नारी को प्रकृति ने स्वयं शक्ति का रूप दिया है.....






भारत में कई कानून बनने के बाद भी बलात्‍कार की वारदातें बदस्‍तूर जारी हैं। आखिर हमारे समाज में यौन हिंसा जैसे घिनौने अपराध होते ही क्यों है? जैसे-जैसे हमारा समाज अधिक शीक्षित और प्रगतिशील होता जा रहा है, वैसे-वैसे ही समाज में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं । खासतौर पर हाल के दिनों में नाबालिग बच्चियों के यौनशोषण के मामले लगतार बढ़ते ही जा रहे हैं | रोज़ाना अलग-अलग राज्यों से बलात्कार की घटना की खबरें आती हैं l महिलाओं के प्रति अपराध विशेषकर बलात्कार की घटनाओं का मूल कारण है महिलाओं के प्रति समाज की विकृत धारणाएं और महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता। इसी प्रकार महिलाओं के प्रति हिंसा, चाहे वह बाहरी हो या फिर घरेलू, के पीछे महिलाओं के प्रति हीन भाव का होना प्रमुख कारण है। हम सब एक खाली पन्ने के साथ पैदा हुए हैं, जो धीरे-धीरे जीवन के अनुभवों से भरता जाता है, यही अनुभव हमें आकार देते हैं कि हम क्या बनना चाहते हैं. हम सब अपनी-अपनी परवरिश से प्रभावित होते हैं, जो हमारी जीवन की कहानी के पन्नों के लिए नींव का काम करती है.
एक साफ़ सुथरे चरित्र की महिला चुपचाप अपने दर्द को समेटे खून के आंसूं रोती है. वह बेचारी उस अपराधी का कुछ नहीं बिगाड़ पाती. उलटे पुलिस के पास जाने का सारा नुकसान अकेले पीड़िता और उसके परिवार को झेलना पड़ता है. ऐसी अंधेरगर्दी को देख कर कौन कह सकता है कि ये देश महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं l घर के भीतर से लेकर घर के बाहर तक महिलाओं को आज भी तरह-तरह के अपराधों का सामना करना पड़ता है। हालांकि कानून अब हमारे साथ पहले की तुलना में थोड़ी ज्यादा मजबूती से खड़ा है, फिर भी ज्यादातर मामलों में महिलाएं व परिवार के लोग चुप्पी साध लेते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि घटना हो जाने के बाद मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन व विरोध करने के बजाय सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति आम विचारधारा में बदलाव लाने की कोशिश की जाए, ताकि समस्या का जड़ से समाधान संभव हो सके। जब भी किसी सार्वजनिक स्थल पर कोई छेड़छाड़ या चलती बस में या कार में बलात्कार जैसा अपराध होता है तब तब पीड़िता सौ बार मरती है. जब भी किसी पीड़िता के सम्मान को ठेस लगी है तो उसे और ही कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है फिर भी ऐसी स्थिति पीड़िता अपने साथ हुए जुर्म के खिलाफ न्याय पाने के लिए पुलिस में रिपोर्ट लिखाने जाती है. तो पीडिता के द्वारा थाने के दस चक्कर लगाने पर भी उनकी शिकायत कोरे कागज़ पर ही लिखी जाती है और अगर किसी का सोर्स है तो काफी हील हुज्जत के बाद एफ़आईआर लिखी जाती है सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। महिलाओं को समान दर्जा और सुरक्षित माहौल देने के लिए जरूरी है कि छोटी उम्र से ही लड़का हो या लड़की उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। नियम व कायदे-कानून दोनों के लिए बराबर बनाए जाएं। यदि किसी महिला के साथ कोई घटना होती है तो परिवार को उसका साथ देना चाहिए ताकि वह खुलकर अपनी समस्या को उनके सामने रख सकें। सबसे हैरानी की बात तो ये है कि आरोपी {अपराधी} पीडिता की शिकायत पर अगर गिरफ्तार हो भी जाता है तो फौरन ही ज़मानत पर रिहा भी कर दिया जाता है. फिर एक नया सिलसिला शुरू होता है पीडिता के घरवालों से रुपये ऐठने का, जो कि पुलिस वाले बखूबी करना जानते हैं. पुलिसवालों का पीडिता के घर वर्दी में जाने से आस-पड़ोस में पीडिता के घर वालों की बदनामी होती है.
क्या पुरुष समाज कभी अपनी नैतिकता का दायरा तय कर पाएगा l सारी मर्यादाओं को ताक पर रख रंगरेलियां मनाते ये अपराधी प्रवत्ति के पुरुष आगे रहते हैं लेकिन दोषी फिर भी स्त्री ही होती है. कितना गिर गया है ये समाज. और अब अभी कितना गिरेगा. रसातल में भी जगह बचेगी या नहीं ? जब एक महिला का वजूद आहात हो रहा होता है तब पुरुष के अपने आदर्श, संस्कार, मूल्य, नैतिकता, गरिमा और दृढ़ता किस जेब में रखे सड़ रहे होते हैं ? सारी की सारी मर्यादाएँ देश की 'सीताओं' के जिम्मे क्यों आती हैं जबकि 'राम' के नाम पर लड़ने वाले पुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम की छबि क्यों नहीं दिखाई देती.

