मा० योगी जी खुर्रम नगर से पिकनिक स्पॉट रोड (मुंशी पुलिया) की तरफ भी ध्यान दीजिये ....
देश के अलग अलग हिस्सों
में शराब नामक आतंकवादी ने कोहराम मचा रखा है और इस आतंकवादी को हमारी सरकारों का
पूरा समर्थन मिलता है क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेंचने का लायसेंस
तो सरकार के ही कारिंदे देते है। जबकि इन्हें बखूबी पता है कि शराब हमेशा से मानव
समाज के लिए एक अभिशाप रही है। इसके सेवन से अनगिनत लोगों की मौत होती रही है।
बोतल में बंद शराब से होने वाली मौतों का जैसे एक इंसान का, एक परिवार का, एक समाज का और एक
देश का जिम्मेदार कौन है? उत्तर प्रदेश में
तेजी से बढ़े अपराध, विशेषकर महिला
अपराधों में बढ़ोत्तरी की मुख्य वजह शहरों से गाँव तक शराब ही रही है। इसलिए उत्तर
प्रदेश की आवाम ये चाहती है, कि बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी शराबबंदी की जानी
चाहिए । राज्य में शराबबंदी की मांग करने वाली अधिकांश महिलाएं मुख्यमंत्री से यह
शिकायत करती रही हैं कि शराब ने उनका घर बर्बाद कर दिया l इसलिए राज्य में
शराब पर प्रतिबंध लगाया जाए। महिलाओं के विरोध के माध्यम से उठे इन आंदोलनों से
नारी मन की पीड़ा को आसानी से समझा जा सकता है.
हर साल सैकड़ों जानें
लेती है ये जहरीली शराब l
प्रदेश में समय
समय पर शराबबंदी के मुद्दे पर गाँव बस्ती और शहरों से लेकर सत्ता के गलियारों तक
इसकी गूँज उठती है लेकिन सरकार 'मूक'
बनी रहती है और 'टस से मस' नहीं होती l या फिर उठने वाली
आवाजों का गला घोंट देती है l शराब पर पाबंदी लगाने का दबाव सरकारें झेल रहीं है लेकिन, राजस्व का लालच
ऐसा है कि शराब पर सख्ती नहीं हो पा रही है l बड़े ही आश्चर्य की बात है कि सब कुछ जानने के बावजूद
सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं l इस जहर ने परिवार
के परिवार बर्बाद कर दिये हैंl मैंने देखा है अपनी इन्हीं आखों से, रोज कमाकर खाने
वाले उन मजदूरों को, जो दिन भर की
मेहनत शराब में डुबो, किसी सड़क के
किनारे पड़े रहते हैl एक निम्नवर्गीय
परिवार और मध्यमवर्गीय परिवार भी अपनी मेहनत की कमाई शराब में उड़ा देता है, उनकी पत्नियाँ
अपने बच्चों का पेट काटकर स्कूलों की फीस भरतीं हैं l कितना कष्ट सहकर
महिलाये अपने बच्चों को पढ़ातीं है l कभी रात मुंह अधेरे सडक पर निकलिए l और सुनिए उन घरों
से मारखाकर बिलखने वाली उन महिलाओं की आवाजों को, जो शराब के नशे में पति द्वारा प्रताड़ना झेलतीं
है.
