कसाब को मिली फांसी और अफजल की फांसी का इंतजार बढ़ा (सच का आईना )
कसाब को मिली फांसी और अफजल की फांसी का इंतजार बढ़ा (सच का आईना )
26
नवंबर, 2008 को मुंबई में कई आतंकवादियों ने तांडव मचाया था ! आतंकियों ने एके 47
और ग्रेनेड से लैस होकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी )पर अंधाधुंध फायरिंग की
थी ! इसके बाद अलग-अलग कई जगहों पर धमाके और फायरिंग की भी खबर आई थी ! मुंबई में
बुधवार को रात की रौनक चढ़नी शुरू हुई ही थी कि शहर दहशत में डूब गया था ! पूरी दक्षिण
मुंबई आतंकी साये में धमाकों और गोलियों की गूंज से हिल गई थी ! यह समझना बहुत मुश्किल
हो गया था कि कहां कितने धमाके हुए और कहां फायरिंग हुई ! सिनेमा घर, सरकारी दफ्तर, रेलवे स्टेशन, फाइव
स्टार होटल, अस्पताल, कालेज सबको
निशाना बनाया गया था ! आतंकियों ने दो दर्जन से भी ज्यादा स्थानों को निशाना बनाते
हुये एक के बाद एक लगातार विस्फोट और अंधाधुंध फायरिंग कर मुंबई को
दहला दिया था ! जिसमें 80 से ज्यादा लोग मारे गए और दो सौ से भी ज्यादा लोग घायल
हो गए थे ! आतंकियों के निशाने पर उस समय पाश दक्षिणी मुंबई का इलाका था ! इस इलाके
में दो फाइव स्टार होटल जो कि होटल ताज और ओबेराय के नाम से मशहूर हैं उनको खास
तौर पर निशाना बनाया गया था ! आतंकियों ने इन्हीं होटलों में मोर्चा संभाल रखा था
! आतंकियों ने 20 मंजिले ताज होटल की चौथी मंजिल पर धमाका करके दोनों होटलों में
घुसे मेहमानों और विदेशी मेहमानों को भी बंधक बना लिया था ! इन मेहमानों को छुड़ाने
के लिए देर रात कमांडो कार्रवाई शुरू की गई थी ! इस आंतकी हमले में हेमंत करकरे, अशोक कामते और विजय
सालसकर जैसे बहादुर भारतीय सपूतों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी थी ! गौरतलब
है कि उस समय गुरुवार से ताज होटल में चार देशों की क्रिकेट टीमें ठहरने वाली थीं
!
२६ नवम्बर बुधवार को देश की आर्थिक राजधानी पर हुआ आतंकी हमला देश में सबसे बड़ा आतंकी हमला कहा जा सकता है ! साथ ही, आतंकियों ने शहर में आत्मघाती अंदाज में हमलों को अंजाम दिया था !
फिर क्या देखते- देखते गहन कार्यवाही शरू की गई ! और अजमल कसाब गिरफ्तार कर लिया गया था ! और उस पर राजाओं जैसी शाहखर्ची की गई ! सरकारी सूत्रों पर भरोसा किया जाये तो कसाब पर कुल खर्च ६५ करोड़ बैठता है ! मामला खिंचता रहा अंत में कसाब को सजा के तौर पर फांसी की सजा सुनाई गई !
जस्टिस आफताब आलम और सीके प्रसाद की खंडपीठ के अनुसार, ” कसाब के बारे में फैसला करने में कोई दुर्भावना नहीं है. इस शख्स ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है. इसलिए ऐसे शख्स को मृत्युदंड की सज़ा बरकरार रखने में कोई समस्या नहीं है. कोर्ट का कहना था कि कसाब को मृत्युदंड देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. कसाब की दलील थी कि उसकी कम उम्र को देखते हुए उसे फांसी की सज़ा न दी जाए लेकिन अभियोजन पक्ष ने लगातार कहा कि कसाब के जुर्म की गंभीरता को देखते हुए उसे फांसी की सजा ही दी जानी चाहिए.
