प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ डी आई) बनाम सरकार ( सच का आईना )
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ डी आई) बनाम सरकार ( सच का आईना )
एफडीआई ( प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ) को लेकर पिछले कुछ दिनों से पूरे सरकारी महकमें , राजनीति और आम जनता के बीच हलचल मची हुई है ! मल्टी ब्रांड खुदरा बाजार में एफडीआई और डीजल के मूल्य में बढ़ोतरी करके पशोपेश में फंसी केंद्र सरकार विपक्षी दलों की आलोचनाओं का शिकार बनकर आम आदमी को रिझाने के लिए खाद्य सुरक्षा बिल को ट्रम्प कार्ड की तरह इस्तेमाल करने को तैयार थी !केंद्रीय कैबिनेट ने मल्टी ब्रांड रिटेल में पिछले २४ नवंबर २०११ को ५१ फीसदी और सिंगल ब्रांड रिटेल में १०० फीसदी एफडीआई की अनुमति देने का फैसला किया था ! सबसे पहले तो ये बता दें कि मल्टी ब्रांड रिटेल किसी किराना दुकान की तरह होता है ! इन्हें विभिन्न प्रकार के ब्रांड के सामान को एक ही छत के नीचे बेचने की इजाजत होती है ! क्रोमा और बिग बाजार मल्टी ब्रांड रिटेल के अत्यंत लोकप्रिय उदाहरण हैं ! केवल एक ही ब्रांड के उत्पाद सिंगल ब्रांड रिटेल स्टोर में बेचे जाते हैं ! भारत में सोनी और रेमंड के आउटलेट में उनकी खुद की कंपनी के उत्पाद बेचे जाते हैं ! और अपने खुद के ब्रांड का सामान बेनेटन का यूनाइटेड कलर्स बेचता है !
देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर मल्टी ब्रांड रिटेल में कैरीफोर , टेस्को और वॉलमार्ट जैसे दिग्गजों का नाम आता है !
भारत के अधिकांश लोग मल्टी ब्रांड रिटेल के साथ अपने आपको अधिक सहज महसूस करते हैं क्योंकि भारतीय जनता काफी समय से चले आ रहे किराना दुकानों की व्यवस्था की अभ्यस्त हो गई है ! और एक ही छत के नीचे सभी प्रकार की जरूरतें पूरी हो जातीं है !
देश में सिंगल ब्रांड रिटेल में एफडीआई की अनुमति सन २००६ में दी गई थी लेकिन उस समय इतना शोरगुल नहीं हुआ था ! यह बिना किसी परेशानी के संभव हो गया था ! अब तो कंपनियों के पसंदीदा स्थल बन गए हैं हमारे शॉपिंग मॉल सिंगल ब्रांड रिटेल.......और साथ ही ब्रांड के सामान की उपलब्धता मल्टी ब्रांड रिटेल का मूल मंत्र है !
मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को रामबाण के तौर पर पेश करके केंद्र सरकार ने रिटेल सेक्टर में लंबे समय से चली आ रही सभी दिक्कतों से निजात पा ली ! एफडीआई को रिटेल क्षेत्र में इस तरह से पेश किया गया जैसे कि रोजगार के अवसर, किसानों को लाभ पहुंचाने वाली कीमत, महंगाई पर नियंत्रण , लॉजिस्टिक्स ( ट्रांसपोर्ट के साधन, कोल्ड स्टोरेज) के क्षेत्र में कमी, आदि जैसी सभी समस्याओं का निवारण हो ! सरकार ने एफडीआई को मंजूरी देने के साथ कुछ शर्तें भी रखी हैं ! बहुराष्ट्रीय रीटेल कंपनियों को दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही स्टोर खोलने की अनुमति दी जाएगी ! अभी भारत में ऐसे कुल 53 शहर हैं ! विदेशी कंपनी को इसमें कम से कम 550 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा, ताकि छोटे शहरों में इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े ! ब्रांडेड और गैर ब्रांडेड की चीजों की भी बिक्री करनी होगी ! इतना ही नहीं, कारोबारियों को 30 फीसदी माल छोटे उद्योगों से खरीदना जरूरी होगा ! इसके बावजूद सरकार के इस साहसिक फैसले का जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है !