मौजूदा समय में उत्तर
प्रदेश में शराब माफियाओं,
भ्रष्ट नेताओं व
अफसरों की साठ-गाँठ ने यहाँ की जम्हूरियत के दिलों दिमाग में असुरक्षा की भावना
उत्पन्न कर उसके विश्वास की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी हैं l योगी आदित्यनाथ
के मुख्यमंत्री बनने के बाद से महिलाएं सोचतीं थी कि कम से कम यूपी में अब उनकी
आबरू सुरक्षित रहेगी l फगवा धारी जो खुद
एक शांतप्रिय व्यक्तित्व के मालिक हैं वो उत्तर – प्रदेश में कभी अशांति नही होने देंगे l महिलाओ के सम्मान
में योगी शराबबंदी करवा कर महिलाओं को रोज रोज की प्रताड़ना से मुक्ति दिलाएंगे
लेकिन, ऐसा नहीं हुआ l अगर लखनऊ की बात
करें तो खुर्रम नगर से पिकनिक स्पॉट रोड को लेकर चलते हुए आप मुंशी पुलिया की तरफ
चलिए इस बीच रास्ते में आपको कई शराब की दुकाने मिल जाएँगी ये काफी घनी आबादी वाला
क्षेत्र है घनी बस्ती, मंदिर और स्कूल
पास होने के बावजूद भी शराब की दुकानें खुलने से शराबियों की आवाजाही एवं जमावड़ा
यहां बना रहता है, जिससे बच्चों के
साथ महिलाओं को भी परेशानी उठानी पड़ती है.
मौजूदा सरकार अगर शराब को
लेकर विचार करे तो अकेले उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ही सड़कों पर हर कोस-दो-कोस के
फ़ासले पर शराब की दुकानें नज़र आ जाएंगी जो ठंडी-चिल्ड बीयर और देसी शराब धड़ल्ले
से बेचती हैं l आज हालात ये है
कि रात गये घर लौटते गली-गली में खुल गयी शराब की दुकानों पर खड़ी भीड़, शराब के नशे में
लड़खड़ाते, चिल्लाते लोंग
नजर आ जायेंगे, लेकिन वही राशन
या दवा की दुकान आपको ढूंढने से नहीं मिलेगी l इन हालातों को देखते हुए सरकार द्वारा इस पर गंभीरता से
विचार किया जाना चाहिए l कहने को योगी उत्तर
प्रदेश के मालिक हैं, लेकिन क्या
उन्होंने अपनी जनता के दुखों को महसूस किया है l योगी जी को ये जानकारी होनी चाहिये, कि शराब से सबसे
अधिक प्रभावित निम्न वर्ग हो रहा है, इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस पैसे को परिवार
की शिक्षा, अच्छे खानपान, रहन सहन व
पारिवारिक प्रगति पर खर्च किया जाना चाहिए उसे लोग शराब पर खर्च कर रहे हैं | योगी जी जब बिहार
जैसा आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत कम संपन्न राज्य शराब से मिलने वाले राजस्व की
चिंता छोड़कर उसपर प्रतिबन्ध लगाने की हिम्मत दिखा सकता है तो आपकी सरकार क्यों
नहीं दिखा सकती ? जबकि बिहार से तो
उत्तर प्रदेश अत्यधिक संपन्न राज्य की श्रेणी में आता है l इस मामले में तो
आपकी सरकार को अन्य राज्यों की जगह सबसे आगे आकर कदम उठाने चाहिए l मैं पूंछती हूँ
कि आखिर राज्य से मिलने वाले उस राजस्व का क्या लाभ जो न केवल जनता की सेहत बल्कि
अन्य तमाम नुकसानों की कीमत पर मिलता हो l देश की आजादी के बाद देश में शराब की समस्या से समाज को
मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष समिती के द्वारा दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही है | एक न एक दिन आपकी
सरकार को भी अंग्रेजों की भांति इस मसले को हल करना ही पड़ेगा l अवैध तरीकों से
तैयार की जाने वाली और तस्करी कर लाई जा रही शराब पर अगर नियंत्रण नहीं लग पा रहा
है तो इसके लिये पुलिस और आबकारी विभाग तो जिम्मेदार है ही, साथ मे सरकार की
नीतियां भी कम कसूरवार नहीं हैं.
