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Showing posts from August, 2019

आश्चर्य और चिन्ता का विषय है शराब के बढ़ते ठेके और बढती खपत.......

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यह एक कडुवी सच्चाई है कि देश में शराबखोरी के चलते चाहें जितने बड़े हादसे हो जाएँ लेकिन सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती है हम सबको पूर्ण नशामुक्त समाज की स्थापना हेतु अपनी-अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। हम सबका दायित्व है कि सम्पूर्ण मानवता को मद्य एवं मादक पदार्थों से बचाने हेतु अपनी-अपनी भूमिका को अंजाम दें। स्वयं नशीले पदार्थों का परित्याग करें। जन-जन तक इसके दुष्परिणामों और भ्रांतियों की जानकारी को पहुंचायें। 1-      हमारे देश में एक ओर मद्य-निषेध विभाग शराब से बचने के लिए लोगों को नसीहतें करता है , दूसरी ओर आबकारी विभाग शराब की ख़ुद की दुकानें खुलवाता और इसकी बिक्री के लिए लाइसेंस प्रदान करता है |   इसका नतीजा यह है कि शराब दूर-दराज़ गांवों तक पहुंच गयी है और उन लोगों का भी जीवन तबाह कर रही है जो अभी तक शराब की पहुंच से बाहर थे । यह भी कम आश्चर्य और चिन्ता का विषय नहीं है । 2-      देखा जाये तो जिनको खाने को नहीं है परिवार भूख से तड़फ रहा है , बदन पर कपडे नहीं , पेट में अनाज नहीं पैर में चप्पल नहीं , मगर होठो से शराब का पौवा अवश्य लगा होता है l .... 3-      श

सत्य की ध्वजा फहराते हुए समाज को भी परहित की सीख दे।......

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सभी महान धर्म मनुष्य के अमरत्व को उसके कर्मो से जोड़ते हैं , शरीर से नहीं। देह का यह दर्शन हमेशा से अति मानवीय फंतासी का हिस्सा रहा है। इस संसार में हर कोई अमर होना चाहता है। लोग अमरत्व प्राप्त करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। लेकिन , इस अमरता के करीब पहुंच कर भी शरीर की नश्वरता को स्वीकार करना ही होता है। कहते हैं कि अमरत्व की चाह सृष्टि में किसे नहीं होती परन्तु सार्थक लक्ष्य के बिना जीवन निस्सार है। प्राचीन काल से ही अमरता की कल्पना हमेशा लोगों को लुभाती रही है। कोई भी व्यक्ति मृत्यु का वरण नहीं करना चाहता है। जब से मानव इस धरा पर आया है , तभी से वह अमरत्व की खोज में है . देखा जाये हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार , अमर देवताओं ने कितने अवतार पृथ्वी पर लिए , लेकिन उन्हें शरीर छोड़कर जाना ही पड़ा l परन्तु विचारणीय यह है कि क्या हमें अमरत्व चाहिए ? और यदि चाहिए भी तो क्या हम इस अमरत्व का सदुपयोग कर पाएंगे ? सदुपयोग ना कर पाने कि स्थिति में हमे इस नश्वर संसार में अधिक रहकर क्या करना, जहाँ प्रतिपल सबकुछ छीजता ही जा रहा है , चाहे वह काया हो या अपने से जुड़ा कु

अजीब कशमकश है अजीब उलझन है .. (एक ख्याल )

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किताबों के लिखे लफ्ज झूठ हो सकते हैं पर तेरी कही बात नहीं..... .. आखिर ये मोहब्बत भी क्या बला होती है, सोचने-समझने की ताकत ही छीन लेती है l..... सुनो मुझे इक खुला गगन चाहिए जिसमें मैं अपनी कलम की पंख ले उड़ सकूँ... “क्या साथ दोगे मेरा”...... जब तू बोलता है तो बिना पलक झपकाए सारी बातें दिमाग में तह सी लग जातीं हैं l लेकिन सच कहूँ तो कुछ समझ ही नहीं आती है l ज्यादा कुछ बोल ही नहीं पाती, कोई जवाब ही नही दे पाती l सिर्फ तुम्हे सुनती हूँ, तुम्हें पढ़ती हूँ, तुम्हे समझती हूँ l ..... और सबसे हास्यास्पद बात तो तब होती है कि बाद में तुम्हारी कॉल की रिकॉर्डिंग सुनकर जल्दी-जल्दी तुम्हारे दिए काम पूरे करती हूँ l एक बार में कभी काम सही नहीं होता l दुबारा कहने पर फिर दस बार चैक करके आगे बढाती हूँ , कि कहीं गलत ना हो l ताज्जुब तो ये है कि जिन कामों से तुम्हारा वास्ता नहीं है वो काम बड़े अच्छे से हो जाते हैं l हसीं तो अपनी बेवकूफी पर तब आती है जब अपने ही साइन भूल जाती हूँ l कौन कहता है कि इश्क में दर्द नहीं होता, मैं कहती हूँ कि इश्क इक ऐसा समुन्दर है जिसमें उसे अपनी लह