इस मामले को लेकर विपक्ष के तेवर सातवें आसमान पर चढ़ गये ! विपक्ष का कहना था कि इस मुद्दे पर चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं है ! लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा है कि सरकार को खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के फैसले को वापस लेना ही पड़ेगा वरना इस फैसले को वापस लिए बिना संसद नहीं चलने दी जाएगी !
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में विपक्षी दल इससे सहमत नहीं हुए ! इसे स्वीकार न करने के पीछे इन लोगों के अपने अनूठे तर्क थे ! विपक्ष ने तर्क दिया कि रिटेल क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने से देश में लाखों किराना दुकानों पर ताले लग जाएंगे और भारी बेरोजगारी की स्थिति आ जाएगी ! करुणानिधि के नेतृत्व वाली डीएमके और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस भी इसी आधार पर कैबिनेट के फैसले का विरोध कर रही है ! यूपीए सरकार में साझीदार तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने तो यूपीए सरकार पर लूट मचाने तक का आरोप जड़ दिया है ! भारतीय जनता पार्टी और अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने साफ तौर पर कहा कि वे किसी विदेशी राज्य को अपने राज्य में किराना स्टोर खोलने की अनुमति नहीं देंगे ! केंद्र में सहयोगी तृणमूल कांग्रेस और डीएमके ने भी कैबिनेट के फैसले का विरोध किया है !
भूतपूर्व उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि उनके सूबे में विदेशी कंपनियों को खुदरा कारोबार में उतरने की इजाजत नहीं दी जाएगी मैं किसी भी विदेशी कंपनी को दुकान खोलने की इजाज़त नहीं दूँगी उन्होंने आरोप लगाया था कि रीटेल क्षेत्र में विदेशी निवेश की मंज़ूरी केवल कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के विदेशी मित्रों को मदद करने की साज़िश है !
इस मुद्दे पर जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल , वामदल और समाजवादी पार्टी भी सरकार का विरोध कर रही हैं ! तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने आरोप लगाया था कि यह फैसला बड़ी खुदरा कंपनियों के दबाव में आकर लिया गया है खुदरा क्षेत्र में एफडीआई एक संवेदनशील मुद्दा है और लोगों की भावनाओं को दरकिनार करते हुए अचानक ऐसा फैसला करके केंद्र सरकार ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया है !
यहाँ
तक कि कई शहरों में छोटे और मझोले कारोबारी सड़कों पर भी उतर कर अपना विरोध प्रकट
कर रहे थे छोटे व्यापारियों का कहना था कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के बाद सब्जी
विक्रेता कहां जाएंगे ? खुदरा दुकानों के खुल जाने से वह पहले से ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं
!
हमारे
भारत में राजनीति से अर्थनीति का फैसला
देखिये
ये तो सोलह आने सत्य है कि दुनिया भर में अर्थनीति से राजनीति तय होती है ! सच और
कडुआहट से ओतप्रोत सत्यता ये भी है कि हमारे हमारे भारत में राजनीति से अर्थनीति
का फैसला होता है ! गुजरे वक्त के दौरान कैबिनेट के फैसले से लेकर 7 दिसंबर को
ठंडे बस्ते में डाले जाने तक मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की कहानी राजनीतिक ड्रामा
से लवरेज थी ! ज्यों-ज्यों ड्रामा वीडियो क्लिप के रूप में प्ले होता गया , त्यों-त्यों स्टोरी और
भी रोचक होती चली गई !