आप देखिये शराब शरीर के
अंगों के लिए कितनी बुरी तरह घातक है l जैसे ही शराब का पहला घूंट मुंह में जाता है दिमाग और शरीर
पर बेहद अलग असर होने लगता है, मुंह में जाते ही कफ झिल्ली शराब को सोख लेती है l घूंट के साथ बाकी
शराब सीधे छोटी आंत में जाती है l छोटी आंत भी इसे सोखती है, फिर यह रक्त संचार तंत्र के जरिए लीवर तक
पहुंचती है l लीवर पहला मुख्य
स्टेशन है इसमें ऐसे एन्जाइम होते हैं, जो अल्कोहल को तोड़ सकते हैं l यकृत यानी लीवर
हमारे शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर करता है l अल्कोहल भी हानिकारक तत्वों में आता है, लेकिन यकृत में
पहली बार पहुंचा अल्कोहल पूरी तरह टूटता नहीं है, कुछ अल्कोहल अन्य अंगों तक पहुंच ही जाता है.
कहने का मतलब है कि यह पित्त, कफ और हड्डियां तक पहुंच जाता है, यहां पहुंचने
वाला अल्कोहल कई बदलाव लाता है l अल्कोहल कई अंगों पर बुरा असर डाल सकता है या फिर 200 से
ज्यादा बीमारियां पैदा कर सकता है l क्या इतना सब जानते हुए भी आप शराब का सेवन करेंगे l अब तम्बाकू को ही
ले लीजिये, विश्व स्वास्थ्य
संगठन सहित कई देशों में तंबाकू उत्पादों से होने वाली मौतों से बचाव के लिए जन
जागरण अभियान चलाए गए हैं,
फिर भी तंबाकू के
उपभोग में कमी न होना मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर सवाल है। तंबाकू के ब़ढ़ते खतरे
और जानलेवा दुष्प्रभावों के बावजूद इससे निपटने की हमारी तैयारी इतनी लचर है, कि हम अपनी मौत
को देख तो सकते हैं, लेकिन उसे टालने
की कोशिश नहीं कर सकते। यह मानवीय इतिहास की एक त्रासदी घटना ही कही जाएगी कि
कार्यपालिका, विधायिका तथा
न्यायपालिका की सक्रियता के बावजूद स्थिति नहीं संभल रही। देखा जाये तो तम्बाकू पर
सरकार की नीयत ठीक नहीं है l राजस्व के नाम पर स्वास्थ्य के साथ खिलवाड किया जा रहा है l क्या यही हमारी
संस्कृति है l हमारी सरकारे
प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस चंद मुटठी़ भर लोगों
के हवाले कर देती है। जबकि सरकारों को चाहिए कि लोगों के हाथों में दारू की बोतल
नहीं बल्कि काम करने वाले औजार दें ताकि, देश का मानव संसाधन स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित हो l सरकार को समझना
चाहिए कि युवा आबादी भारत की अमूल्य धरोहर है। जिसकी रचनात्मकता हर असंभव चीज को
संभव बना सकती है। इनका भटकाव केवल विषमताओं को जन्म देता है। नशे की बढ़ती लत से
समाज में अपराध, हत्या और यौन
शोषण जैसी गंभीर अपराधों का बढ़ावा मिल रहा है। फिर भी सरकार को जूं तक नहीं रेंगती.
कभी कभी मुझे बड़ी ही
कोफ़्त होती है कि सरकार कहती है कि शराब से राजस्व प्राप्त होता है और उत्तर
प्रदेश की विडम्बना ये है कि योगी सरकार को शराब बेचकर विकास चाहिए। ये कैसा विकास
कर रहे हैं l जहाँ परिवार के
परिवार और पूरे कुनबे उजड़े जा रहे हैं l मासूम बच्चों की किलकारी गायब हो रही है उनका बचपन सिसक
सिसक कर घुट रहा है महिलाओं की सिसकियाँ रात के अँधेरे को चीरती हुई ना जाने कहाँ
गुम हो जाती हैं और योगी सरकार अंधी गूंगी बहरी होकर रह गई है गैरकानूनी शराब बनाने
और बेचने का धन्धा जिस जोर शोर से चल रहा है वो इन सत्ताधारियों से छुपकर नहीं
चलता l वो इन सबकी देख
रेख में फलता फूलता है l उसे देखते हुए यह
अनुमान लगाना गलत नहीं है कि जितनी शराब कानूनी बिकती है उससे कम गैर कानूनी की भी
खपत नहीं है। नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति के लिए हमारी केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश
सरकार और अन्य राज्य सरकारें मुख्य रूप से दोषी हैं । अगर गौर करें तो नैतिक
शिक्षा का पाठ तो देश की आवाम कब का भूल चुकी हैं क्योंकि उन्हें सरकार से विरासत
में अश्लील टी.वी. सीरियल,
लपलपाती
महत्वाकांक्षाएं व पश्चिम की भोंड़ी नकल में सने हुए शराब के विज्ञापन आये दिन
देखने को मिलते है। इसके लिए सरकार द्वारा सरकारी राजस्व अर्जित करने की आड़ में
चलायी जा रही शराब की फैक्ट्रियां और नशीली वस्तुएं बनाने वाली कंपनियां भी
जिम्मेवार हैं जिनसे सरकार को करोड़ों रूपये की आय होती है लेकिन बदले में समाज को
मिलता है विनाश.