अब देखते हैं कि मुंबई हमले से कसाब को फंदे तक किस तरह पंहुचाया गया ........
मुंबई आंतकी हमले का दोषी अजमल कसाब २७ नवंबर २००८: को गिरफ्तार कर लिया गया था ! ३० नवंबर २००८: को कसाब ने पुलिस के सामने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था ! और १३ जनवरी २००९: में एम एल तहलियानी को २६/११ मामले में विशेष जज की नियुक्त के साथ- साथ २२ फरवरी २००९: में उज्ज्वल निकम को सरकारी वकील भी नियुक्त किया गया था ! २५ फरवरी २००९: में मेट्रोपॉलिटिन कोर्ट में कसाब के खिलाफ चार्जशीट दायर हो गई थी ! फिर १ अप्रैल २००९: में स्पेशल कोर्ट के द्वारा अंजलि वाघमारे को कसाब का वकील नियुक्त किया था !
६ मई २००९: में कसाब पर ८६ आरोप तय किये गये थे ,लेकिन आरोपों से कसाब को इंकार था !
२३ जून २००९: में जकी-उर-रहमान लखवी , हाफिज सईद समेत २२ लोगों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिए गये थे !
१६ दिसंबर २००९: में अभियोजन पक्ष ने २६/११ के मामले में आग्र्यूमेंट पूरा किया था और ९ मार्च २०१०: में अंतिम बहस करते हुये ३१ मार्च २०१०: में फैसला ३ मई के लिए सुरक्षित रखा गया था !
३ मई २०१०: को कोर्ट ने कसाब को मुंबई हमले का दोषी ठहराया था ! और ये दोनों सबाउद्दीन अहमद , फहीम अंसारी आरोपों से बरी हो गये थे ! ६ मई २०१०: में कसाब को विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई ! लेकिन २९ जुलाई २०११: में कसाब ने फांसी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी ! जिसके तहत १० अक्टूबर २०११: में सुप्रीम कोर्ट ने कसाब की फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी ! फिर से ३१ जनवरी २०१२: को सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई मामले की सुनवाई को मद्देनजर रखते हुये कसाब का पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को एमिकस-क्यूरी नियुक्त किया गया था ! २५ अप्रैल २०१२: में कसाब की अपील पर कोर्ट ने सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रखा !
२८ अगस्त २०१२: में मुंबई हमले के दोषी आमिर अजमल कसाब की फांसी की स़जा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखते हुये फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद के बॉम्बे हाईकोर्ट की रिहाई के फैसले को भी बरकरार रखा था ! इन दोनों पर भारत से मुंबई हमलावरों को मदद करने का आरोप था ! फिर कसाब ने अपने बचाव के लिए २० नवंबर, २०१२: को राष्ट्रपति के सामने दया के लिए अर्जी भेजी थी जिसको ख़ारिज कर दिया गया था ! और फिर अंत में २१ नवंबर, २०१२: में कसाब को सुबह ७.३६ बजे फांसी दी गई ! फिर क्या बुराई का अंत तो बुरा ही होना था !
इसमें कोई शक नहीं कि जनता से जुड़े इस बेहद संवेदशील मुद्दे पर सरकार से लेकर तमाम अन्य पार्टियां भी राजनीति कर रही थीं. कसाब की मौत पर कुछ लोग इसे ऑपरेशन ऑलआउट कह रहे हैं तो कुछ भारत के मच्छरों को ही सम्मान देने की बातें कर रहे हैं जिन्होंने वह कर दिखाया जो सरकार नहीं कर पाई. अगर आज कसाब मारा गया है तो उसको लेकर हर कोई श्रेय ले रहा है इसमें मच्छरों की सेना भी शामिल है.