बीते दिनों जहां पूरा देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और डीजल की कीमतों को लेकर केंद्रीय सरकार के खिलाफ आन्दोलन कर रहा था वहीं सरकार ने अपनी हठधर्मिता का परिचय देते हुए मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने के फैसले को असलीजामा पहना दिया ! इससे वॉलमार्ट जैसी अन्य दूसरी विदेशी कंपनियों के लिए भारत में स्टोर खोलने का रास्ता साफ हो गया ! सरकार ने इसके साथ ही विमानन और प्रसारण क्षेत्र में भी विदेशी निवेश नियमों को और उदार बनाने संबंधी निर्णयों को भी अधिसूचित कर दिया !
इस तरह राजनीति के आगे अर्थनीति को झुकना पड़ा ! इस लेख में आर्थिक निर्णय की राजनीति में हमने सरकार की चुप्पी को समझने की भरसक कोशिश की है ! साथ ही हमने मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की आर्थिक जटिलताओं की पड़ताल करते हुये आशा-निराशा के झूले में पल-पल उठता गिरता हुआ कॉरपोरेट जगत और इस फैसले से जुड़े शेयरों के शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिती को भी समझने की कोशिश की है सरकार के इस खेल में ग्रामीण और कृषि उपज तथा मंडी से जुड़े कई लोग बेरोजगार भी हो जायेंगे और साथ ही साथ इस कार्यवाही से निर्बल तबके के लोगों को जो धक्का लगेगा क्या उसकी भरपाई सरकार कर पाएगी ?
इस बात को जनता बखूबी समझती है कि सरकार की पहली गलती ये रही कि उन्हें सभी पक्षों का विश्वास हासिल नहीं है ! न तो आम जनता का उन पर विश्वास है और न ही विपक्ष के मन में उनके प्रति बहुत सम्मान है ! सरकार के कोई भी प्रायोजित साक्षात्कार किसी को भी विश्वास में लेने में कामयाब नहीं हो पाए !
इसके बाद सरकार की दूसरी गलती सरकार के खुद के ब्यान थे कि किराना दुकानों का अस्तित्व खतरे में नहीं है क्योंकि विदेशी रिटेल कंपनियां कर्ज पर सामान नहीं देंगी ! सरकार ने कोई गलत बात नहीं बोली थी, लेकिन शब्दों के गलत चयन और हेर-फेर की वजह से जनता और विपक्षी दलों ने उनेह खलनायक का रूप दे दिया ! कारोबारी समुदाय को लगा कि मल्टी ब्रांड रिटेल अभियान के ब्रांड एम्बेस्डर उन लोगों पर ताना मार रहे हैं जैसे उनकी दुकानें केवल उधारी खाता वाले लोगों के लिए ही हैं ! इसके बाद आंकड़ों की गड़बड़ी की गई ! जैसे एफडीआई पर पत्र सूचना कार्यालय ने जो बैकग्राउंडर दिया था उसमें कहा गया था कि एफडीआई की अनुमति से मल्टी ब्रांड रिटेल में पांच सालों के भीतर लगभग 17 लाख नौकरियों का सृजन किया जायेगा ! लेकिन कुछ सरकारी प्रवक्ताओं ने बिना समझे करोड़ों नौकरियों की बात करनी शुरू कर दी ! जो सरकार के लिए हानिकारक साबित हुई ! इस मुद्दे पर ममता बनर्जी के नजरिए के बारे में कैबिनेट भ्रमित हुई सरकार समझती रही कि तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ है ! लेकिन इस बात झटका सरकार को तब लगा जब ममता ने सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध जाहिर कर दिया !
बीते दिनों जहां पूरा देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और डीजल की कीमतों को लेकर केंद्रीय सरकार के खिलाफ आन्दोलन कर रहा था वहीं सरकार ने अपनी हठधर्मिता का परिचय देते हुए मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने के फैसले को असलीजामा पहना दिया ! इससे वॉलमार्ट जैसी अन्य दूसरी विदेशी कंपनियों के लिए भारत में स्टोर खोलने का रास्ता साफ हो गया ! सरकार ने इसके साथ ही विमानन और प्रसारण क्षेत्र में भी विदेशी निवेश नियमों को और उदार बनाने संबंधी निर्णयों को भी अधिसूचित कर दिया !
