हसरत है कि वो देखे एक हसरत भरी निगाह से....

हसरत है कि वो देखे एक हसरत भरी निगाह से

न जाने क्यों आज एहसास हों रहा है कि किसी बेबसी के तहत हमारा रिश्ता कराह रहा है न जाने कब से यही सोचती हूँ हर सुबह, हर शाम, हर पल तुम्हें याद न करूँ लेकिन अपने वादे पे कायम रहने की नाकाम सी कोशिश और रात होते ही नींद के आगोश में अपने ही ख़्वाबों को दरकिनार कर तेरे खवाबों की तह सी बिछाते हुए मेरे एहसास एक अनछुई कोपल से पनपने लगते हैं  और मैं उन सपनों में अथाह गोते लगाते हुए उस पायल की झंकार को महसूस करती हूँ जो तुमने पायल मुझे दी थी वैसे हमने एक बात छुपाई थी आपसे. आपकी दी हुई पायल के घुंघरू टूटकर तो बहुत पहले ही मधुर ध्वनी देना छोड़ चुके थे. और हाँ उन दिनों मुझे भी कहाँ पता चला था कि तेरी प्रीत की चटख का. तुमेह तो पता ही न चला क्योंकि मेरे घुंघरू की खनक तो आप तक वैसी ही पहुँच रही थी जैसे अभी आज ही पहनी हो क्योंकि मैंने तुम्हे कभी महसूस ही नही होने दिया. कि मुझे पता है कि तुम उस पायल के घुंघरू तुमने किसी और के पैरों में संवार दिए थे पर मैंने तो पाने और गंवाने की हर कोशिश तेरे नाम लिख दी थी. जलते-जलते भी यूँ तमाम उम्र तेरे नाम लिख दी थी और तू समझे न समझे मुझे अब एहसास है कि मैंने अपने जीवन की हर शाम तुझ पर बे-अंजाम लिख दी थी  सुनो क्या तुम मुझे बता नहीं सकते थे कि तुम्हे मेरे पाँव में घुंघरुओं की खनक सुहाती नही है अगर इक बार ही बता देते तो मैं अपने पवित्र रिश्ते की बुनियाद को ठीक उसी जगह छुपा कर रख देती जहाँ मैं तुम्हारी दी हुई पायल रखती थी. अब मैं समझ गयी हूँ कि छल, झूठ, फरेब और अहंकार की तनातनी में बनते-बिगड़ते, टूटते-संवरते, रिश्ते ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं.  अगर मेरी आहों की सुन सको तो एक बार- बस एक बार सुन लो क्योंकि सभी मेरे लिए चन्दन का हार लिए बैठे हैं. काले गुलाबों की पंखुडियां बिखेरते हुए निरंतर विषैली मुस्कान से मेरे लिए एक सेज सजाई है सबने.इस वक्त बस एक खवाहिश कि तुम बस एक दुधिया सफ़ेद चादर मुझे ओढ़ा दो उस पर न कोई फूल हो न कोई नक्काशी ताकि तुम्हारा दिया चन्दन का हार मुझ पर खूब फब सके. अरे न तुम अपने आपको दोषी मत समझो तुम तो निर्दोष हो क्योंकि प्रकृति का नियम है कि इश्क सच्चा भी मिल जाए तो उससे और सच्चे की तलाश रहती है. तुम्हे मिला पर तुमने और भी पाना चाहा, मिल गया तुम्हे अब तो खुश हो,
सुनो ये अपना दिया हुआ लाल चादर तुम ले लो क्योंकि इस सुर्ख लाल रंग ने मेरा दम घोंट दिया है. सब कुछ ठहर सा गया है जैसे कोई बीच चौराहे पर ठहर जाए और चारों तरफ से शोर मच जाए हटो यहाँ से हटो पर ठहरने वाले को कुछ सुनाई न दे और वो शिला बन जाए. शिला तो बनी मैं राहगीर आते है हार पहनाते हैं और एक जुमला फैंक देते हैं “बेचारी क्या किस्मत है” बस काश तुम आ जाओ सिर्फ एक बार आ जाओ मुझे छू जाओ ताकि में फिर से सांस ले सकूँ और सुकून से सो सकूँ क्योंकि अब मुझे सोना है खुली बयार में, खुले आकाश के नीचे क्योंकि बहुत घुटन है इन बंद दरवाजों के पीछे................




जो हमने बफा निभाई तो रुसवाईयां मिली 
जो तुमने की बेवफाई तो तुम मशहूर हो गये 

जो चार कंधों पे निकले हम तेरी गली से

 लो ख़तम हुई ये दास्ताँ तुझे शहनाइयों मिली ...
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सुनीता दोहरे....


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