देखा जाये तो सरकार ने एक आतंकवादी को लेकर जिस तरह से पिछले चार साल से भारत की जनता को गुमराह करके रखा था उस आतंकवादी का अंत भी एक रहस्य के साथ दफन हो गया ! रहस्य इस बात का कि क्या सचमुच में कसाब को फांसी दी गई या फिर कसाब की मौत फांसी से न होकर डेंगू से हुई. गौरतलब है कि 8 नवंबर को ही डॉक्टरों ने उसकी जांच की थी. जिसमे कसाब डेंगू का मरीज पाया गया था ! सोशल मीडिया पर यह चर्चा बड़े जोरों पर है है कि कसाब की मौत की वजह फांसी नहीं बल्कि एक मच्छर है ! ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने कसाब की मौत को गोपनीय बनाकर रखा और मीडिया को कानों-कान खबर नहीं लगने दी ! इस बात में कितनी सच्चाई है ये कहना अभी मुश्किल है ! लेकिन जिस तरह से सरकार का कसाब और दूसरे आतंकवादियों के प्रति बर्ताव रहा है उससे तो मौजूदा सरकार पर शक करना लाजमी है ! एक आतंकवादी जिसने 2001 में संसद पर हमला करके संसद की पवित्रता को लहूलुहान किया था ! उसको लेकर सरकार ने उस तरह की तत्परता नहीं दिखाई जैसा एक आतंकवादी के पकड़े जाने पर दिखाई जाती है ! जो मामला तीन से छह महीने तक ही खिंचना चाहिए था उसे अब तक लटका कर खींच रही है ! कुछ लोगों का तो ये भी मानना है कि पिछले दिनों सोशल नेट्वर्किंग साइटों पर हिंदुत्व का नारा बुलंद करते हुये कसाब को फांसी की मांग करने वालो की बढ़ती हुयी संख्या को देखते हुये सरकार हिन्दुवादी वोटों को रिझाने के लिए कसाब को चुनावी बकरे के रूप में स्तेमाल किया है सवाल इस बात को लेकर भी उठ रहे हैं कि कसाब की मौत तो हो गई किंतु देश के मंदिर संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु का क्या होगा, जो अब तक जिन्दा है,और है तो अब तक क्यों है ?????
अफजल संसद पर हमला करने का दोषी है ! उसे फांसी की सजा सुनाए 6 साल हो गए, लेकिन अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई !
पिछले सात साल से लंबित संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की सजा पर अमल हो तो कैसे हो ! 2001 में संसद पर हमले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में अफजल को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन अब तक क्यों उसकी दया याचिका पर फैसला नहीं हो पाया ? क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल समेत सात दोषियों की दया याचिका फाइलें गृह मंत्रालय को पुनर्विचार के लिए लौटा दी हैं ! विशेष सूत्रों के अनुसार अफजल समेत लगभग एक दर्जन आरोपियों की दया याचिका राष्ट्रपति महोदय के पास लंबित थीं, लेकिन इनमें से सात दया याचिकाएं उन्होंने गृह मंत्रालय को लौटा दी ! क्योंकि नए गृह मंत्री के आने के बाद सामान्य तौर पर राष्ट्रपति दया याचिकाओं को दोबारा राय के लिए भेजते हैं ! फाइलें लौटाए जाने से अफजल की फांसी में देरी होना निश्चित है ! लेकिन गेंद सरकार के पाले में है जैसे चाहें वैसे उछाल सकते हैं !
दरअसल, पिछले साल अगस्त में गृह मंत्रालय ने अफजल की दया याचिका खारिज करने की अनुशंसा के साथ फाइल राष्ट्रपति भवन भेजी थी ! माना जा रहा था कि 20 दिन के भीतर कसाब की दया याचिका पर फैसला लेने वाले राष्ट्रपति इस अफजल के मामले में भी ऎसा ही कुछ करेंगे, लेकिन दया याचिका पुनर्विचार के लिए भेजकर उन्होंने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है !