इस तरह राजनीति के आगे अर्थनीति को झुकना पड़ा ! इस लेख में आर्थिक निर्णय की राजनीति में हमने सरकार की चुप्पी को समझने की भरसक कोशिश की है ! साथ ही हमने मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की आर्थिक जटिलताओं की पड़ताल करते हुये आशा-निराशा के झूले में पल-पल उठता गिरता हुआ कॉरपोरेट जगत और इस फैसले से जुड़े शेयरों के शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिती को भी समझने की कोशिश की है सरकार के इस खेल में ग्रामीण और कृषि उपज तथा मंडी से जुड़े कई लोग बेरोजगार भी हो जायेंगे और साथ ही साथ इस कार्यवाही से निर्बल तबके के लोगों को जो धक्का लगेगा क्या उसकी भरपाई सरकार कर पाएगी ?
इस बात को जनता बखूबी समझती है कि सरकार की पहली गलती ये रही कि उन्हें सभी पक्षों का विश्वास हासिल नहीं है ! न तो आम जनता का उन पर विश्वास है और न ही विपक्ष के मन में उनके प्रति बहुत सम्मान है ! सरकार के कोई भी प्रायोजित साक्षात्कार किसी को भी विश्वास में लेने में कामयाब नहीं हो पाए !
इसके बाद सरकार की दूसरी गलती सरकार के खुद के ब्यान थे कि किराना दुकानों का अस्तित्व खतरे में नहीं है क्योंकि विदेशी रिटेल कंपनियां कर्ज पर सामान नहीं देंगी ! सरकार ने कोई गलत बात नहीं बोली थी, लेकिन शब्दों के गलत चयन और हेर-फेर की वजह से जनता और विपक्षी दलों ने उनेह खलनायक का रूप दे दिया ! कारोबारी समुदाय को लगा कि मल्टी ब्रांड रिटेल अभियान के ब्रांड एम्बेस्डर उन लोगों पर ताना मार रहे हैं जैसे उनकी दुकानें केवल उधारी खाता वाले लोगों के लिए ही हैं ! इसके बाद आंकड़ों की गड़बड़ी की गई ! जैसे एफडीआई पर पत्र सूचना कार्यालय ने जो बैकग्राउंडर दिया था उसमें कहा गया था कि एफडीआई की अनुमति से मल्टी ब्रांड रिटेल में पांच सालों के भीतर लगभग 17 लाख नौकरियों का सृजन किया जायेगा ! लेकिन कुछ सरकारी प्रवक्ताओं ने बिना समझे करोड़ों नौकरियों की बात करनी शुरू कर दी ! जो सरकार के लिए हानिकारक साबित हुई ! इस मुद्दे पर ममता बनर्जी के नजरिए के बारे में कैबिनेट भ्रमित हुई सरकार समझती रही कि तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ है ! लेकिन इस बात झटका सरकार को तब लगा जब ममता ने सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध जाहिर कर दिया !
यहाँ
पर मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगी कि अभी भारत में बिग बाजार, रिलायंस, मोर और स्पेंसर जैसी कंपनियां किराना स्टोर का कारोबार कर रही हैं जाहिरातौर पर किराना में विदेशी निवेश का रास्ता
खुलने से इन कंपनियों को फायदा होगा !
अब सवाल ये उठता है कि विदेशी किराना के पक्ष में सरकार के तर्क क्या हैं और विदेशी किराना का विरोध करने वालों के तर्क क्या हैं ........
अब सवाल ये उठता है कि विदेशी किराना के पक्ष में सरकार के तर्क क्या हैं और विदेशी किराना का विरोध करने वालों के तर्क क्या हैं ........
