शराब जैसी महामारी के लिए सरकारें मुख्य रूप से दोषी हैं l
शराब जैसी महामारी के लिए सरकारें मुख्य रूप से दोषी हैं l
आश्चर्य की बात है कि सब कुछ जानने के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं l इस जहर ने परिवार के परिवार बर्बाद कर दिये हैं ....
देखा जाये तो दुनिया के किसी भी देश के लिये एक बहुत बड़ी समस्या है। हम इस
खतरे के खिलाफ अपनी लड़ाई हमेशा से जारी रखे हैं l छात्रों और युवा पीढ़ी
को इससे दूर रखने के लिये स्कूलों, कालेजों और कंपनियों का रुख करके उन्हें इन चीजों के खतरों से रूबरू करवाते
रहे हैं और करवाते रहेंगे। देश के अलग अलग हिस्सों में शराब नामक आतंकवादी ने
कोहराम मचा रखा है और इस आतंकवादी को हमारी सरकारों का पूरा समर्थन मिलता है
क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेचने का लायसेंस तो सरकार के ही कारिंदे
देते है। जबकि इन्हें बखूबी पता है कि शराब हमेशा से मानव समाज के लिए एक अभिशाप
रही है। इसके सेवन से अनगिनत लोगों की मौत होती रही है। बोतल में बंद शराब से होने
वाली मौतों का जैसे एक इंसान का, एक परिवार का, एक समाज का और एक देश का जिम्मेदार कौन है? प्रदेश में समय समय पर
शराबबंदी के मुद्दे पर गाँव बस्ती और शहरों से लेकर सत्ता के गलियारों तक इसकी
गूँज उठती है लेकिन सरकार 'मूक' बनी रहती है और 'टस से मस' नहीं होती l या फिर उठने वाली आवाजों का गला घोंट देती है l शराब पर पाबंदी लगाने
का दबाव सरकारें झेल रहीं है लेकिन, राजस्व का लालच ऐसा है कि शराब पर सख्ती नहीं हो पा रही है l बड़े ही आश्चर्य की बात
है कि सब कुछ जानने के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही
हैं l इस जहर ने परिवार के परिवार बर्बाद कर दिये हैं.
नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति
के लिए हमारी केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य राज्य सरकारें
मुख्य रूप से दोषी हैं l हमारी सरकारे
प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस चंद मुटठी़ भर लोगों
के हवाले कर देती है। जबकि सरकारों को चाहिए कि लोगों के हाथों में दारू की बोतल
नहीं बल्कि काम करने वाले औजार दें ताकि, देश का मानव
संसाधन स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित हो l सरकार को समझना
चाहिए कि युवा आबादी भारत की अमूल्य धरोहर है। जिसकी रचनात्मकता हर असंभव चीज को
संभव बना सकती है। इनका भटकाव केवल विषमताओं को जन्म देता है। नशे की बढ़ती लत से
समाज में अपराध, हत्या और यौन शोषण जैसी गंभीर अपराधों का बढ़ावा मिल रहा
है। फिर भी सरकार को जूं तक नहीं रेंगती l ये सरकार बखूबी
जानती है, कि शराब पीने के बाद शराबी माँ, बहन, बेटी और पत्नी
में भी भेद नही कर पाता, क्यूंकि मन पर आत्मा के नियन्त्रण को शराब खत्म
कर देती है, उसके बाद शराबी नशे में कोई भी अपराध कर सकता है l यहाँ तक कि अपने
बच्चों, पत्नी, माँ बाप की हत्यायें तक शराबी आये दिन करते
रहते हैं l शराब अपराधों की आग में घी डालने का काम करती है l आज शराब गांव की
गलियों से लेकर चौपालों तक आसानी से पहुंच रही है, जिसका दुष्परिणाम यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों
में भी महिलाओं व बच्चों के साथ अपराध बढ़ रहे हैं। शराब समाज के विकास में
सर्वाधिक बाधक है। शराब के सेवन से परिवार में कलह, आर्थिक तंगी तथा सामाजिक विघटन हो रहा है।
महिलाओं को खासकर घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। हमारे संगठन ने सरकार से इस
मुद्दे को लेकर कई बार अपनी चिंता ज़ाहिर की है l सरकार को हाईवे पर पुलिस
पेट्रोलिंग बढ़ानी चाहिए। शराब पीकर ड्राईव करने वाले पर भारी भरकम जुर्माने के साथ
