भड़कीले, शोख व अंग-दिखाऊ कपड़ों में महिलाओं की गरिमा धूमिल होने का खतरा बना रहता है...
भड़कीले, शोख व अंग-दिखाऊ कपड़ों में महिलाओं की गरिमा धूमिल होने का खतरा बना रहता है...
मैं हर पहनावे का सम्मान करती हूँ सलवार सूट हो, साड़ी हो, जीन्स हो या फिर मिनी स्कर्ट टॉप l क्यूंकि .....पहनावा एक
निजी सवाल है, देखा जाए तो भारतीय साड़ी की गरिमा का जितना
बखान किया जाए, उतना ही कम है। क्यूंकि साड़ी भारतीय नारी का
वस्त्र ही नहीं, उसकी अस्मिता की भी पहचान है। महिलाओं के वस्त्र
हमेशा शालीन व गरिमायुक्त ही होने चाहिए l
मैं उन महिलाओं के संदर्भ में जो “वेल ड्रेसड” होने के बाद अपनी ब्रा की स्ट्रेप को दिखाने को ही फैन्शन समझती हैं जब कभी
सोचती हूं, तो न जाने क्यों मन में अनंत सवाल कसमसाने लगते
हैं l मिनी स्कर्ट और छोटा टॉप पहने हुऐ और ब्रा की स्ट्रेप
दिखाने वाली लङकिया कहती हैं कि समाज के पुरूष हमें अपनी माँ बहनों की नजर से
देखे... कौन सा पुरूष स्तन और जांघो को दिखाने वाली महिलाओं को अच्छी नजर से
देखेगा ? और उन्हें अपनी माँ बहन मानेगा l ऐसी महिलायें अपनी मांगे जरा सोच समझ कर करें l समाज में छेड़छाड़, यौन प्रताड़ना, बलात्कार जैसे अपराधों को देखते हुए इस तरह के
परिधान को धारण करना अपराध को बढ़ावा देना है l
अगर देखा जाए तो पुरुषों की निगाह और विचार इतने ज़्यादा निकृष्ट हो गये है कि
उन्हें हर जगह और हर लड़की में सिर्फ सेक्स दिखता है l मेरा मानना है कि पहनावा भी कुछ हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार है l हम पाश्चचात्य
की ओर बढ़ रहे हैं l हमारे विचार और भावनाएँ पतन हो रही हैं इसका कारण हमें अपने
आपसे पूछना चाहिए l तड़क भड़क वाले कपड़े आदमी को आकर्षित करते है l लेकिन आज हमारी वेशभूषा को लेकर व्यक्ति की सोच
पश्चिम के रंग में रंगी हुई है | अगर लड़की के कपड़ों
से स्तनों की हलकी सी झलक दिखाई दे,
तो पुरुषों की नज़र
महिलाओं के उपरी हिस्से पर टिकी रहती हैं l भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक
प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है। इसीलिए इस तरह के भड़कीले कपड़े भारतीय
सभ्यता-संस्कृति से कतई मेल नहीं खाते हैं। क्यूंकि भारतीय सभ्यता व संस्कृति शालीन, सुसंस्कृत व अपने साथ दूसरों को मान देने की संस्कृति है।
जिस तरह से समाज में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ता जा रहा है उसमें महिलाओं को
खुद ही सजग और सावधान रहने की जरुरत है। महिलाएं हमेशा शालीन व ऐसे कपड़े पहनें, जो देखने में भड़कीले ना हों क्यूंकि भड़कीले, शोख व अंग-दिखाऊ कपड़ों
में महिलाओं की गरिमा धूमिल होने का खतरा बना रहता है। इससे कई बार उन्हें
छेड़छाड़, फब्तियों व फिकरेबाजी के अलावा बलात्कार तक का
सामना करना पड़ता है। मानसिक तनाव व मन ही मन भय अलग दिल के कोने में छाया रहता है
l ये सत्य है कि 'टाइट कपड़े' नि:संदेह व्यक्ति की सोई हुई काम-वासना को जगाते
हैं, जबकि साड़ी व सलवार-कुर्ता में ऐसा नहीं होता
है या उनकी तरफ कम ही ध्यान जाता है, जबकि टाइट कपड़े
पहनी हुई महिला को लोग बुरी दृष्टि से देखते हैं।
मेरी नजर में “वेल ड्रेसड” के बाद ब्रा की स्ट्रेप
दिखने से फेमिनिजिम नहीं वाहियातपना दिखता है। मैं ऐसे कई मानसिक रूप से बीमार
लोगों को देखती सुनती आई हूँ जिनको देखकर आप यकीन नहीं कर सकते कि उनकी सोच किस
कदर संकरी हैं, बात करने में वे एकदम सामान्य लगते हैं ऐसे
पुरुष अपनी बातों से दिखाते हैं कि उनकी सोच बहुत ऊँची है l जो मोबाइल में पोर्न रखते
हैं और इन्स्टाग्राम पर बोल्ड मॉडल्स को फॉलो करते हैं l लेकिन आश्चर्य तब होता है
जब यही लोग सबसे पहले ब्रा की स्ट्रेप देखकर ही उत्तेजित हो जाते हैं। आज भी ऐसे
कई पुरुष हैं, जिन्हें महिलाओं की ब्रा की स्ट्रेप भी अगर नजर
आ जाये तो उनकी नजर में वो महिला भोग की वस्तु हो जाती है l ना जाने कितने फिकरे
कस दिए जाते हैं उस महिला पर l क्या ऐसा
वे अपनी मां और बहन के लिबास के पीछे भी वही देखते हैं जो उन्हें बाहर की लड़कियों
में दिखता है l सड़क पर खड़े होकर जो लफंगे, लड़कियों और महिलाओं पर फिकरे कसते हुए जिन
अंगों की बात करते हैं वे उसी विशेष अंग से पैदा होते हैं, जब वे किसी लायक नहीं होते
हैं तब उन्ही विशेष अगों से उन्हें पोषण मिलता है l
मेरी समझ से अंत:वस्त्र की पट्टियां देख लेने से जिनका पौरूष जाग जाता है वो
बड़े ही धूर्त किस्म के व्यक्ति होंगे l उनके घर पर भी इस सबकी झलक दिखाई देती
होगी, क्या तब भी इनका पौरुष यू ही जागता होगा ? ऐसे घिनौने व्यक्तियों का केवल दूसरों
की मां बहनों को देखने भर से नजरिया तेजी से बदल जाता है.
ये बात हमें सोचने पर विवश करती है कि हमारा समाज इतना सभ्य नहीं है कि वो
लड़कियों के पहनावे को नज़रअंदाज़ कर दे l छेड़खानी या बलात्कार की घटनाएँ होती है
गंदी, बीमार और विकृत मानसिकता के कारण।
वैसे हर महिला को ये सच स्वीकारना होगा कि जो बात शालीन वस्त्रों में है वो
जींस, मिनी स्कर्ट या टॉप में कहाँ l
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
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