Heading….. सरकार के तर्क पक्ष में
(१)-इससे
करीब एक करोड़ लोगों को नौकरियां मिलेंगी और साथ ही बाजार से बिचौलिए कम होंगे !
(२)-बिचौलिए
कम होने से महंगाई घटेगी , खुदरा कारोबार के लिए ढ़ांचा बनेगा
और
साथ ही सामान की बर्बादी भी कम होगी !
(३)- भारतीय बाजार से विदेशी
कंपनियों को कम से कम 30 फीसदी सामान को लेने से देश में
नई तकनीक आएगी ! लोगों की आय बढ़ेगी और औद्योगिक विकास दर को इसका फायदा मिलेगा
!
विरोध करने वालों के तर्क
(१)-छोटे
दुकानदारों का रोजगार चौपट हो जाएगा और साथ ही बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार
होंगे !
(२)-कंपनियां
इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्चा जनता से वसूलेंगी और साथ ही मनचाहे दामों पर सामान
बेचेंगी
(३)-कंपनियां किसानों को सही दाम नहीं देंगी और साथ ही कंपनियां व्यापार पर
कब्जा कर लेंगी !
(४)-सुपरमार्केट छोटी किराना की दुकानों को निगल जाते हैं ! अमेरिका और यूरोप में तो छोटी दुकानें खत्म ही हो चुकी हैं !
(४)-सुपरमार्केट छोटी किराना की दुकानों को निगल जाते हैं ! अमेरिका और यूरोप में तो छोटी दुकानें खत्म ही हो चुकी हैं !
अगर सही मायने में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को सत्यता के नजरिये से देखा जाए तो यह
देश के लिए बहुत बड़े पैमाने पर फायदे की सौगात साबित हो सकता है ग्राहकों को बेहद
किफायती कीमत पर बेहतरीन उत्पाद और सेवाएं मिल सकेंगी ! बहरहाल एफडीआई के मामले को
लेकर बहस सकारात्मक पहलुओं को न लेकर नकारात्मक
बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूम रही है !
एफडीआई से सबसे बड़ा फायदा यह जरूर हो सकता है कि भारत दुनिया का शॉपिंग हब बन
सकता है ! जिससे अर्थव्यवस्था की पकड़ अत्यंत मजबूत होगी ! नमूना सर्वेक्षण के
मुताबिक देश में करीब दो करोड़ परिवारों की रोजी-रोटी सीधे खुदरा कारोबार से चलती
है ! वैसे लोकतांत्रिक सत्ताओं की ये कमजोरी रही है ! कि लंबे समय तक सत्ता में
रहने के बाद उसके कर्णधार यह मानने लगते हैं कि अप्रिय फैसलों को जनता जल्द भूल जाती
है ! केंद्र सरकार के मौजूदा कार्यों के
पीछे ये मानसिकता भी काम कर रही हो तो कोई हैरत की बात नहीं बहरहाल देखा जाये तो
ऐसा नहीं है कि ये तथ्य सरकार को पता नहीं हैं ! लेकिन .....
इतिहास गवाह है कि मौजूदा
सरकार ने फिरंगियों को भारत वर्ष से निकालने में कई अहम रोल किये हैं ! लेकिन अब
एक नया इतिहास बनकर गवाही देगा कि मौजूदा सरकार फिर से फिरंगियों के इशारे पर
नाचकर हम सबको गुलाम बनाना चाहती है ! अर्थनीति और राजनीति का खेल चलता रहा है अंततः ये कथन जाहिरा तौर पर सत्य साबित हो
गया कि राजनीति असल में अर्थनीति की चालक शक्ति बन चुकी है ! इतना सब होने के बाद
नतीजा कुछ ना निकला ! वही ढाक के तीन पात
.............विपक्ष प्रफुल्लित है, सरकार लज्जित है और कॉरपोरेट जगत हतोत्साहित है ! नीतिगत
मोर्चे पर संकट अभी भी जारी है !सुनीता दोहरे ......
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