अपने अधिकारों एवं दायित्वों के प्रति कितने जागरुक हैं उपभोक्ता : शराबबंदी संघर्ष समिति







“शराबबंदी संघर्ष समिति”  पिछले कई वर्षों से शराबबंदी अभियान के साथ-साथ समाज में सुलगते सवालों को मद्देनजर रखते हुए इस देश की आवाम में  जागरूकता का कार्य कर रही है l शराबबंदी संघर्ष समिति  अपने नेत्रत्व में “उपभोक्ता जागरूक अभियान” की मुहीम भी चला रही है l समाज के प्रति जागरूक ये समिति समय-समय पर नागरिकों को सचेत करती रहती है l शराबबंदी संघर्ष समिति के अध्यक्ष जनाब मुर्तजा अली ने पूर्ण प्रज्ञावान और जागरूक नागरिक बनकर देश और समाज की सेवा करने का जो बीड़ा उठाया है उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है l उनका कहना है कि हम सभी को पूर्ण प्रज्ञावान और सचेत नागरिक बनकर राष्ट्र और समाज की सेवा करनी चाहिए l समाज सेवा से बड़ा पुण्यकार्य कोई नहीं। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है।
देखा जाए तो आज बाजारवाद की प्रवृत्ति बढ़ रही है। भौतिकता की ओर कंपनियों का रूख है। खाद्य पदार्थों में मिलावट, चोर बाजारी, कम तौल, मिथ्या-प्रचार, भ्रामक विज्ञापन, तथ्यों को छिपाकर उपभोक्ताओं के साथ छल किया जा रहा है। छोटी से छोटी वस्तु से लेकर बड़ी वस्तुओं तक की खरीद में किसी प्रकार ठगी या धोखा मिलने पर फोरम का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। न्यायालय 90 दिनों में न्याय देने में प्रतिबद्ध है। इसलिए कोई भी वस्तु खरीदते समय रसीद जरूर रखें । मुकदमें में वह बहुत बड़ा आधार होता है। भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए अनेक संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, नियम-कानून एवं उपभोक्ता अदालतें बनायी गयी हैं, इसके बावजूद शहर हो या गांव, उपभोक्ताओं का शोषण जारी है। अतः ग्राहकों को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है। बहुत कम उपभोक्ता जानते होंगे कि उनके क्या अधिकार हैं। हमारे समाज में अक्सर लोगों द्वारा किसी के ठगे जाने, धोखाधड़ी, गुणों के विपरीत सामान दिए जाने आदि की शिकायतें सुनने को मिलती हैं। इसका प्रमुख कारण, एक तो उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी है, दूसरी तरफ वे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का साहस नहीं जुटा पाते। सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई क़ानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी क़ीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं आपकी मेहनत की कमाई कहीं पानी की तरह ना बह जाये इसलिए जब आप बाजार में कुछ खरीद रहे होते हैं, तो दरअसल आप अपनी मेहनत के बदले खरीद रहे होते हैं। इसलिए आप चाहते हैं कि बाजार में आपको धोखा न मिले। इसके लिए आप पूरी सावधानी बरतते हैं। लेकिन बाजार तो चलता ही मुनाफे पर है। अपना मुनाफा बढ़ाने के चक्कर में दुकानदार, कंपनी, डीलर या सर्विस प्रवाइडर्स आपको धोखा दे सकते हैं। हो सकता है आपको बिल्कुल गलत चीज मिल जाए। या फिर उसमें कोई कमी पेशी हो। अगर ऐसा होता है और कंपनी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है, तो चुप न बैठें। आपकी मदद के लिए कंस्यूमर फोरम मौजूद हैं, वहां शिकायत करें l ये सत्य है कि उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण जिस देश में होगा, वहां का लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक 24 दिसंबर 1986 को पारित हुआ था l उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्‍ताओं के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्‍य सहित संयुक्‍त मार्गदर्शी सिद्धांतों के आधार पर 1986 में लागू किया गया था इस अधिनियम में मुख्‍यत: दंडात्‍मक या निवारणात्‍मक मार्ग के स्‍थान पर शोषण और अनुचित रूप से लेनदेन के विभिन्‍न प्रकारों के खिलाफ उपभोक्‍ताओं को प्रभावी सुरक्षा प्रदान की जाती है l यह सभी वस्‍तुओं और सेवाओं पर लागू होता है जब तक कि इसे विशेष रूप से छूट न दी जाएं और इसमें तीव्र तथा कर्म खर्चीले न्‍याय मार्ग के लिए निजी, सार्वजनिक और सहकारी क्षेत्रों को शामिल किया जाता है.
उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिकार भारत के संविधान की धारा 14 से 19 बीच अधिकारों से आरंभ होते हैं l इसके बाद इस अधिनियम में 1991 तथा 1993 में संशोधन किये गए l उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम को अधिकाधिक कार्यरत और प्रयोजनपूर्ण बनाने के लिए दिसंबर 2002 में एक व्‍यापक संशोधन लाया गया और 15 मार्च 2003 से लागू किया गया l परिणामस्‍वरूप उपभोक्‍ता संरक्षण नियम, 1987 में भी संशोधन किया गया और 5 मार्च 2004 को अधिसूचित किया गया था.
उपभोक्ताओं के अधिकार
जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं की बिक्री के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार। खरीदी गई वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को गलत व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके। जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन। उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार। अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार। सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार। अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार l
बढ़ते बाज़ारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तो देखने को मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है l बाजार में होने वाली ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटी सामग्री का वितरण, अधि‍क दाम वसूलना, बिना मानक वस्तुओं की बिक्री, ठगी, नाप-तौप में अनियमितता, गारंटी के बाद सर्विस प्रदान नहीं करने के अलावा ग्राहकों के प्रति होने वाले अपराधों को देखते हुए जागरूकता अभि‍यान चलाए जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक करना एवं बाजार की गड़बड़ियों और सामाजिक अन्याय के खिलाफ विरोध व्यक्त करना होता है l उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाएं l इसी क़ानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं l इस क़ानून से पहले उपभोक्ता ब़डी कंपनियों के खिला़फ बोलने से गुरेज़ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है l सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं l टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है l देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं l उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई “जागो ग्राहक जागो” जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है.
कैसे करें शिकायत ?
शिकायत के साथ आपको ऐसे डॉक्युमेंट्स की कॉपी देनी होगी, जो आपकी शिकायत का समर्थन करें। इनमें कैश मेमो, रसीद, अग्रीमेंट्स वैगरह हो सकते हैं। शिकायत की 3 कॉपी जमा करानी होती हैं। इनमें एक कॉपी ऑफिस के लिए और एक विरोधी पार्टी के लिए होती है। शिकायत व्यक्ति अपने वकील के जरिए भी करवा सकता है और खुद भी दायर कर सकता है। शिकायत के साथ पोस्टल ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के जरिए फीस जमा करानी होगी। डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर प्रेजिडंट, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम के पक्ष में बनेगा। हर मामले के लिए फीस अलग-अलग होती है.
उपभोक्ता संरक्षण एवं जनजागृति के लिए सघन अभियान गॉवों में चलाये जाने चाहिये साथ ही साथ मिलावट को रोकने के लिए सुदृढ़ नियंत्रण व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है। कम माप-तोल को रोकने के लिए सरकार माप-तोल विभाग को उपभोक्ता विभाग में विलय कर दिया है। खाद्य विशलेषक की नियुक्ति कर मिलावट की समस्या से निदान मिल सकता है। उपभोक्ता की सजगता एवं जागरूकता से स्वस्थ एवं सुरक्षित देश का निर्माण हो सकता है.
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष शराबबंदी संघर्ष समिति


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