इस आधुनिक युग में स्त्री आज भी पुरुषों के समकक्ष नहीं(सच का आइना )
बॉक्स ..... स्त्रियों को लेकर हमारी सामाजिकता में आज भी वही तय मानक हैं जो पुरुषवादी मानसिकता ने तय कर रखे हैं. स्त्री-पुरूष में विषमता की जड़े तो मुझे इस पढ़े लिखे वर्ग में भी कम होते दिखाई नहीं देती....... भारतीय संविधान भले ही प्रत्येक नागरिक के समान अधिकार की घोषणा करता हो लेकिन स्त्री आज भी पुरुषों के समकक्ष नहीं है. वो सारे अधिकार जो एक पुरुष को जीवन के प्रथम क्षण से मिलते है वो स्त्रियों को नहीं मिलते l इस भारतीय समाज में जीवन के किसी न किसी मोड़ पर उसे यह अहसास करा दिया जाता है कि वह स्त्री है. सच तो ये है कि हमारे पुरुष-प्रधान समाज स्त्री अधिकारों में स्त्री अस्तित्व के भ्रम को अभी तक स्त्री अधिकारों को ठीक तरह से परिभाषित न किया जाना ही सबसे बड़ा मूल कारण है. क्योंकि स्त्रियों को लेकर हमारी सामाजिकता में आज भी वही तय मानक हैं जो पुरुषवादी मानसिकता ने तय कर रखे हैं. स्त्री-पुरूष में विषमता की जड़े तो मुझे इस पढ़े लिखे वर्ग में भी कम होते दिखाई नहीं देती . क्योंकि स्त्री खुद चुटकी भर सिंदूर और मंगलसूत्र सहित लाल जोड़े में लिपटी हुई अपने आपको एक बने बनाये खांच
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