पाए जाते है विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का आधार मानवता वादी है मानव अधिकारों की जड़ें प्राचीन विचारक तथा “प्राकृतिक विधि” और “प्राकृतिक अधिकार” की दार्शनिक अवधारणाओं में पाई जाती है ! मानव अधिकारों के आधुनिक रूप में वास्तविकताएं सत्रव्हीं ,अठारहवीं शताब्दी में आरंभ हुई थी अठारहवीं शताब्दी में ज्ञानोदय का समय प्रारम्भ हुआ जिसने मानव के भीतर विश्वास व पारंगतता की भावना को और अधिक मजबूत कर दिया तथा इंग्लिश दर्शन शास्त्रियों जैसे कि मान टेसक्यू , वाल्टेयर और रूसो तथा जोन लाक ( फादर ऑफ द लिबरे लीजम ) में व्यक्तियों के जीने ,स्वतंत्रता तथा संपत्ति के अधिकारों पर जोरों से चर्चा करनी शुरू कर दी थी. ऐतिहासिक रूप से मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन द्वारा अपनी समिति को कतिमय मानव अधिकारों की मान्यता देने वाले घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर से मिलता है जो विश्व में मैग्ना कार्टा के नाम से प्रसिद्द है. इसी क्रम में 1920 में संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया तथा 10 दिसंबर 1948 को महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके “मानव अधिकारों” की विश्व घोषणा को अंगीकार किया . इस दिन को अन्तराष्ट्रीय मानव अधिकार के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है . मानव अधिकार का सरंक्षण मूल भारत में वैदिक काल के धर्म में पाया जाता है . “सर्वे भवन्तु सुखिन , सर्वे सन्तु निरामया ” इसका अर्थ भारतीय जीवन का प्रमुख दर्शन है तथा इसकी प्राप्ति ही मनुष्य का चरम लक्ष्य है. भर्तु हरि ,बात्सायन कौटिल्य के ग्रंथों में भी मानव अधिकार को मनुष्य का स्वाभाविक गुण बताया गया है. गीता में भी मानव अधिकार का उल्लेख है “ कर्में बाधिका रस्ते ” धर्म प्राचीन भारत का सर्वोत्तम क़ानून है ये क़ानून नैतिकता , न्याय और सत्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाता है. धर्म का अर्थ है रक्षा करना, पोषण करना तथा कर्तव्यों का निर्वाह करना. मनु स्मृति , नीति वचन , कामसूत्र , अर्थशास्त्र आदि सभी ग्रंथों में मानव अधिकारों की चर्चा विभिन्न प्रसंगों में देखने को मिलती है. अर्थवेद में कहा गया है कि जीवन का जुआ प्रत्येक व्यक्ति के कंधे पर समान रूप से रखा जाता है. अतः प्रत्येक व्यक्ति अपने नैसर्गिक , आधारभूत , अन्तःनिहर्ता या जन्मजाति अधिकार की सहायता से अपनी खुशियों को पाने का प्रयास करता है. भारत के विभिन्न संतों ने मानव अधिकार के विकास की दिशा में प्रयास किये.बुद्द महावीर ,कबीर ,गुरुनानक आदि ने सन्देश भी हमें मानवीय मूल्यों की रक्षा के दिए हैं.
विश्व में मानवाधिकार के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में मानवाधिकार दिवस की शुरुआत की थी. उसने 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा स्वीकार की थी और 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था. संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए तय किया. लेकिन हमारे देश में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने के लिए काफी लंबा समय लग गया. भारत में मानव अधिकार आयोग विधेयक लोक सभा में 14 मई 1992 को प्रस्तुत किया गया था यह विधेयक गृह मामले में संसद की स्थाई समिति संदर्भित किया गया था. आयोग की तात्कालिक आवश्यकता के कारण भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय मानव आयोग के गठन के लिए 27 सितंबर 1993 को अध्यादेश जारी कर दिया था ! संशोधन करने के पश्चात मानव अधिकार रक्षा विधेयक अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिए संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया . फिर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के पश्चात 8 जनवरी 1994 को उक्त विधेयक अधिनियम बना जो “मानव अधिकार संरक्षण” के नाम से जाना जाता है.