विदित हो कि शराब के
ठेकों से जितना राजस्व सरकार को प्राप्त होता है, उससे कहीं ज्यादा उस नशे से होने वाली
बीमारियों के इलाज पर खर्च कर दिया जाता है। सरकार का एक तर्क होता है कि शराब से
करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है, लेकिन उससे होने वाले दुष्प्रभावों पर कोई ध्यान नहीं देता, सरकार अगर चाहे
तो इस समस्या का एकलौता ठोस समाधान यही है कि राज्य सरकारें कमाई के लिए शराब की
जगह अन्य विकल्पों का सृजन करें। महज राजस्व के लिए देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा
सकता l शराब और सिगरेट की बिक्री से होने वाली आमदनी को उसकी वजह
से होने वाले स्वास्थ्य खर्च के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए l सबसे बड़ा सवाल
है कि क्या चंद रुपए के लालच को छोड़ कर उत्तर प्रदेश सरकार भावी पीढ़ी और देश को
शराब के कुप्रभावों से बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल करेगी या फिर राजस्व हित से
जोड़कर मुकर जाएगी.
ये सरकार बखूबी जानती है, कि शराब पीने के
बाद शराबी माँ, बहन, बेटी और पत्नी में भी भेद नही कर पाता, क्यूंकि मन पर
आत्मा के नियन्त्रण को शराब खत्म कर देती है, उसके बाद शराबी
नशे में कोई भी अपराध कर सकता है l यहाँ तक कि अपने
बच्चों, पत्नी, माँ बाप की हत्यायें तक शराबी आये दिन करते
रहते हैं l शराब अपराधों की आग में घी डालने का काम करती है l शराब शरीर के
लगभग सभी अंगो पर अपना बुरा प्रभाव छोड़ती है, यानि कि शरीर का
शायद ही कोई अंग इसके दुष्प्रभाव से वंचित रह पाता है। फिर भी इस देश में संतरी से
लेकर मंत्री तक सब शराब नामक जहर के गुलाम है, इसलिये बजार में
शराब बिक रही है और मतदाताओं को लुभा रही है l शराब एक अरसे से
हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है। इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई
लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा। दुर्भाग्य की बात यह है कि तंबाकू, गुटखा, पान मसाला, शराब जो सेहत के लिए अत्यंत हानिकारक हैं उन पर
सरकार कभी गंभीर दिखाई नही देती है l ये समझ नही आता
कि राज्यों की सरकारें आपराधिक प्रवृत्तियों एवं बीमारियों की रोकथाम के लिए नशीले
पदार्थों की बिक्री कम करने एवं उसे प्रतिबंधित करने पर विचार क्यूँ नही कर रही
हैं! अगर उत्तर प्रदेश सरकार को प्रदेश का हित समझ में आता, तो प्रदेश सरकार
अविलंब पूरे प्रदेश में शराब बंदी लागू कर देती.