ये भी एक कटु सत्य है कि समाधान की दिशा में पहल अब नारी को ही करनी होगी जिसे प्रकृति ने स्वयं शक्ति का भी रूप दिया है l अगर हमारे इस मजबूर देश का कानून रूस के कानून की तरह बलात्कारियों को नपुंसक बना देने का साहस नहीं दिखा सकता तो कम से कम स्त्री को तो इतना ताकतवर बना दे कि वह स्वयं जब बलात्कारी और अत्याचारी को दंड दे तो उसके हिस्से में आई कानूनी जांच का मानवीय दृष्टि से मूल्यांकन हो l ताकि उसे अदालत की घिनौनी बहस और कार्यवाहियों से न गुजरना पड़े l
समाज में रहने वाले हर वर्ग के व्यक्तियों को नारियों के साथ हो रही निंदनीय घटना को होते देख चुपचाप बैठना नहीं चाहिए क्योंकि चुप बैठना भी एक परोक्ष रूप से सामाजिक अपराध करना है, क्योंकि हम समाज में रहते हैं तो समाज के प्रति हमारे भी कुछ दायित्व हैं हां, कुछ भी करने से पूर्व होश न खोएं, साथ मिलकर कदम उठाएं, याद रखिए अन्याय करने वाला भी भीतर से भयभीत होता है, ऐसे में यदि उसे एक पूरे समूह से लड़ना पड़े तो वह जल्दी हार मान लेता है.
देखा जाये तो सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के होते हैं, लेकिन वे नहीं जानती कि थप्पड़ मारना, थूकना, अपमानजनक व्यवहार करना आईपीसी की धारा 323 के अंतर्गत कानूनन अपराध है। वहीं यदि उनको गहरी चोट लगती है तो यह आईपीसी की धारा 498 के तहत और हत्या करने का प्रयास धारा 307 तथा रेप करने की कोशिश धारा 511 और बलात्कार धारा 375 के तहत गंभीर अपराध है, जिसके लिए अपराधी को 2 साल से 10 साल तक की सजा मिल सकती है। यदि अपराध संगीन हो तो दोषी को आजीवन सजा व फांसी भी हो सकती है l अब मूल सवाल यह है कि क्या ये उपाय पर्याप्त हैं? क्या इन उपायों से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की प्रवृति पर अंकुश लग सकेगा? क्या इन उपायों से थाने की व्यवस्था सुधर पायेगी? क्या इन उपायों से कानून का शासन स्थापित हो पायेगा? क्या इन प्रावधानों से लोगों के मन में पुलिस और प्रशासन पर विश्वास कायम होगा ?
वर्तमान परिस्थितियां, कानून व्यवस्था और समाधान के इन उपायों को देखने पर तो यही महसूस होता है कि सरकार को या तो असल मुद्दा समझ नही आ रहा है या फिर उनके लिए महिलाएं कोई मायने नही रखती हैं.
आज की नारी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है उन्हें समाज सेवा सहित अन्य सभी क्षेत्रों में आगे आना होगा, आदि शक्ति के रूप को धारण कर उन्हें अन्याय, अत्याचार के खिलाफ लड़ना होगा l आज के आधुनिक युग में जो हो रहा है उसको देखते हुए हमें समझना है कि नारी को जो परंपरा से प्राप्त गुणों का विशाल भण्डार मिला है अब उसके प्रचार का समय आ गया है l ये बात सोलह आने सत्य है कि यदि आज का समाज लड़की को जिंदा न जलाए, कन्या भू्ण हत्या न करे, उसे घर की चारदीवारी की सामग्री न समझे और अपने बराबर का हक देते हुए अपनी दूषित मानसिकता का त्याग करे तो फिर वह दिन दूर नहीं जब बेटियां इस देश में अपनी क्षमता का परचम लहरायेंगी l क्योंकि आज भी समाज में नारी त्याग, शांति और ममता की देवी के रूप में विराजमान है l शास्त्रों में कहा गया है कि......यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवता: रमन्ते ! अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं.
उपाय ऐसे होने चाहिए जो अपराध को रोकने के साथ- साथ कानून के शासन की स्थापना भी सुनिश्चित करने वाले हों. जो न केवल अपराधी के मन मे अपराध का भय पैदा करें , बल्कि लोगों का प्रशासन और पुलिस में विश्वास जाग्रत करें। यदि सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर संवेदनशील है, तो उसका रास्ता पुलिस सुधार से ही होकर गुजरता है। जब तक पुलिस के कार्यों में राजनीतिक दखलंदाजी बन्द नही होगी, पुलिस की राजनीतिक दलों की बजाय लोगों और कानून के प्रति जवाबदेही नही होगी, तब तक इन उपायों से कुछ हासिल नही होगा.

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति


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