उसका लाइसेंस रद्द और वाहन तक जब्त कर लेना चाहिए। सिर्फ जुर्माना ही पर्याप्त
नहीं है। सभी हाईवे के टोल नाकों पर परमानेंट एक डाक्टर का इंतजाम और वहां वाहन
चालकों का चेकअप किया जाना चाहिए जो नशे में हो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। मौजूदा समय में
उत्तर प्रदेश में शराब माफियाओं, भ्रष्ट नेताओं व अफसरों की साठ-गाँठ ने यहाँ की
आवाम के दिलों दिमाग में असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर उसके विश्वास की धज्जियाँ
उड़ा कर रख दी हैं l योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उत्तर
प्रदेश की महिलाएं सोचतीं थी कि कम से कम यूपी में अब उनकी आबरू सुरक्षित रहेगी l योगी आदित्य नाथ जो
खुद एक शांतप्रिय व्यक्तित्व के मालिक हैं वो उत्तर प्रदेश में कभी अशांति नही होने देंगे l महिलाओ के सम्मान
में योगी शराबबंदी करवा कर महिलाओं को रोज रोज की प्रताड़ना से मुक्ति दिलाएंगे
लेकिन, ऐसा नहीं हुआ l मौजूदा सरकार अगर
शराब को लेकर विचार करे तो अकेले उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ही सड़कों पर हर
कोस-दो-कोस के फ़ासले पर शराब की दुकानें नज़र आ जाएंगी जो ठंडी-चिल्ड बीयर और
देसी शराब धड़ल्ले से बेचती हैं l सरकार ने शराब की दुकानो की भरमार कर रखी है हर
गली और हर नुक्कड पर शराब की दुकाने मिल जायेगी। सबसे ज्यादा बिकने वाली शराब पर न
आम लोगो का नियंत्रण है, न सरकार का और न ही शराब पीने वालों का.
उत्तर प्रदेश के कुछ
इलाकों की तस्वीर को देखकर लगता है कि यहां गरीबी की आलम इस तरह है कि बहुत से
लोगों को दो जून की रोटी भी ठीक से नहीं मिलती। बेरोजगारी चरम पर है। पेट पालने के
लिए बहुत से नौजवान दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में मजदूरी करने को विवश
हैं। ऐसे में शराब गरीब लोगों का जीवन और भी नर्क
किए हुए है.
आज हालात ये है कि रात
गये घर लौटते गली-गली में खुल गयी शराब की दुकानों पर खड़ी भीड़, शराब के नशे में
लड़खड़ाते, चिल्लाते लोंग नजर आ जायेंगे, लेकिन वही राशन
या दवा की दुकान आपको ढूंढने से नहीं मिलेगी l इन हालातों को
देखते हुए सरकार द्वारा इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.
मुझे ये बात सोचने पर
मजबूर करती है कि सरकार को स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों के बजाय क्या वाक़ई शराब
की दुकानों की इतनी आवश्यकता है ? या फिर आवाम के साथ एक महज धोखा l आज हमें ये
अच्छे से समझना होगा कि जो भ्रष्ट है, वो शराब का धंधा
करता है, सरकारी योजनाओं, परियोजनाओं को
अपनी या अपने परिजनों की मुट्ठी में रखता है, जातीय या सांप्रदायिक नारे के बल पर अपनी
राजनीतिक दुकानदारी चलाता है l वो लोग भी इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि शराब एक
अरसे से हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है। हमारे देश में आस्पताल, स्कूल, कॉलेज इतना नही
चलते है जितना ये शराब की दुकानें चलती है ये चाहे कही भी हो गांव में, शहर में,
रोड पे, बाग में, किसी के घर में चाहे जहाँ हो ये दिन दोगुना रात चौगुना चलती है l
उत्तर प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई जिला होगा जहां जहरीली शराब का धधा न चल रहा हो
और इससे किसी की कभी मौतें न हुई होगी। इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई
लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा । फिर भी इस पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं ऐसे
हालातों में शराब से मुक्ति दिलाने के लिए कोई राजनीतिक दल आगे नहीं आता । पुलिस
प्रशासन भी अवैध शराब के कारोबारियों के हाथ की कठपुतली बनकर काम करता है.