"शराब बंदी संघर्ष
समिती उत्तर प्रदेश” का प्रयास है कि
नशीले पदार्थो की आपूर्ति को रोका जाये, साथ ही मेरा
युवाओं से आह्वान है कि वे नशीले पदार्थों के सेवन के खिलाफ जनमत तैयार कर इन
नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों के प्रति जनमानस को जागरूक करने का बीड़ा उठाएं।
आज हमें ये अच्छे से समझना होगा कि जो भ्रष्ट है, वो शराब का धंधा
करता है, सरकारी योजनाओं, परियोजनाओं को
अपनी या अपने परिजनों की मुट्ठी में रखता है; जातीय या
सांप्रदायिक नारे के बल पर अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाता है, गुंडों का आतंक
फैला कर हमारा वोट हड़पना चाहता है, ऐसा व्यक्ति किसी
भी पार्टी से टिकट लेकर क्यों न सामने आ जाए, उसे हमारा वोट
नहीं मिलना चाहिए, ऐसे लोगों को वोट देकर लोकसभा में भेजना हम
जनता के लिए देश के साथ गद्दारी होगी.
मुझे ये बात सोचने पर
मजबूर करती है कि सरकार को स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों के बजाय क्या वाक़ई शराब
की दुकानों की इतनी आवश्यकता है ? या फिर आवाम के साथ महज धोखा.
सरकार ये बखूबी जानती है
कि देश की भ्रष्ट व्यवस्था और दारुबाजों का खामियाजा छोटे बच्चे, बूढ़े मां बाप और
संषर्ष करती पत्नी को झेलना पड़ता है l नशेड़ी क्षणिक आनन्द के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को विनाश की
ओर धकेल देता है l हकीकत यही है कि
शराब से सबसे ज्यादा नुकसान महिला और बच्चों को हो रहा है शराब ने कई घरों को
उजाड़ा है, शराब माफियाओं ने
कई परिवार तबाह किए हैं। देखा जाये तो यहाँ ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी
की पूरी कमाई शराब को समर्पित कर दी है उनके घर में चूल्हा भले ही न जले, भूख से उनके
बच्चे भले ही तड़फ रहे हों लेकिन ग्लासों की खनक पे सीधी बोतलें टकरातीं हैं l ये बात शराबी भी
बखूबी जनता है कि शराब से न सिर्फ पीने वाला बल्कि उसके आसपास के लोग और खासतौर से
घर की महिलाएं और बच्चे भी प्रभावित होते हैं l शराब केवल स्वास्थ्य, चरित्र और धन का ही नुकसान नहीं करती बल्कि, इसका सबसे ज्यादा
खामियाजा शराबी इन्सान की पत्नी और उसके बच्चों को भुगतना पड़ता है। जहां शराब की
वजह से महिलाओं पर घरेलू हिंसा सड़क पर छेड़छाड़ बढ़ रही है महिलाएं शराब बंद करने
के लिए इतना संघर्ष कर रही हैं l नशेड़ी पतियों से पीड़ित महिलाएं गरीब, वंचित, उपेक्षित, मुस्लिम और
आदिवासी महिलाएं हैं ये वो महिलाएं हैं जो अपने निठल्ले और शराबी पति से अपनी जवान
हो रही बेटी की हिफाजत करना चाहतीं हैं, ये वो महिलायें हैं जो अपने नशेड़ी पति की गालियों, लात घूंसों को
रोजाना सहती हैं, दर्द से कराहती
उनकी चीखें किसी अँधेरे कुएं में दफ़न हो जातीं हैं l रोज–रोज की चिक चिक से व्यथित महिलाओं में शराब की दुकानों को
लेकर इतना आक्रोश है कि पुलिस भी कुछ नहीं कर रही.
जो महिलाएं अपनी आवाज को
मुखर कर शराब माफियाओं से ना डरते हुए आन्दोलन कर रहीं हैं उन्हें किसी का डर नहीं, क्यूंकि जिस दर्द
को वो झेल रहीं है वो दर्द माफियाओं के डर से कहीं ज्यादा है l वे शराब का ठेका
बंद करने के लिए रात दिन पहरा देती हैं, शराब के ठेकेदारों से उलझती हैं, पुलिस से पिटती
हैं लेकिन हार नहीं मानतीं l महिलायों के हौंसलों को देखते हुए मौजूदा सरकार को चाहिए कि
इन महिलाओं से डरें क्योंकि यह महिलाएं अगर एक साथ खड़ीं हो गयी तो किसी भी पार्टी
को पटखनी देने का माद्दा रखती हैं.