शाम की उंगलियों में थमा गुनगुनी चाय का प्याला....

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सांझ का झुरकुटा अपने यौवन पर झूम रहा था l बीते दो बरसों में क्या से क्या हो गया l धीरे-धीरे ठंडी हवाओं के झोकों की खुमारी को महसूस करते हुए रोशनी अपने लॉन की घास पर नंगे पैर अनवरत सी टहल रही थी , गुमसुम सी कुछ सोचती हुई l हर रोज शाम की उंगलियों में थमा गुनगुनी चाय का प्याला होता है और ऑफिस की व्यस्तताओं में राहत देने वाला उसका चेहरा भुलाए नहीं भूलता है l जैसे भयंकर गर्मी के बाद बारिश की छोटी छोटी बूँदें बेचैन मन को आश्वस्ति सी देती रहतीं हो । ठीक उसी तरह रौशनी के लिए कमल की यादें थी l पलकों पे आंसू छुपाये रोशनी अन्दर ही अन्दर टूट गई थी l रौशनी अपने मातापिता की इकलौती औलाद थी l अपने मातापिता के साथ. बहुत खुश थी जब जो चाहती वह मिल जाता , सबकुछ उसी का तो था l पिता पेशे से इंजीनियर हैं लिहाजा , उन्होंने अपनी बेटी रौशनी को भी इंजीनियर ही बनाया था इसलिए कमी का तो कहीं सवाल नहीं था l एक दिन अचानक रोशनी ने माँ से कहा कि मैं कमल के साथ शादी करना चाहती हूँ कमल मेरी कम्पनी में कार्यरत है और 4 महीने पहले ट्रांसफर पर आया है l रोशनी की माँ ने अपने पति विजयप्रताप के कानों में ये बात डाल

सिर्फ जिक्र भर से रुह कांप जाती हैं

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देवदासियों को अतीत की बात मान लेना गलत होगा। दक्षिण भारतीय मंदिरों में किसी न किसी रूप में आज भी उनका अस्तित्व है। देवदासी प्रथा को परिवार और उनके समुदाय से प्रथागत मंज़ूरी मिलती है देवदासी प्रथा 21वीं सदी के मानव समाज के लिये शर्मसार करने वाली हैं। इन्हीं कुरीतियों में से एक है- देवदासी प्रथा l सिर्फ कहने को कर्नाटक और महाराष्ट्र में देवदासी प्रथा उन्मूलन संबंधी कानून पहले से ही प्रभावी हैं। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा-370 व 370 ए और इंमोरल ट्रैफिक प्रीवेंशन एक्ट में वेश्यावृत्ति गैरकानूनी है।लेकिन सत्य यही है कि देवदासियां आज भी हैं. जिन्दगी के अंतिम पडाव कि ओर अग्रसर इन सभी देवदासियों के दर्द एक जैसे हैं। बहुत कोशिशों के बावजूद भी देवदासियां अपनी ढलती उम्र पर काबू नहीं कर पाती । उम्र की उस चौखट पर पहुंच चुकी देवदासी जहां सिमटता योवन भी   कामुकता नहीं जगा पाता l तब ये देवदासियां नशे की आदी हो जाती हैं। सभी के जख्म एक जैसे हैं , सभी गूंगी और असहाय सी कातर निगाहों से एक दूसरे को देखती रहतीं है पर कुछ कर नहीं सकतीं l सिर्फ कहने को देवदासी प्रथा कानूनन बंद कर दी गई ह