अब अफजल गुरू को भी जल्दी फांसी दिये जाने की मांग ने जोर पकड लिया है और विपक्षी बीजेपी ने पुरजोर तरीके से यह बात उठाई है ! कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह ने भी कहा कि सरकार को अफजल गुरू के मुद्दे पर जल्दी फैसला लेना चाहिए कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने भी कहा कि अफजल गुरु को जल्द फांसी होनी चाहिए !
वैसे देखा जाए तो इसे देश का लचर कानून ही कहेंगे जहां पर एक आतंकवादी पूरे विश्वास के साथ इस तरह से नरंसहार करता है जैसे वह इंसान नहीं दरिंदा हो और जिसका लक्ष्य मानव जाति का समूल नाश करना हो. ऐसे घृणित कृत्य को करने के बाद जब वह अपराधी पकड़ा जाता है तो उसे राजाओं जैसी सुविधा दी जाती है !
सरकार अफजल गुरु या राजाओना जैसे आतंकियों के मामले में जल्दबाजी नहीं दिखा रही ! इससे तो ऐसा ही महसूस होता है कि केंद्र सरकार फांसी की सजा को राजनीतिक चश्मे से देखती है, किसको जल्दी फांसी देने से उसका फायदा होगा और किसकी फांसी की सजा लटकाने से ! अब भारत की जनता सोच रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जघन्य अपराध करने वाले अफजल गुरु नामक आतंकवादी को फांसी मिलेगी तो वह बिलकुल गलत सोच रहे हैं ! क्योंकि भारत का लचर कानून और राजनैतिक वोट बैंक उसकी फांसी में अड़ंगा जरूर डालेगा. !
२६ नवम्बर बुधवार को देश की आर्थिक राजधानी पर हुआ आतंकी हमला देश में सबसे बड़ा आतंकी हमला कहा जा सकता है ! साथ ही, आतंकियों ने शहर में आत्मघाती अंदाज में हमलों को अंजाम दिया था !
फिर क्या देखते- देखते गहन कार्यवाही शरू की गई ! और अजमल कसाब गिरफ्तार कर लिया गया था ! और उस पर राजाओं जैसी शाहखर्ची की गई ! सरकारी सूत्रों पर भरोसा किया जाये तो कसाब पर कुल खर्च ६५ करोड़ बैठता है ! मामला खिंचता रहा अंत में कसाब को सजा के तौर पर फांसी की सजा सुनाई गई !
जस्टिस आफताब आलम और सीके प्रसाद की खंडपीठ के अनुसार, ” कसाब के बारे में फैसला करने में कोई दुर्भावना नहीं है. इस शख्स ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है. इसलिए ऐसे शख्स को मृत्युदंड की सज़ा बरकरार रखने में कोई समस्या नहीं है. कोर्ट का कहना था कि कसाब को मृत्युदंड देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. कसाब की दलील थी कि उसकी कम उम्र को देखते हुए उसे फांसी की सज़ा न दी जाए लेकिन अभियोजन पक्ष ने लगातार कहा कि कसाब के जुर्म की गंभीरता को देखते हुए उसे फांसी की सजा ही दी जानी चाहिए.
अब देखते हैं कि मुंबई हमले से कसाब को फंदे तक किस तरह पंहुचाया गया ........
मुंबई आंतकी हमले का दोषी अजमल कसाब २७ नवंबर २००८: को गिरफ्तार कर लिया गया था ! ३० नवंबर २००८: को कसाब ने पुलिस के सामने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था ! और १३ जनवरी २००९: में एम एल तहलियानी को २६/११ मामले में विशेष जज की नियुक्त के साथ- साथ २२ फरवरी २००९: में उज्ज्वल निकम को सरकारी वकील भी नियुक्त किया गया था ! २५ फरवरी २००९: में मेट्रोपॉलिटिन कोर्ट में कसाब के खिलाफ चार्जशीट दायर हो गई थी ! फिर १ अप्रैल २००९: में स्पेशल कोर्ट के द्वारा अंजलि वाघमारे को कसाब का वकील नियुक्त किया था !