सही मायने में देखा जाए तो मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा होकर नहीं सोच सकते. पर अपने राजनीतिक या अन्य बुरे मंसूबों को सफल बनाने के लिए मानवाधिकारों का सहारा लेना बिलकुल गलत है. मानव अधिकार जो कि प्रकृति ने मानव को जन्म के समय उपहार स्वरूप प्रदान किये इन मानव अधिकारों को कभी-कभी मूलभूत अधिकार ,आधारभूत अधिकार , अन्तर्निहित अधिकार ,प्राकृतिक अधिकार और जन्म सिद्द अधिकार भी कहा जाता है ये अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए नितांत आवश्यक हैं क्योंकि ये मानव की गरिमा एवं स्वतंत्रता के अनुरूप है तथा शारीरिक ,मानसिक ,बौद्धिक ,नैतिक ,सामाजिक और भौतिक कल्याण के लिए आवश्यक हैं. इन अधिकारों की अनुउपलब्धता की स्थिती में मानव कभी भी किसी प्रकार का विकास नहीं कर सकता है, ये मानव अधिकार मानव को मूलवंश , धर्म ,लिंग व राष्ट्रीयता के विभेद बिना हासिल होते हैं. मानव अधिकार के संरक्षण के प्रमाण प्राचीन काल की बेबिनिया बिधि , असीरिया विधि और हित्ती विधि तथा भारत में वैदिक कालीन धर्म में पाए जाते है विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का आधार मानवता वादी है मानव अधिकारों की जड़ें प्राचीन विचारक तथा “प्राकृतिक विधि” और “प्राकृतिक अधिकार” की दार्शनिक अवधारणाओं में पाई जाती है ! मानव अधिकारों के आधुनिक रूप में वास्तविकताएं सत्रव्हीं ,अठारहवीं शताब्दी में आरंभ हुई थी अठारहवीं शताब्दी में ज्ञानोदय का समय प्रारम्भ हुआ जिसने मानव के भीतर विश्वास व पारंगतता की भावना को और अधिक मजबूत कर दिया तथा इंग्लिश दर्शन शास्त्रियों जैसे कि मान टेसक्यू , वाल्टेयर और रूसो तथा जोन लाक ( फादर ऑफ द लिबरे लीजम ) में व्यक्तियों के जीने ,स्वतंत्रता तथा संपत्ति के अधिकारों पर जोरों से चर्चा करनी शुरू कर दी थी. ऐतिहासिक रूप से मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन द्वारा अपनी समिति को कतिमय मानव अधिकारों की मान्यता देने वाले घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर से मिलता है जो विश्व में मैग्ना कार्टा के नाम से प्रसिद्द है. इसी क्रम में 1920 में संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया तथा 10 दिसंबर 1948 को महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके “मानव अधिकारों” की विश्व घोषणा को अंगीकार किया . इस दिन को अन्तराष्ट्रीय मानव अधिकार के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है . मानव अधिकार का सरंक्षण मूल भारत में वैदिक काल के धर्म में पाया जाता है . “सर्वे भवन्तु सुखिन , सर्वे सन्तु निरामया ” इसका अर्थ भारतीय जीवन का प्रमुख दर्शन है तथा इसकी प्राप्ति ही मनुष्य का चरम लक्ष्य है. भर्तु हरि ,बात्सायन कौटिल्य के ग्रंथों में भी मानव अधिकार को मनुष्य का स्वाभाविक गुण बताया गया है. गीता में भी मानव अधिकार का उल्लेख है “ कर्में बाधिका रस्ते ” धर्म प्राचीन भारत का सर्वोत्तम क़ानून है ये क़ानून नैतिकता , न्याय और सत्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाता है. धर्म का अर्थ है रक्षा करना, पोषण करना तथा कर्तव्यों का निर्वाह करना. मनु स्मृति , नीति वचन , कामसूत्र , अर्थशास्त्र आदि सभी ग्रंथों में मानव अधिकारों की चर्चा विभिन्न प्रसंगों में देखने को मिलती है. अर्थवेद में कहा गया है कि जीवन का जुआ प्रत्येक व्यक्ति के कंधे पर समान रूप से रखा जाता है. अतः प्रत्येक व्यक्ति अपने नैसर्गिक , आधारभूत , अन्तःनिहर्ता या जन्मजाति अधिकार की सहायता से अपनी खुशियों को पाने का प्रयास करता है. भारत के विभिन्न संतों ने मानव अधिकार के विकास की दिशा में प्रयास किये.बुद्द महावीर ,कबीर ,गुरुनानक आदि ने सन्देश भी हमें मानवीय मूल्यों की रक्षा के दिए हैं.
