टूटता कांच बिखरता नारी का अस्तित्व ( सच का आइना )
बॉक्स........ वर्तमान में बलात्कार का ग्राफ चिंताजनक स्तर पर, कहीं पर जाति की दबंगई, कहीं पैसे की हनक, कहीं पुलिस प्रशासन की लापरवाही, कहीं नेताओं और अपराधी किस्म के निठल्लों के कारण सिसकता समाज, सिसकते परिवार और सिसकती है नारी.......
भारत में इस समय सबसे ज्यादा जो अपराध हो रहा वह है बलात्कार व सामूहिक बलात्कार का. वर्तमान में इसका ग्राफ चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है. आज की तारीख में बलात्कार और भ्रष्टाचार ये दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे होने के साथ-साथ हमारे समाज में ज्वलंत और विचारणीय हैं कहीं पर जाति की दबंगई, कहीं पैसे की हनक, कहीं पुलिस प्रशासन की लापरवाही, कहीं नेताओं और अपराधी किस्म के निठल्लों के कारण सिसकता समाज, सिसकते परिवार और सिसकती है नारी.......
कारण है कि संसार का निर्माण होते ही स्त्रियों को पुरुषों का गुलाम समझा जाने लगा. एक ही माँ से और एक ही प्रक्रिया से पैदा होने के बाबजूद उनेह कभी भी पुरुषों के समकक्ष स्थान प्राप्त नहीं हो सका. देखा जाये तो भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को माँ, बेटी और बहिन के रूप में पूज्यनीय माना गया है. लेकिन अर्धांगिनी के रूप में नारी को कभी भी पुरुषों ने अपने बराबर नहीं स्वीकारा. राजाओं के जमाने से ये गंदगी समाज में नारियों का सम्मान कम कराने के साथ-साथ पुरुषों में बहुपत्नी रखने को बढ़ावा देती रही. इतिहास गवाह है कि राजाओं के जमाने में पराई स्त्रियों को हरण करके अपने रनिवास में योनि सुख की प्राप्ति के लिए रख लेते थे. इतिहास की इस अनैतिक क्रिया को सहज मानकर कुछ दुष्टप्रवत्ति के लोग इस तरह के कार्यों को कुछ समय के लिए अपना मानसिक संतुलन खोकर नारियों की अस्मत के खिलवाड़ करते हैं.
चाहे जितना शोर करें ये युवा सड़कों पर लेकिन देश में सरकार और कानून की धज्जियाँ सरेआम उड़ाते हैं ये सिरफिरे. देश की सरकार और क़ानून को कोई खास फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि सरकार हर बार वही बनती है. और इस सरकार को बनाने में खुद आम-जनता का हांथ होता है. और जब तक आम-जनता अपने वोट को पूरे होशो-हवास में नहीं देगी तब तक यूँ ही छली जातीं रहेंगी नारियां, समाज, परिवार और खुद आम जनता. सही मायने में तो आज-कल के हालातों को देखते हुए जनता, सरकार और पुलिस प्रशासन को आवश्यकता है इन गंभीर मुद्दों के हल तलाशने की.
अब हम बात करेंगे इस तरह की दुष्ट प्रवत्तियों वाले व्यक्तियों की पहचान की. सच तो ये है कि इंसान के जीवन में रोटी कपड़े के बाद सैक्स की आवश्यकता सबसे अधिक महत्व रखती है. और ये भी सच है कि बलात्कारियों की कई तरह की किस्में हुआ करती हैं. किसी को यह रोटी, कपड़ा, मकान, सम्मान और शोहरत के बाद आवश्यक लगती है तो कोई अपनी सबसे पहली जरूरत रोटी को समझता है और रोटी के बाद सैक्स को अहमीयत देता है.
हमारे समाज के ग़लत रीति-रिवाजों के चलते युवा इस राह पर गुजरते हुए सैक्स के अधकचरे ज्ञान के कारण मनोविकृति का शिकार हो जाता है. और समाज मैं आ गयी बुराईयों जैसे बाज़ारों मैं अर्धनग्न घूमती लड़कियां, पोर्नोग्राफी, ब्लू-फिल्में इत्यादि के ज़रिये विपरीत लिंग के प्रति खिचाव उन्हें इस घृणित कार्य को करने के लिए उकसा देता है इस तरह के कुछ युवा जो अपनी सैक्स की इच्छा को काबू नहीं कर पाते बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाते है.
बचपन से सैक्स की सही शिक्षा और सही उमर में जीवन साथी का साथ होना चाहिए. और समाज से पोर्नोग्राफी, अश्लील इश्तेहार, अश्लील गानों पे रोक लगाई जानी चाहिए.
