अरे ओ बुधवा “तोहे लड़की पैदा भई है”
अरे ओ बुधवा “ तोहे लड़की पैदा भई है ” मेरी स्मृतियों के झरोखों से घुमड़ घुमड़ कर बारम्बार एक याद मेरे जहन को झकझोरती रहती है , जो मेरे मानस – पटल पर अमिट छाप छोड़ चुकी है L वो कहते हैं कि जो जीवन की बहुरंगी घटनाओं में से उभरकर अपनी छवि बारम्बार दिखाती चले वही जीवन का यथार्थ है। ये स्मृति मेरे स्मृति – पटल पर चित्र सी टँक गयी है l ज्यादातर घरों में लड़की पैदा होने के बाद पैदा हुई परिस्थितियाँ वातावरण में मायूसी छा देतीं है , “ लड़की पैदा हुई है ” सुनकर जैसे सांप सूंघ जाता हो l आज के बदलते युग में लड़कियां किसी मामले में लड़कों से कम नहीं हैं। लेकिन समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो बेटे की चाहत में कुछ इस कदर अंधे हो गए हैं कि बेटियों को फूटी आंख से भी देखना गंवारा नहीं समझते। यहां तक कि बेटी पैदा करने पर न केवल महिलाओं को प्रताडि़त किया जाता है बल्कि उनको इस नजर से देखा जाता है जैसे इन्होंने बेटी पैदा कर कोई गुनाह कर दिया हो l अधिकतर लोगों के मुंह से “ लड़की पैदा हुई है ’ ये सुनकर सारा प्रगतिवाद , सारा आधुनिकतावाद धरा का धरा रह जाता है लगता है जैसे एकाएक तेज़ स्पीड की गाड़ी को ब्रेक...