कमजोर कानून और इन्साफ मिलने में देर भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है



बलात्कार के पहलुओं पर गौर करें तो कुछ प्रमुख कारण सामने आते हैं हर रोज महिलाओं के रेप और हत्याओं की ख़बरें सामने आती हैं देखा जाये तो ये सिर्फ हमारी ही संस्कृति है कि अपराध पुरुष करते हैं और सजा स्त्रियों को दी जाती है शूपर्णखा के नाक कान लक्ष्मण ने काटे और अपहरण सीता का किया गया, जुआ युद्धिष्ठिर् ने खेला और वस्त्र हरण द्रोपदी का किया गया, बलात्कार इंद्र ने किया और पत्थर अनुसूया को बनना पड़ा, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण भीष्म ने किया और आत्महत्या अम्बा को करनी पड़ी, इस तरह के उदाहरणों से हमारे ग्रन्थ भरे पड़े हैं जब हमारी संस्कृती ही ऐसी होगी तो बलात्कार और स्त्रियों पर जुर्म कैसे कम होंगे ?


देखा जाये तो कुछ केसेस तो कमजोर तबके को दबाने किये ही किये जाते हैं जब रेप कमजोर तबकों को डराने और ताक़त हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगे तब संघर्ष करना बेमानी है.
जब बलात्कार जैसी समस्या की बात होती है तो हमें सबसे पहले ये समझना होगा कि बलात्कार एक सामाजिक समस्या है या कानूनी कानून और सरकार व्यवस्था की बात तो तब आती है जब बलात्कार जैसा घृणित अपराध हो चुका होता है विगत दिनों बलात्कार करके हत्याए कर देना इस तरह की घटनाओं से साफ है होता है कि प्रदेश का युवा वर्ग अपराध की और बढ़ रहा है और इसको कानून का कोई खौफ दिखाई नहीं देता.
नशा आदमी की सोच को विकृत कर देता है. उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और उसके गलत दिशा में बहकने की संभावनाएं शत-प्रतिशत बढ़ जाती हैं. ऐसे में कोई भी स्त्री उसे मात्र शिकार ही नजर आती है.
स्त्री देह को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है. पोर्न फिल्में और फिर उत्तेजक किताबें पुरुषों की मानसिकता को दुर्बल कर देती हैं और वो उस उत्तेजना में अपनी मर्यादाएं भूल बैठता है. और यही तनाव ही बलात्कार का कारण होता है.
गांव और शहर के सुनसान खंडहरों की बरसों तक जब कोई सुध नहीं लेता है तब यह जगह आवारा और आपराधिक किस्म के लोगों की समय गुजारने की स्थली बन जाती है. फार्म हाऊस में जहां बिगड़ैल अमीरजादे इस तरह के काम को अंजाम देते हैं वहीं खंडहरों में झुग्गी बस्तियों के गुंडे अपना डेरा जमाते हैं.
हमारे देश का कानून लचर है, ये सब मानते हैं. अगर कानून सख्त हो तो शायद अपराधिक मामलों की संख्या बहुत कम हो जाती. कमजोर कानून और इंसाफ मिलने में देर भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
देखा जाये तो बलात्कार रोकने में किसी भी देश का कानून सक्षम  नहीं हुआ है चाहे वो अमेरिका हो यूरोप मध्य एशिया के मुस्लिम देश जिनके उक्त कानून को हमारे देश में लागू करने की आम जनता वकालत करती है वहाँ भी बलात्कार बंद नहीं हो रहे है और अपने भारत देश की व्यवस्था के तो वारे ही न्यारे हैं न हालातों को देखते हुए हमें मान लेना चाहिए कि बलात्कार की समस्या कानून से ज्यादा सामजिक समस्या है अतः इसे रोकने के उपाय भी समाज को ही करने पड़ेंगें l
कुछ केसेस में बलात्कार के मामले इस बात के घोतक है कि  बलात्कार के ज्यादातर मामलों में परिचित या रिश्तेदार ही मुख्य भूमिका निभा रहे है, इसलिए यह मामला सिर्फ कानून व्यवस्था को कोसने का ही नहीं बल्कि नैतिक मूल्यों और संस्कार का भी है हमारे सामाजिक ढांचे में कोई बुराई जरूर है जब कोई महिला अपने घर में ही सुरक्षित नहीं तो वह बाहर कैसे सुरक्षित रह सकती है l
 आज कुछ हद तक बच्चो का शोषण इसलिये भी होता है क्योंकि परिवार विखंडित हो चुके है और उनकी निगरानी करने वाला कोई बुजुर्ग या महिला नही होती है। मैं ये नही कहती कि संयुक्त परिवारो मे ऐसी घटनाये नही होती लकिन औसतन बहुत कम होती है.
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और मनुष्य द्वारा किये गए हर अपराध की जिम्मेदारी पूरे समाज को लेनी पड़ेगी सिर्फ कानून व्यवस्था, नेता या सरकार पर दोष मढ़ संगम स्नान का फल नहीं मिल सकता और एक सच ये भी है कि पुरुष की विकृत मानसिकता भी इसमें एक बड़ा कारक है,