ये एक कटु सच्चाई है कि ज़हरीली
शराब पीकर मरना भारत में सबसे बुरी मौत है सिर्फ़ इसलिए नहीं कि बहुत तकलीफ़ होती
है, बल्कि इसलिए कि इसके शिकार वैसी सहानुभूति के हक़दार नहीं
जो दूसरी दुर्घटनाओं के होते हैं l देखने मे ये आया है कि बलात्कारी शाराब पीकर ही
इस क्रिया को अंज़ाम देते है और शराब पीकर आदमी इंसान से जानवर बन जाता हैl बलात्कार
की घटनाओ पर काबू पाने के लिये अन्य उपायो के साथ साथ शराब की बिक्री पर रोक लगानी
चाहिये.
विदित हो कि शराब के
ठेकों से जितना राजस्व सरकार को प्राप्त होता है, उससे कहीं ज्यादा
उस नशे से होने वाली बीमारियों के इलाज पर खर्च कर दिया जाता है। सरकार का एक तर्क
होता है कि शराब से करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है, लेकिन उससे होने
वाले दुष्प्रभावों पर कोई ध्यान नहीं देता, सरकार अगर चाहे
तो इस समस्या का एकलौता ठोस समाधान यही है कि राज्य सरकारें कमाई के लिए शराब की
जगह अन्य विकल्पों का सृजन करें। महज राजस्व के
लिए देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता l सरकार ये बखूबी जानती है कि देश
की भ्रष्ट व्यवस्था और दारुबाजों का खामियाजा छोटे बच्चे, बूढ़े मां बाप और
संषर्ष करती पत्नी को झेलना पड़ता है l नशेड़ी क्षणिक
आनन्द के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को विनाश की ओर धकेल देता है l हकीकत यही है कि
शराब से सबसे ज्यादा नुकसान महिला और बच्चों को हो रहा है शराब ने कई घरों को
उजाड़ा है, शराब माफियाओं ने कई परिवार तबाह किए हैं। देखा जाये तो
यहाँ ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी की पूरी कमाई शराब को समर्पित कर दी है l शराब केवल स्वास्थ्य, चरित्र और धन का
ही नुकसान नहीं करती बल्कि, इसका सबसे ज्यादा खामियाजा शराबी इन्सान की
पत्नी और उसके बच्चों को भुगतना पड़ता है। जहां शराब की वजह से महिलाओं पर शराब की
दुकानों के सामने, घरेलू हिंसा और सड़क पर छेड़छाड़ बढ़ रही है l जबकि सरकार की पहली प्राथमिकता यहाँ की जम्हूरियत के
स्वास्थ्य की होनी चाहिए l जबकि, सरकार लोगों को
शराब बेच कर उन्हें मौत के मुंह में धकेल रही है।
इसलिए सरकार को चाहिए औपचारिकतायें
छोड़कर यदि अवैध शराब के प्रति कार्यवाही की जाये तो बड़ी मात्रा में न सिर्फ अवैध
शराब जब्त होगी बल्कि कारोबारी भी दबोच लिये जायेंगे l शराब,मादक पदार्थो व द्रव्यों के सेवन की बढ़ती हुई
प्रवृत्ति की रोकथाम के लिये सरकार द्वारा प्रचार प्रसार कार्यक्रमों, के माध्यम से नशा
बंदी के पक्ष में अभियान चलाये जाएँ l और साथ ही जिलास्तर पर मादक द्रव्यों की रोकथाम
के लिये गृह विभाग द्वारा कलेक्टर की अध्यक्षता में जिले में कार्यरत् विभागों की
जिला स्तरीय क्रियान्वयन समिति का गठन किया जाए l आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के माध्यम से नशा मुक्ति के लिये प्रसारण किया जाए तथा
निबंध, भाषण, चित्रकला के कार्यक्रम आयोजित किये जाए l
मुर्तजा अली
अध्यक्ष / शराबबंदी
संघर्ष समिति
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