६ मई २००९: में कसाब पर ८६ आरोप तय किये गये थे ,लेकिन आरोपों से कसाब को इंकार था !
२३ जून २००९: में जकी-उर-रहमान लखवी , हाफिज सईद समेत २२ लोगों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिए गये थे !
१६ दिसंबर २००९: में अभियोजन पक्ष ने २६/११ के मामले में आग्र्यूमेंट पूरा किया था और ९ मार्च २०१०: में अंतिम बहस करते हुये ३१ मार्च २०१०: में फैसला ३ मई के लिए सुरक्षित रखा गया था !
३ मई २०१०: को कोर्ट ने कसाब को मुंबई हमले का दोषी ठहराया था ! और ये दोनों सबाउद्दीन अहमद , फहीम अंसारी आरोपों से बरी हो गये थे ! ६ मई २०१०: में कसाब को विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई ! लेकिन २९ जुलाई २०११: में कसाब ने फांसी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी ! जिसके तहत १० अक्टूबर २०११: में सुप्रीम कोर्ट ने कसाब की फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी ! फिर से ३१ जनवरी २०१२: को सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई मामले की सुनवाई को मद्देनजर रखते हुये कसाब का पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को एमिकस-क्यूरी नियुक्त किया गया था ! २५ अप्रैल २०१२: में कसाब की अपील पर कोर्ट ने सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रखा !
२८ अगस्त २०१२: में मुंबई हमले के दोषी आमिर अजमल कसाब की फांसी की स़जा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखते हुये फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद के बॉम्बे हाईकोर्ट की रिहाई के फैसले को भी बरकरार रखा था ! इन दोनों पर भारत से मुंबई हमलावरों को मदद करने का आरोप था ! फिर कसाब ने अपने बचाव के लिए २० नवंबर, २०१२: को राष्ट्रपति के सामने दया के लिए अर्जी भेजी थी जिसको ख़ारिज कर दिया गया था ! और फिर अंत में २१ नवंबर, २०१२: में कसाब को सुबह ७.३६ बजे फांसी दी गई ! फिर क्या बुराई का अंत तो बुरा ही होना था !
इसमें कोई शक नहीं कि जनता से जुड़े इस बेहद संवेदशील मुद्दे पर सरकार से लेकर तमाम अन्य पार्टियां भी राजनीति कर रही थीं. कसाब की मौत पर कुछ लोग इसे ऑपरेशन ऑलआउट कह रहे हैं तो कुछ भारत के मच्छरों को ही सम्मान देने की बातें कर रहे हैं जिन्होंने वह कर दिखाया जो सरकार नहीं कर पाई. अगर आज कसाब मारा गया है तो उसको लेकर हर कोई श्रेय ले रहा है इसमें मच्छरों की सेना भी शामिल है.