इसलिए इसके हर पहलू या जड़ तक पहुँचने के लिए भी भरपूर प्रयत्न करने होंगे l
अब आवश्यकता इस बात की है कि देश का हर राजनैतिक दल  सामाजिक और महिला संगठन, आमजन, कानूनविद और मनोवैज्ञानिक इस घिनौने अपराध के निवारण के लिए एकजुट हो जाएँ ताकि भविष्य में कोई और बच्ची ऐसे घृणित हादसे की भेंट नहीं चढ़ जाए l
विगत दिनों हुये इन हादसों ने भारत को झकझोर कर रख दिया है  आखिर क्यों ऐसी घटनाये घटती है अगर देखा जाए तो सारे के सारे लोग पहले लड़की को ही दोष देते है
उसने ऐसे वैसे कपड़े पहने होंगे या रात में निकलने की जरूरत ही क्या थी. अब भोगो उसका परिणा.होगी बाय्फ्रेंड के साथ ऐसे वैसे बैठी लोगों को मौका मिल गया तरह-तरह की बाते करने का l  बलात्कार तो सलवार कुरता वाली, साडी वाली और शादीशुदा औरत का भी होता है  इन्होने तो भरे पूरे कपड़े पहन रखे होते हैं l
फिर गलती उसी गंदी नजर की है जिसमे वहशीपन भरा रहता है किसी भी समाज में किसी भी स्त्री का बलात्कार होना केवल उस स्त्री के साथ अन्याय नहीं वरन उस समाज के सभ्य होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है.  
विगत दिनों हुए दिल्ली में एक लड़की के साथ अमानवीय बलात्कार और फिर उसकी मौत देश में स्त्रियों की हालत को बयाँ करती हैं, ऐसा ये पहली और आखरी घटना नहीं थी  देश में लगभग हर २० मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है. ये तो वो आकडे हैं जो पीड़ित द्वारा पुलिस में शिकायत की जाती है, सोचिये .. ये आकडे इससे कही  ज्यादा होंगे क्योंकि अभी भी 80% स्त्रियाँ लोक लाज गरीब, असहाय या अशिक्षित होने के कारण थाने तक पहुँच ही नहीं पाती हैं क्या ऐसे में भारत को सभ्य कहा जा सकता है ? 
पुरुषो को अपनी इच्छा पूर्ति के लिये (शादी) लड़कियां नही मिलती. हमारे पूर्वजो ने कुछ सोच समझ कर ही शादी का पवित्र बन्धन बनाया था, कि एक को एक साथी मिल जाये, जिसके साथ वो अपनी शारीरिक भूख तो मिटा ही सके और एक जिम्मेदार सामाजिक नागरिक भी बन सके.

जबकि बलात्कार के जघन्य अपराध के लिये सजा का उपयुक्त प्रावधान कानून मे है
, लेकिन कानून का पालन करवाने वाला सिस्टम इतना करप्ट है की वहां पैसे के बल पर सब कुछ हो जाता है l
इन हालातों को देखते हुए भारतीय महिलाओं को इस हक़ीकत से खुद को आत्मसात कराना है कि उन्हें खुद को बचाना है, सही कपड़े पहनने हैं, अकेले बाहर नहीं जाना है या फिर घर पर रहना है अगर ये सब नहीं तो जोख़िम उठाने को तैयार रहना है. इसमें सबसे ज़्यादा भयावह बात ये है कि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जिसमें बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है ख़ास तौर पर तब जब जनता भी इस बात की ओर कोई ख़ास ध्यान नहीं देती है लोकतांत्रिक सुधार संघ के शोध में कहा गया है कि पिछले कई वर्षों में विभिन्न स्तरों के चुनावों में ऐसे उम्मीदवार खड़े किए गए थे जिनके खिलाफ़ महिलाओं पर हिंसा करने  और अन्य अपराध करने के आरोप लगे हुए हैं अब ऐसी देश का भविष्य क्या होगा........ 




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