विश्व में मानवाधिकार के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में मानवाधिकार दिवस की शुरुआत की थी. उसने 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा स्वीकार की थी और 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था. संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए तय किया. लेकिन हमारे देश में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने के लिए काफी लंबा समय लग गया. भारत में मानव अधिकार आयोग विधेयक लोक सभा में 14 मई 1992 को प्रस्तुत किया गया था यह विधेयक गृह मामले में संसद की स्थाई समिति संदर्भित किया गया था. आयोग की तात्कालिक आवश्यकता के कारण भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय मानव आयोग के गठन के लिए 27 सितंबर 1993 को अध्यादेश जारी कर दिया था ! संशोधन करने के पश्चात मानव अधिकार रक्षा विधेयक अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिए संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया . फिर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के पश्चात 8 जनवरी 1994 को उक्त विधेयक अधिनियम बना जो “मानव अधिकार संरक्षण” के नाम से जाना जाता है.
अब
मानवाधिकार के इन तीस अनुच्छेदों पर एक नज़र डालते हुये देखते हैं कि वे आख़िर हैं
क्या.......
1. सब लोग गरिमा और अधिकार के मामले में स्वतंत्र और बराबर है.
2. प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के अधिकार और स्वतंत्रा दी गई है. नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीयता या समाजिक उत्पत्ति, संपत्ति, जन्म आदि जैसी बातों पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
3. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, आज़ादी और सुरक्षा का अधिकार है.
4. ग़ुलामी या दासता से आज़ादी का अधिकार.
5. यातना, प्रताड़ना या क्रूरता से आज़ादी का अधिकार.
6. क़ानून के सामने समानता का अधिकार.
7. क़ानून के सामने सभी को समान संरक्षण का अधिकार.
8. अपने बचाव में इंसाफ़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार.
9. मनमाने ढंग से की गई गिरफ़्तारी, हिरासत में रखने या निर्वासन से आज़ादी का अधिकार.
10. किसी स्वतंत्र आदालत के ज़रिए निष्पक्ष सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार. 11. जबतक अदालत दोषी क़रार नहीं दे देती उस वक़्त तक निर्दोष होने का अधिकार.
12. घर, परिवार और पत्राचार में निजता का अधिकार.
13. अपने देश में भ्रमण और किसी दूसेर देश में आने-जाने का अधिकार.
14. किसी दूसरे देश में राजनितिक शरण मांगने का अधिकार.
15. राष्ट्रीयता का अधिकार.
16. शादी करने और परिवार बढ़ाने का अधिकार और शादी के बाद पुरुष और महिला का समानता का अधिकार.
17. संपत्ति का अधिकार.
18. विचार, विवेक और किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार. 19. विचारों की अभिव्यक्ति और जानकारी हासिल करने का अधिकार.
20. संगठन बनाने और सभा करने का अधिकार.
21. सरकार बनाने की गतिविधियों में हिस्सा लेने और सरकार चुनने का अधिकार.
22. सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार.
23. काम करने का अधिकार, समान काम पर समान भुगतान का अधिकार और ट्रेड यूनियन में शामिल होने और बनाने का अधिकार.
24. काम करने की मुनासिब अवधि और सवैतिनक छुट्टियों का अधिकार.
25. भोजन, आवास, कपड़े, चिकित्सीय देखभाल और सामाजिक सुरक्षा सहित अच्छे जीवन स्तर के साथ स्वयं और परिवार के जीने का अधिकार.
26. शिक्षा का अधिकार. प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य हो.
27. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने और बौद्धिक संपदा के संरक्षण का अधिकार.
28. हर व्यक्ति को एक ऐसी सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का अधिकार है जो यह सुनिश्चित करे कि इस घोषणापत्र का पालन हो पाए.
29. प्रत्येक व्यक्ति समुदाय के प्रति जवाबदेह है जोकि लोकतांत्रिक समाज के लिए ज़रूरी हैं.
30. इस घोषणापत्र में शामिल किसी भी बात की ऐसी व्याख्या न हो जिससे यह आभास मिले कि कोई राष्ट्र, व्यक्ति या गुट किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो सकता है जिससे किसी की स्वतंत्रता या अधिकारों का हनन हो. इस घोषणापत्र पर भारत सहित कई अन्य देशों ने हस्ताक्षर किए हैं.
आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे- महिला अधिकार, स्वास्थ्य, बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, भोजन, बाल विवाह, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार.
1. सब लोग गरिमा और अधिकार के मामले में स्वतंत्र और बराबर है.
2. प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के अधिकार और स्वतंत्रा दी गई है. नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीयता या समाजिक उत्पत्ति, संपत्ति, जन्म आदि जैसी बातों पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
3. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, आज़ादी और सुरक्षा का अधिकार है.
4. ग़ुलामी या दासता से आज़ादी का अधिकार.
5. यातना, प्रताड़ना या क्रूरता से आज़ादी का अधिकार.
6. क़ानून के सामने समानता का अधिकार.
7. क़ानून के सामने सभी को समान संरक्षण का अधिकार.
8. अपने बचाव में इंसाफ़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार.
9. मनमाने ढंग से की गई गिरफ़्तारी, हिरासत में रखने या निर्वासन से आज़ादी का अधिकार.
10. किसी स्वतंत्र आदालत के ज़रिए निष्पक्ष सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार. 11. जबतक अदालत दोषी क़रार नहीं दे देती उस वक़्त तक निर्दोष होने का अधिकार.
12. घर, परिवार और पत्राचार में निजता का अधिकार.
13. अपने देश में भ्रमण और किसी दूसेर देश में आने-जाने का अधिकार.
14. किसी दूसरे देश में राजनितिक शरण मांगने का अधिकार.
15. राष्ट्रीयता का अधिकार.
16. शादी करने और परिवार बढ़ाने का अधिकार और शादी के बाद पुरुष और महिला का समानता का अधिकार.
17. संपत्ति का अधिकार.
18. विचार, विवेक और किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार. 19. विचारों की अभिव्यक्ति और जानकारी हासिल करने का अधिकार.
20. संगठन बनाने और सभा करने का अधिकार.
21. सरकार बनाने की गतिविधियों में हिस्सा लेने और सरकार चुनने का अधिकार.
22. सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार.
23. काम करने का अधिकार, समान काम पर समान भुगतान का अधिकार और ट्रेड यूनियन में शामिल होने और बनाने का अधिकार.
24. काम करने की मुनासिब अवधि और सवैतिनक छुट्टियों का अधिकार.
25. भोजन, आवास, कपड़े, चिकित्सीय देखभाल और सामाजिक सुरक्षा सहित अच्छे जीवन स्तर के साथ स्वयं और परिवार के जीने का अधिकार.
26. शिक्षा का अधिकार. प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य हो.
27. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने और बौद्धिक संपदा के संरक्षण का अधिकार.
28. हर व्यक्ति को एक ऐसी सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का अधिकार है जो यह सुनिश्चित करे कि इस घोषणापत्र का पालन हो पाए.
29. प्रत्येक व्यक्ति समुदाय के प्रति जवाबदेह है जोकि लोकतांत्रिक समाज के लिए ज़रूरी हैं.
30. इस घोषणापत्र में शामिल किसी भी बात की ऐसी व्याख्या न हो जिससे यह आभास मिले कि कोई राष्ट्र, व्यक्ति या गुट किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो सकता है जिससे किसी की स्वतंत्रता या अधिकारों का हनन हो. इस घोषणापत्र पर भारत सहित कई अन्य देशों ने हस्ताक्षर किए हैं.
आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे- महिला अधिकार, स्वास्थ्य, बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, भोजन, बाल विवाह, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार.
क्यों
और किसलिए जरूरी हैं मानवाधिकार ;---
दरअसल मानव का जन्म होते ही मानव के जीवन में हमारे प्राकृतिक अधिकार भी वजूद में आ जाते हैं ! जो अस्तित्व की गारंटी के साथ हमारे चहुंमुखी विकास का सबब होते हैं ! विश्व में पूरे आत्मसम्मान से रहने व अपनी भौतिक व आत्मिक सुरक्षा बरकरार रखते हुए लगातार सीढ़ी दर सीढ़ी तरक्की पाने में इन कारकों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है ! इसी कारण वश हर स्तर पर चाहें वो संविधान हो या नीति निर्माण अधिकारों का प्रावधान दुनिया की ज्यादातर सरकारें इस अधिकार को बरक्कत देने में लगी है !
खुद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 19, 20, 21, 23, 24, 39, 43, 45 देश में मानवाधिकारों की सशक्त पैरवी करते नजर आते हैं ! यही नहीं देश में कायम मनावाधिकार आयोग समेत कई सरकारी, गैर सरकारी आयोग भी इस दिशा में कार्यरत हैं !
देखा जाए तो यदि हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति सजग हो जाए तो विश्व में मानवाधिकार के विकास में हमारी सबसे बड़ी भागीदारी होगी. और जिस उद्देश्य की पूर्ती के लिए मानव अधिकार की इमारत की नींव रखी गई थी उस पर एक भव्य इमारत के निर्माण का सपना साकार होगा.
सुनीता दोहरे ...लखनऊ ...
दरअसल मानव का जन्म होते ही मानव के जीवन में हमारे प्राकृतिक अधिकार भी वजूद में आ जाते हैं ! जो अस्तित्व की गारंटी के साथ हमारे चहुंमुखी विकास का सबब होते हैं ! विश्व में पूरे आत्मसम्मान से रहने व अपनी भौतिक व आत्मिक सुरक्षा बरकरार रखते हुए लगातार सीढ़ी दर सीढ़ी तरक्की पाने में इन कारकों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है ! इसी कारण वश हर स्तर पर चाहें वो संविधान हो या नीति निर्माण अधिकारों का प्रावधान दुनिया की ज्यादातर सरकारें इस अधिकार को बरक्कत देने में लगी है !
खुद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 19, 20, 21, 23, 24, 39, 43, 45 देश में मानवाधिकारों की सशक्त पैरवी करते नजर आते हैं ! यही नहीं देश में कायम मनावाधिकार आयोग समेत कई सरकारी, गैर सरकारी आयोग भी इस दिशा में कार्यरत हैं !
देखा जाए तो यदि हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति सजग हो जाए तो विश्व में मानवाधिकार के विकास में हमारी सबसे बड़ी भागीदारी होगी. और जिस उद्देश्य की पूर्ती के लिए मानव अधिकार की इमारत की नींव रखी गई थी उस पर एक भव्य इमारत के निर्माण का सपना साकार होगा.
सुनीता दोहरे ...लखनऊ ...
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