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है. पश्चिमी सभ्यता की उड़ान में महिलाओं को ये भी याद नहीं रहता कि उनके शरीर की बनावट के अनुसार कौन से कपड़ों में वो सभ्य और शालीन दिख रहीं है. मैं ये नही कहती कि आप पश्चिमी सभ्यता के कपड़े न पहने आप जरुर पहनिए पर अपने शरीर की बनावट के अनुसार पहनिए जो आपको खुद लगे कि आप किसी सार्वजानिक स्थान पर जा रहीं है तो लोग आपके पहनावे को देखकर आप पर फब्तियां न कसें. बलात्कार जैसा घिनौना दुष्कर्म सामंती समाज की विकृति और देन है अगर बलात्कार की वजह वस्त्र अभाव होता तो आदिवासी समाज में बलात्कार होते. दरअसल बलात्कार की वजह वस्त्र अभाव नहीं बल्कि विवेक और संयम का अभाव है.
प्रश्न मात्र कपड़ों का नहीं है प्रश्न केवल आपकी दृष्टिकोण का है. जो नारी को केवल उपभोग और काम तृप्ति की भावना से देखते है. अगर महिलाओं के खुले अंगो को या कम वस्त्रों को देखकर पुरुषों के मन में काम वासना पैदा होती है
तो फिर पुरूषों के ऊपर भी ड्रेस कोड लागू होना आवशयक है क्योंकि हो सकता है कि पुरुषों का खुला तन महिलाओं के मन में कामेच्छा पैदा करता हो ? बदले की भावना में तो बहुत कुछ कहा और सुना जा सकता है लेकिन इससे कोई हल नही निकलने वाला क्योंकि मूल समस्या उस दृष्टि और सोच की है. जब हर व्यक्ति स्वयं खुद अपने परिवार के नैतिक मूल्यों का रखवाला बने. सही मायने में तो अभिभावकों को स्वंय सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को नैतिकता सिखाएं. और अपने परिवार के हर व्यक्ति के अंदर के सदगुणों को उभारे, उसके गुणों को विकसित करे और अवगुणों को मारे, तभी ऐसे जघन्य अपराध पर रोक लगेगी वर्ना सरकार, कानून और नारी के वस्त्रों को दोष देते रहेंगे और इसी प्रकार अपराध का ग्राफ बढ़ता रहेगा.
मैंने अक्सर देखा है कि महिलायें किसी समूह या सार्वजानिक स्थानों पर शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढकती ऐसे में जो महिलायें उस समय वहाँ होतीं हैं उन महिलाओं की स्थिति बहुत बुरी हो जाती है जब राह चले मनचले उन्हें छेड़ते हैं. महिलाओं को ये समझना चाहिए कि नारी का एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व और स्त्री की लज्जा ही उसकी असली पहचान होती है समाज में अलग पहचान बनाने के लिए स्त्री को अपने ज्ञान,शिक्षा, बफादारी, योग्यता, गुणों व मानवीय मूल्यों से अपनी पहचान बनाएं आज के आधुनिक युग में महिलायें केवल अपने यौन आकर्षणों को दूसरे के सामने प्रस्तुत करके मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती हैं.
यकीनन इनको रोकने के लिए सख्त कानून की आवश्यकता के साथ-साथ महिलाओं में जागरूकता लाने की बहुत जरूरत है. अपने बच्चों में बचपन से ही ये संस्कार दें कि नारी पूज्यनिय और आदरणीय होती है. भारत में सेक्स को वर्जना की नजर से देखा जाता है. जिस कारण वश माता-पिता अपने बच्चों को यौन संबंधित जानकारी देने से परहेज करते हैं जबकि हम सभी ये जानते हैं कि वर्जित माने जाने वाले विषयों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा इंसान में सबसे अधिक होती है. और युवाओं को सही तरीके से इसकी शिक्षा जब नहीं मिलती है तो ग़लत रास्तों से अश्लील साहित्य इत्यादि से इसको सीखने की कोशिश में कुछ बच्चे मनोविकृति के शिकार हो कर बलात्कार जैसे क्रूर व घिनौने जुर्म को अंजाम देते हैं.
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार तकरीबन ३ से ५ फीसदी लोगों में सैक्स एक नशे की लत की तरह होता है. ऐसे लोगों को सेक्सोहॉलिक कहा जाता है. ऐसे लोगों में ये नशा शराब, जुआ या फिर ड्रग्स के माफिक उपस्थित होता है.