देखा जाये तो सरकार ने एक आतंकवादी को लेकर जिस तरह से पिछले चार साल से भारत की जनता को गुमराह करके रखा था उस आतंकवादी का अंत भी एक रहस्य के साथ दफन हो गया ! रहस्य इस बात का कि क्या सचमुच में कसाब को फांसी दी गई या फिर कसाब की मौत फांसी से न होकर डेंगू से हुई. गौरतलब है कि 8 नवंबर को ही डॉक्टरों ने उसकी जांच की थी. जिसमे कसाब डेंगू का मरीज पाया गया था ! सोशल मीडिया पर यह चर्चा बड़े जोरों पर है है कि कसाब की मौत की वजह फांसी नहीं बल्कि एक मच्छर है ! ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने कसाब की मौत को गोपनीय बनाकर रखा और मीडिया को कानों-कान खबर नहीं लगने दी ! इस बात में कितनी सच्चाई है ये कहना अभी मुश्किल है ! लेकिन जिस तरह से सरकार का कसाब और दूसरे आतंकवादियों के प्रति बर्ताव रहा है उससे तो मौजूदा सरकार पर शक करना लाजमी है ! एक आतंकवादी जिसने 2001 में संसद पर हमला करके संसद की पवित्रता को लहूलुहान किया था ! उसको लेकर सरकार ने उस तरह की तत्परता नहीं दिखाई जैसा एक आतंकवादी के पकड़े जाने पर दिखाई जाती है ! जो मामला तीन से छह महीने तक ही खिंचना चाहिए था उसे अब तक लटका कर खींच रही है ! कुछ लोगों का तो ये भी मानना है कि पिछले दिनों सोशल नेट्वर्किंग साइटों पर हिंदुत्व का नारा बुलंद करते हुये कसाब को फांसी की मांग करने वालो की बढ़ती हुयी संख्या को देखते हुये सरकार हिन्दुवादी वोटों को रिझाने के लिए कसाब को चुनावी बकरे के रूप में स्तेमाल किया है सवाल इस बात को लेकर भी उठ रहे हैं कि कसाब की मौत तो हो गई किंतु देश के मंदिर संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु का क्या होगा, जो अब तक जिन्दा है,और है तो अब तक क्यों है ?????
अफजल संसद पर हमला करने का दोषी है ! उसे फांसी की सजा सुनाए 6 साल हो गए, लेकिन अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई !
पिछले सात साल से लंबित संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की सजा पर अमल हो तो कैसे हो ! 2001 में संसद पर हमले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में अफजल को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन अब तक क्यों उसकी दया याचिका पर फैसला नहीं हो पाया ? क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल समेत सात दोषियों की दया याचिका फाइलें गृह मंत्रालय को पुनर्विचार के लिए लौटा दी हैं ! विशेष सूत्रों के अनुसार अफजल समेत लगभग एक दर्जन आरोपियों की दया याचिका राष्ट्रपति महोदय के पास लंबित थीं, लेकिन इनमें से सात दया याचिकाएं उन्होंने गृह मंत्रालय को लौटा दी ! क्योंकि नए गृह मंत्री के आने के बाद सामान्य तौर पर राष्ट्रपति दया याचिकाओं को दोबारा राय के लिए भेजते हैं ! फाइलें लौटाए जाने से अफजल की फांसी में देरी होना निश्चित है ! लेकिन गेंद सरकार के पाले में है जैसे चाहें वैसे उछाल सकते हैं !
दरअसल, पिछले साल अगस्त में गृह मंत्रालय ने अफजल की दया याचिका खारिज करने की अनुशंसा के साथ फाइल राष्ट्रपति भवन भेजी थी ! माना जा रहा था कि 20 दिन के भीतर कसाब की दया याचिका पर फैसला लेने वाले राष्ट्रपति इस अफजल के मामले में भी ऎसा ही कुछ करेंगे, लेकिन दया याचिका पुनर्विचार के लिए भेजकर उन्होंने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है !
अब अफजल गुरू को भी जल्दी फांसी दिये जाने की मांग ने जोर पकड लिया है और विपक्षी बीजेपी ने पुरजोर तरीके से यह बात उठाई है ! कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह ने भी कहा कि सरकार को अफजल गुरू के मुद्दे पर जल्दी फैसला लेना चाहिए कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने भी कहा कि अफजल गुरु को जल्द फांसी होनी चाहिए !
वैसे देखा जाए तो इसे देश का लचर कानून ही कहेंगे जहां पर एक आतंकवादी पूरे विश्वास के साथ इस तरह से नरंसहार करता है जैसे वह इंसान नहीं दरिंदा हो और जिसका लक्ष्य मानव जाति का समूल नाश करना हो. ऐसे घृणित कृत्य को करने के बाद जब वह अपराधी पकड़ा जाता है तो उसे राजाओं जैसी सुविधा दी जाती है !