इतना सब देखते हुए मैं
कहना चाहूंगी कि ये भी सत्य है कि आगे जहां भी चुनाव होंगे वहां शराबबंदी बड़ा
चुनावी मुद्दा रहेगा, शराबबंदी का
खुलकर विरोध कर रही वे महिलाएं सरकार के लिए अनेकों प्रश्न चिन्ह छोड़ रहीं हैं
जिसका हल वक़्त आने पर मौजूदा सरकार के पास नहीं होगा l प्रशासन को चाहिए
कि अंग्रेजी शराब की दुकानों को और देशी शराब के ठेकों को नगर से बाहर ऐसे स्थान
पर सहमति दें जहां स्कूल,
धर्मस्थल व बस्ती
क्षेत्र न हो.
सरकार के हित और अहित को
देखते हुए ये भी कटु सत्य है कि शराबबंदी को लेकर उठ रहे सवाल पूरे देश की राजनीति
को हिलाकर और बदलकर रख सकते है l इसलिए सरकार का फर्ज बनता है कि जहां जहां भी शराब ठेकों का
विरोध हो वहां वहां शराब के ठेके तत्काल प्रभाव से बंद कर दिए जाएं.
सरकार की नीति के तहत ही
उसके मंत्री शराब को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं। सरकार शराब के कारोबार को
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में बढ़ावा दे रही है l यह मामला सरकार का है और इसी सरकार का नहीं
पिछली सरकारों का भी है जो निरंतर आबकारी विभाग के माध्यम से राजस्व का बहाना
बनाकर समाज के निर्धन वर्ग खासकर महिलाओं को और दयनीय स्थिति में पहुंचाने का
कार्य कर रहे हैं l सरकार शराबबंदी
के विरोध में तर्क देती है कि ऐसा करने से राज्य के आदिवासी तबके से रोजगार छिन
जाएगा। यह तर्क गले नहीं उतरता, क्यूंकि आज यह व्यापार बड़े शराब माफिया समूहों द्वारा ही
चलाया जा रहा है। शराब गरीब तबके के लोगों का जीवन और भी नर्क किए हुए है। हजारों
परिवार इसके कारण उजड़ गए। बच्चे अनाथ, तो महिलाएं विधवा जीवन जीने का अभिशप्त हैं। शराब के ठेकों
पर रोज़ शराब के नाम पर गंदगी और बेहूदगी का ऐसा नजारा होता है जो भारतीय संस्कृति
के खिलाफ एक षड्यंत्र प्रतीत होता है.
आज शराब गांव की गलियों
से लेकर चौपालों तक आसानी से पहुंच रही है, जिसका दुष्परिणाम यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी
महिलाओं व बच्चों के साथ अपराध बढ़ रहे हैं। शराब समाज के विकास में सर्वाधिक बाधक
है। शराब के सेवन से परिवार में कलह, आर्थिक तंगी तथा सामाजिक विघटन हो रहा है। महिलाओं को खासकर
घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। सरकार को हाईवे पर पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ानी
चाहिए। शराब पीकर ड्राईव करने वाले पर भारी भरकम जुर्माने के साथ उसका लाइसेंस
रद्द और वाहन तक जब्त कर लेना चाहिए। सिर्फ जुर्माना
ही पर्याप्त नहीं है। सभी हाईवे के टोल नाकों पर परमानेंट एक डाक्टर का इंतजाम और
वहां वाहन चालकों का चेकअप किया जाना चाहिए जो नशे में हो उन पर कार्रवाई होनी
चाहिए। सरकार के ऊपर
आम-जन के विश्वास की रक्षा का भार है इसलिए सरकार को अपनी सृजनकारी भूमिका को
पहचानने की जरूरत है.
सुनीता दोहरे
प्रबंध संपादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति
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