इस आधुनिक युग में जिस प्रकार आज समाज मैं भ्रष्टाचार कैंसर की तरह ला-इलाज होता जा रहा है ठीक उसी प्रकार नारियों की अस्मत के साथ खिलवाड़ और देह व्यापार भी ला-इलाज बीमारी का रूप ले चुका है.
सिर्फ इसकी एक ही वजह है इस तरह के इन्सानों का नैतिक पतन होता जा रहा है. जब तक कानून का चाबुक नहीं घूमेगा तब तक इस तरह की दुष्ट प्रवत्ति के लोग सुधरने वालों में से नहीं है जिस दिन से कानून का चाबुक इन दुष्टों की पीठ पर पड़ना शुरू हो जायेगा उस दिन से अपराधिक ग्राफ अपने आप नीचे आ जायेगा.
देश में पूरी तरह से शराब बंदी घोषित कर देनी चाहिए इससे दूसरे अपराधों के साथ-साथ बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों पर रोक लगेगी. क्योंकि शराब पीने से मनुष्य की गन्दी मानसिक भावनाएं प्रबल होने के साथ ही मनुष्य की अक्ल का नाश कर देती है और कई गुना बड़ी वासना की भूख को शांत करने के लिए वो बलात्कार जैसे घृणित कार्य को अंजाम देता है. देखा जाये तो बलात्कार जैसे ज्यादातर मामलों में अपराधी नशे की हालत में पाए गए हैं.
जवानी के दौर में काम वासना प्रबल होती है इससे किसी को इनकार नही हो सकता बहते पानी की तेज धार को अगर सही दिशा न मिले तो मजबूत बाँध को तोड़कर और इधर-उधर फैलकर पूरे के पूरे गाँव तबाह कर देता है सही उम्र में सैक्स की शिक्षा उसकी वासनाओं को कंट्रोल करने में सहायक हो सकती है.
टेलीविज़न कार्यक्रमों पर भी सेंसरशिप लगाने चाहिए.
सरकार को पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए.
अब देखा जाए तो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर न तो कोई सरकार गंभीर है और न ही संवेदनशील.
बलात्कार जैसे अपराधों के लिये सख्त से सख्त कानून बनाया जाना चाहिए जिसमे मृत्युदंड और बधियाकरण भी शामिल हो. परंतु इसके साथ-साथ समाज को भी आत्म चिंतन करते हुए मानव मस्त्षिक को बदलने और परिवर्तित करने के कुछ उपाय सोचने चाहिये. क्या वजह है कि इतने जन-दबाव के होते हुये भी बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनायें अभी भी बदस्तूर जारी हैं.
लड़कियों को भी बचपन से आत्मरक्षा की ट्रेनिग अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए क्योंकि हर जगह पुलिस इतनी जल्दी नहीं पहुँच सकती और वैसे भी कई ऐसे केस हैं जिनमें खुद पुलिस वालों ने अपनी हवस का शिकार कई महिलाओं को बनाया है.
आपने अक्सर ये देखा और सुना होगा कि होटलों मे नाच-गाने के लिए मजबूर और विज्ञापनो में शरीर के अंगो तक का नाप दिया जाता है तब, इसका विरोध क्यों नहीं होता ? और एक तरफ तो अखबार वाले प्रथम पृष्ठ पर सामूहिक बलात्कार व उसके विरोध के बड़े-बड़े फोटो व समाचार छापते है, वहीँ दूसरी तरफ यही अखबारों के अंदर के पृष्ठों पर इतने गंदे और वाहियात विज्ञापन, पैसो की लालच में छापते हैं. और ये मीडिया वाले भी कम नहीं है ये भी अपने न्यूज़ चैनलों में बलात्कार जैसे दुष्कर्म की बड़ी-बड़ी न्यूज़ देते है और हर दस मिनट में इतने गंदे विज्ञापन दिखाते है कि जिसे परिवार के सामने आप बैठकर देख नहीं सकते. क्या यही हमारी नैतिक भूमिका है ? क्या यही हमारा देश के प्रति सम्मान है ? मेरी जनता से गुजारिश है कि अपने ह्रदय को परिवर्तित करने के साथ-साथ समाज में हो रहे इस अत्याचार का अंत करने में पुलिस प्रशासन और समाज की मदद करे क्योंकि अब उपयुक्त समय आ गया है समाज व परिवार अपने भूमिका को पहचान कर आगे आये. क्योंकि कानून तो अपराध होने के बाद आता है पर हृदय परिवर्तन अपराध होने ही नही देता......
सुनीता दोहरे...
लखनऊ..
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