सरकार अफजल गुरु या राजाओना जैसे आतंकियों के मामले में जल्दबाजी नहीं दिखा रही ! इससे तो ऐसा ही महसूस होता है कि केंद्र सरकार फांसी की सजा को राजनीतिक चश्मे से देखती है, किसको जल्दी फांसी देने से उसका फायदा होगा और किसकी फांसी की सजा लटकाने से ! अब भारत की जनता सोच रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जघन्य अपराध करने वाले अफजल गुरु नामक आतंकवादी को फांसी मिलेगी तो वह बिलकुल गलत सोच रहे हैं ! क्योंकि भारत का लचर कानून और राजनैतिक वोट बैंक उसकी फांसी में अड़ंगा जरूर डालेगा. !
सरकार
के लिए ये समझने की बात है कि मुंबई हमले के सबसे बड़े आतंकी अजमल आमिर कसाब को
फांसी दिए जाने भर से ही आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाएगा ! कसाब से पहले भी एक आतंकी
है अफजल गुरु जिसने सदन में हमला कर देश की राजनीति की नींव को हिला कर रख दिया था
! कसाब के बाद अब फांसी का सवाल अफजल गुरु पर आकर रुक जाता है ! अब ये मुद्दा एक ‘राजनीतिक विवाद का
मुद्दा बन कर रह गया है !
अफजल
गुरु की फांसी के सवाल ने सियासी रंग पकड़ लिया है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में
जहां इस पर जमकर हंगामा हुआ था जिसने संसद
पर हमले की साजिश रची और उसे अंजाम तक पहुंचाया, उसकी फांसी का सवाल
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बवाल का सबब बन गया ! बीजेपी और पैंथर्स पार्टी के नेता
अफजल की फांसी के प्रस्ताव पर चर्चा के विरोध में खड़े हैं !
इतना सब होने के बाद भी अफजल गुरु की फांसी के लिए किसका इंतजार किया जा रहा है ! भारत सरकार को अब अफजल गुरु केस को भी जल्द हल करते हुये पाकिस्तान में बैठकर साजिश रचने वालों पर ध्यान देना चाहिए ! आमतौर पर कांग्रेस अफजल गुरु की फांसी के सवाल को टालती रही है ! यदि अगर दिसंबर 2001 में संसद पर हुआ हमला पूरी तरह से सफल हो गया होता तो देश को अपने शीर्ष राजनीतिज्ञों से हाथ धोना पड़ता ! बड़े अफ़सोस की बात है कि उसी आतंकी की दया याचिका अभी तक विचाराधीन पड़ी है ! और अफजल गुरु अभी तक जिंदा है तो मात्र हमारे कमजोर राजनीतिक नेतृत्व की वजह से, जो किसी न किसी कारण से इस मामले में कठोर निर्णय नहीं ले पा रहा है !
इतना सब होने के बाद भी अफजल गुरु की फांसी के लिए किसका इंतजार किया जा रहा है ! भारत सरकार को अब अफजल गुरु केस को भी जल्द हल करते हुये पाकिस्तान में बैठकर साजिश रचने वालों पर ध्यान देना चाहिए ! आमतौर पर कांग्रेस अफजल गुरु की फांसी के सवाल को टालती रही है ! यदि अगर दिसंबर 2001 में संसद पर हुआ हमला पूरी तरह से सफल हो गया होता तो देश को अपने शीर्ष राजनीतिज्ञों से हाथ धोना पड़ता ! बड़े अफ़सोस की बात है कि उसी आतंकी की दया याचिका अभी तक विचाराधीन पड़ी है ! और अफजल गुरु अभी तक जिंदा है तो मात्र हमारे कमजोर राजनीतिक नेतृत्व की वजह से, जो किसी न किसी कारण से इस मामले में कठोर निर्णय नहीं ले पा रहा है !
सुनीता दोहरे ....लखनऊ ....
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