मुझे तलाश है एक लापता युवराज की (सच का आईना)

                               मुझे तलाश है एक लापता युवराज की (सच का आईना)

box……. देखा जाये तो विदेशी संस्कृति में रचा बसा ये युवराज शायद भारतीय संस्कृति में बहिन-बेटियों की इज्जत का आंकलन करने में पूरी तरह से असमर्थ है. वहीँ दूसरी तरफ राजसी ठाठ-बाट में पला ये युवराज भारतीय युवाओं के दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से भी पूरी तरह अन्जान है………

कहने को तो हमारे देश में न तो युवा नेताओं की कमी है न ही युवाओं के मसीहाओं की ही कोई कमी है. परन्तु जब भी युवा अपने ऊपर होने वाले किसी भी जुल्म या मांग को लेकर सड़कों पर उतरते हैं तो ये युवा नेता अमूमन नदारद रहते हैं और युवा शक्ति ज्यादातर पुलिस की लाठी की चोट से सड़क पर कराहती नजर आती है इन पढ़े-लिखे देश के भविष्य पर जानवरों की भांति लाठी भांजने वाले पुलिस बल के जवान एक पल के लिए भी ये नहीं सोचते कि ये बच्चे हमारे ही परिवार के बच्चे हैं दरिंदगी की हद तो तब होती है जब अपने आपको सुरक्षा में मुस्तैद सिद्द करने की होड़ में पुलिस बल के जवान लड़कियों पर भी लाठी चटकाने से गुरेज नहीं करते और सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि मानव अधिकार व महिला अधिकार जैसी बड़ी-बड़ी संस्थाएं कानों में रुई, आँखों पर कला चश्मा व ओंठों पर ताले लगाए रहती है. आज तक ऐसी अमानवीय घटनाओं पर उक्त संस्थाओं द्वारा कोई कार्यवाही नही हुई है. लेकिन दुःख तब होता है जब इन निंदनीय घटनाओं पर युवा नेता और युवाओं के मसीहा घडियाली आँसू बहाते नजर आते हैं. युवा शक्ति को वोट बैंक के रूप में देखने वाले राजनैतिक दल समय-समय पर युवा शक्ति को लुभाने के लिए व अपने आपको युवाओं का सबसे बड़ा शुभचिन्तक सिद्द करने के लिए नाना प्रकार के आडम्बर रचते रहते हैं.
ऐसा ही अदभुत ड्रामा पिछले कुछ माह पूर्व तब देखने को मिला जब युवाओं में सबसे अधिक साथ देने का दावा करने वाले कांग्रेस के युवराज व देश के प्रधान मंत्री पद के प्रमुख दावेदार राहुल गाँधी शहर-शहर व कालेजों में घूम-घूम कर युवाओं को राजनीति में गोता लगाने के लिए आमंत्रित करते नजर आये.  कांग्रेस ने बड़े जोश-खरोश के साथ इस कार्य की सराहना की तथा सारे देश के युवाओं को राहुल गाँधी के पीछे खड़ा होने तक का दावा कर डाला. इस राहुल नौटंकी से कांग्रेस को क्या लाभ हुआ ये तो कांग्रेस की प्रबन्धन कमेंटी ही बेहतर जाने. लेकिन यहाँ बात युवाओं को इस सबसे होने वाले लाभ की नहीं बल्कि बात है कि युवा नेता व युवाओं के मसीहा वास्तव में कितनी वफादारी ईमानदारी व सच्चाई के साथ इन युवाओं की रोजमर्रा की परेशानियों में शरीक हैं. जब इन युवाओं को सडक पर रहनुमाओं की जरुरत होती है तब ये किस हद तक इन बेबस, बेसहारा और लाचार युवाओं के साथ होता है इनका हाँथ.
आज देश में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की दिन-प्रतिदिन बढ़ती घटनाओं से आक्रोशित व भयभीत युवा अपनी सुरक्षा की मांग लेकर सड़कों पर है तब कांग्रेस का आम जन के साथ दावा करने वाला हाँथ और कांग्रेस के  युवराज का हाँथ दोनों ही लापता हैं. युवा अगर राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहता है तो वह राहुल गाँधी को अस्मत बचाने की जंग में भी खुद के बीच देखना चाहता है .लेकिन अफ़सोस हमेशा की भांति युवा आज भी खुद को अकेला व ठगा महसूस कर रहा है. हालाँकि ये मौका राजनीति करने के लिए कतई उपयुक्त नहीं है लेकिन कहना होगा इस अस्मत बचाने की जंग में यदि राहुल गाँधी युवाओं के साथ आकर प्रधानमंत्री से युक्त मांग पर विचार करने का प्रस्ताव करते तो इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री राहुल की बात पर विचार करने से मना कर देते. राहुल गाँधी के इस ऐतिहासिक प्रयास के बाद यकीनन युवराज को युवा शक्ति एकत्रित करने के लिए कहीं आने-जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती. परन्तु दुर्भाग्य ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि राहुल गाँधी भी बन चुके है एक मंजे हुये खिलाड़ी जो वक्त आने पर मुकर जाते हैं और जब बात आती है समर्थन की तो दरवाजे-दरवाजे जाकर मुफ्त की वाह-वाही बटोरते हैं. देखा जाये तो विदेशी संस्कृति में रचा बसा ये युवराज शायद भारतीय संस्कृति में बहिन-बेटियों की इज्जत का आंकलन करने में पूरी तरह से असमर्थ है. वहीँ दूसरी तरफ राजसी ठाठ-बाट में पला ये युवराज भारतीय युवाओं के दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से भी पूरी तरह अन्जान है.
आपको ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री के मना करने के उपरान्त राहुल गाँधी पिछले कई बार अनेक मांगों को लेकर धरने पर बैठ चुके हैं यदि युवा शक्ति की जायज मांग व बहिन बेटियों की अस्मत की रक्षा के लिए एक बार पुनः धरने पर बैठते तो निश्चित ही राहुल की प्रशंसा को इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाता और यकीनन ही राहुल गाँधी कांग्रेस के साथ-साथ युवाओं के भी युवराज होने का गौरव प्राप्त करते. लेकिन आज के जन आक्रोश पर नजर डालें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जब बहिन-बेटियों की इज्जत पर आंच आती है तब ये युवराज अपने घर की ऊँची दीवारों के पीछे संगीन साये में अपने आपको छुपा लेता है. ऐसे भगौड़े के हांथ में आज का युवा किसी भी कीमत पर देश की अस्मत सौपने को तैयार नहीं होगा.
अब कांग्रेसियों को भी एक बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि वह इस युवराज की चमचागीरी व खुशामद के अलावा अपने युवराज को देश की समस्याओं से अवगत कराकर कोई उचित समाधान तलाशने का प्रयास करें. ये कहना पूरी तरह से उचित होगा कि यदि कांग्रेस पार्टी और उनके युवराज थोड़ी भी ईमानदारी से जन आंदोलन का रुख देखते हुये आम जनता के दुखों में भागीदार हो जाते तो निश्चित ही
2014 के होने वाले चुनाओं में कांग्रेस पार्टी अपनी सियासी जीत का परचम लहर सकती है.
सुनीता दोहरे ...लखनऊ ...
 


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