अजीब कशमकश है अजीब उलझन है .. (एक ख्याल )




किताबों के लिखे लफ्ज झूठ हो सकते हैं पर तेरी कही बात नहीं.......


आखिर ये मोहब्बत भी क्या बला होती है, सोचने-समझने की ताकत ही छीन लेती है l..... सुनो मुझे इक खुला गगन चाहिए जिसमें मैं अपनी कलम की पंख ले उड़ सकूँ... “क्या साथ दोगे मेरा”......
जब तू बोलता है तो बिना पलक झपकाए सारी बातें दिमाग में तह सी लग जातीं हैं l लेकिन सच कहूँ तो कुछ समझ ही नहीं आती है l ज्यादा कुछ बोल ही नहीं पाती, कोई जवाब ही नही दे पाती l सिर्फ तुम्हे सुनती हूँ, तुम्हें पढ़ती हूँ, तुम्हे समझती हूँ l .....
और सबसे हास्यास्पद बात तो तब होती है कि बाद में तुम्हारी कॉल की रिकॉर्डिंग सुनकर जल्दी-जल्दी तुम्हारे दिए काम पूरे करती हूँ l एक बार में कभी काम सही नहीं होता l दुबारा कहने पर फिर दस बार चैक करके आगे बढाती हूँ , कि कहीं गलत ना हो l ताज्जुब तो ये है कि जिन कामों से तुम्हारा वास्ता नहीं है वो काम बड़े अच्छे से हो जाते हैं l हसीं तो अपनी बेवकूफी पर तब आती है जब अपने ही साइन भूल जाती हूँ l
कौन कहता है कि इश्क में दर्द नहीं होता, मैं कहती हूँ कि इश्क इक ऐसा समुन्दर है जिसमें उसे अपनी लहरों तक का शोर नहीं सुनाई देता l सुनाई देती है तो सिर्फ इक ऐसी आवाज़ “जिसमें सिर्फ तू शामिल है”
सुनीता दोहरे 
प्रबंध सम्पादक /इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़ 
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति

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