निवारण, निरोध एवं निपटान विधेयक यौन अपराधों को रोक पायेगा क्या ? {सच का आइना}



निवारण, निरोध एवं निपटान विधेयक यौन अपराधों को रोक पायेगा क्या ?........
बॉक्स.......स्त्री के प्रति दोयम दर्जे के व्यवहार की बानगी दुनिया के प्रत्येक शहर के कोने-कोने में देखने को मिलती है. दुष्ट, पापियों की तेजाबी निगाहों से जलती महिलायें कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं...................

पिछले दिनों दिसम्बर माह में दिल्ली में गैंगरेप की जो भयावह घटना हुई उससे पूरे देश का सिर शर्म से झुक गया. भारत ही नहीं संसार के प्राय: सभी देशों में इस घृणित घटना की घोर निन्दा हुई. जन आक्रोश को देखते हुए भारत में महिलाओं को किस प्रकार सुरक्षा प्रदान की जाए और उसके लिये कानून में क्या प्रावधान हो इस दृष्टिकोण से सरकार ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. समिति ने देश विदेश से आए हुए 80 हजार सुझावों का अध्ययन किया और 29 दिनों के भीतर ही अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत कर दी.  
दिसम्बर माह में दिल्ली में हुए इस घृणित गैंगरेप की घटना के बाद देश में ऐेसी अनेकों घटनाएं हुईं जो आए दिन समाचारपत्रों तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया की सुर्खियाँ रहीं. इसलिए अपराधियों के मन में खौफ पैदा करने के लिये यह अत्यंत आवश्यक था  कि  सरकार एक अध्यादेश लाए जिसमें ये प्रावधान हो कि इस तरह का अपराध करने वाले को  फांसी की सजा  दी जाएगी. बजट सत्र में  यदि बिल आता तो उसके पास होते-होते काफी देर हो जाती और  अपराधी बच  निकलते. इसलिए सरकार ने जल्दी ही इस कार्य को अंजाम दिया अतः हमें सरकार के इस सराहनीय कदम की प्रशंसा करनी चाहिये आलोचना नहीं. कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (निवारण, निरोध एवं निपटान) विधेयक, 2012 लोकसभा में पारित हो चुका है और राज्यसभा में इसे अभी पारित होना बाकी है. इस विधेयक में बलात्कार के स्थान पर यौन प्रताडनाशब्द प्रयोग किया गया है जिससे यौन अपराधों के दायरे को बढाया जा सकेगा. संशोधित विधेयक में इसकी परिभाषा को विस्तार प्रदान किया गया है ताकि यौन प्रताडना के मामलों में प्रताडित पुरुष भी उसी कानून के दायरे में आए जिसमें पीडित महिलाएं आती हैं. मौजूदा हालातों में बलात्कार के मामलों में पुरुष के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत मामला चलता है. विधेयक में महिलाओं पर एसिड से हमले को अलग से अपराध के रुप में शामिल किया गया है जिसमें 10 वर्ष कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसा प्रयास करने वाले आरोपियों को 5 से 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है. प्रस्तावित विधेयक में यौन प्रताडना के मामलों में आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है और इसमें यह नहीं देखा जायेगा कि वह पुरुष है या महिला. इसमें यौन प्रताडना का दायरा बढाते हुए इसमें जबर्दस्ती अप्राकृतिक यौनाचार को भी शामिल किया गया है.
बहुत ही लंबे संघर्ष के पश्चात कामकाजी महिलाओं को कार्य-स्थल पर यौन उत्पीडन से मुक्ति दिलाने हेतु बहुप्रतीक्षित संशोधित विधेयक पारित तो हुआ. इसमें अच्छाई ये है कि विधेयक केवल कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा की बात ही नहीं बल्कि शिकायत दर्ज से लेकर उसके निवारण के प्रावधान भी इसमें मौजूद हैं. देखा जाए तो अभी तक यौन उत्पीडन को रोकने के लिए संगठित क्षेत्र यानि सरकारी दफ्तरों में कमेटी बनीं थी. लेकिन अब इसमें संगठित और असंगठित क्षेत्र के साथ-साथ घरेलू काम करने वाली महिलाओं को भी शामिल किया गया है. इसके विधेयक के दायरे में निजी
, गैर सरकारी और व्यवसायिक क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठानों को सम्मिलित किया गया है.  इस विधेयक के तहत रोजगार देने वाले को एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करके शिकायत समिति को  ९० दिनों के अन्दर रिपोर्ट सौंपनी होगी और इस अवधि में उत्पीडि़त महिला को तबादला अथवा अवकाश पर जाने की सुविधा दी गयी है.
महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं.
कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीडन से संरक्षण दिलाने वाले बिल, २०१० के कानून की शक्ल अख्तियार करने से स्त्री-अधिकारों व सशक्तिकरण को बल मिलेगा.      महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिए संसद ने विधेयक तो पास कर दिया पर इसी के साथ इस मुद्दे को लेकर आम-जनता के मन में एक प्रश्न चिन्ह भी छोड़ दिया है कि क्या गिरी हुई मानसिकता के लोगों, जैसे गोपाल कांडा, जो हरियाणा का गृह राज्य मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर रहते हुए अपनी कम्पनी में काम करने वाली युवतियों का ना केवल यौन शोषण ही करता रहा बल्कि उन्हें अपने राजनैतिक तथा व्यापारिक हितों के लिए भी इस्तेमाल करता रहा, क्या उस पर कोई अंकुश लग पाया क्या सरकार ने इस बारे में कुछ सोचा ?
गौरतलब है कि कोर्पोरेट जगत में एक ऐसी कुसंस्कृति विकसित हो चुकी है, इस कोर्पोरेट जगत में ऊँची शोहरत और अपना उल्लू सीधा करने के लिए इन बातों को सामन्यतया लिया जाता है और ऐसी बातें कोर्पोरेट जगत में कोई बड़ा मुद्दा नहीं.  महिला यौन उत्पीड़न (निवारण, निरोध एवं निपटान) विधेयक, 2012 को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा, "जहां एक ओर अब अधिक महिलाएं औपचारिक अर्थव्यवस्था से जुड़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर इस तरह के घटनाक्रम के कारण उनकी सुरक्षा एवं हिफाजत को खतरा बढ़ गया है" प्रधानमंत्री ने बलात्‍कार पीड़ितों के लिए वित्तीय सहायता, सपोर्ट सर्विसिस, महिला राष्ट्रीय हेल्पलाइन और राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण मिशन के तहत 100 सरकारी अस्पतालों में वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर जैसी स्वीकृत योजनाओं की घोषणा भी कीं. आये दिन बलात्‍कार और अन्‍य यौन अपराध की वारदातों से शर्मसार हो रहे भारत की सरकार ने अब इससे निबटने के पूरे इंतजाम कर लिये हैं. निश्चित रूप से ऐसे कानून देश में समतामूलक वातावरण निर्मित करने में बहुत सहायक होंगे. देखा जाये तो स्त्री सदियों से समाज की वंचना को झेलने के लिए अभिशप्त रही है. पुरुषों की स्त्रियों के प्रति ओछी मानसिकता नें सदैव ही इसे अपने अधीन रखने के लिए अनुकूल नियम-कानूनों की रचना की है.
गोपाल कांडा की कारगुजारियों के चलते गीतिका शर्मा आत्महत्या ने तो सबकों ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि मानवता अब भारत में बची नही. कई बातें इस केस के बाद उजागर हुई जैसे उसकी हर महिला कर्मचारी के एपोइंटमेंट लैटर में हर शाम कांडा को रिपोर्ट करना जरूरी होता था. यह वाकई में एक शर्म का मामला है
, जिससे हमने कुछ हासिल नहीं किया है......
मैं एक सवाल प्रधानमंत्री से पूछना चाहूंगी कि गीतिका शर्मा आत्महत्या के केस  में सिर्फ दिखावा मात्र क्यों किया सरकार ने और दिल्‍ली गैंगरेप की वारदात के बाद देश भर में जो आन्दोलन हुए और गृह मंत्रालय के विशेष निर्देश पर मामले को फास्‍ट ट्रैक कोर्ट को सौंपा गया. अब सवाल यह उठता है कि इस बलात्कार के बाद से 100 से ज्‍यादा बलात्‍कार के मामले उजागर हुए तो उन्‍हें फास्‍ट ट्रैक कोर्ट को क्‍यों नहीं सौंपा गया ?
स्त्री के प्रति दोयम दर्जे के व्यवहार की बानगी दुनिया के प्रत्येक शहर के कोने-कोने में देखने को मिलती है. पहले स्त्री युद्घों में विजयी सेनाओं द्वारा लूटी गई सम्पत्ति बनती थी, बाजारों में नीलाम कर दी जाती थी और तो कभी शौकीन मर्दों की ख्वाबगाह की रौनक बनती थी और इस जमाने में भी स्त्री के साथ दुर्व्यहार होता है. दुष्ट, पापियों की तेजाबी निगाहों से जलती महिलायें कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. घर में अपनों के द्वारा शोषित होती हैं. यह पुरुषों के पौरुष से ही निर्मित दुनिया है, जहां भ्रूण से लेकर भूमि तक महिलाएं असुरक्षित हैं. कभी घर में अपनों के द्वारा शोषित होती हैं तो बाहर दुनिया की तेजाबी निगाहों से जलती है, सबसे शर्मनाक बात तो ये है कि भ्रूण में अजन्मी लडकी हमेशा के लिए खामोश कर दी जाती है और अगर बच कर जन्म ले लिया तो समाज के कुछ पापी दरिंदों की वासना का शिकार हो जाती है.
बहरहाल जो भी हो अब देश की जनता ये आशा करती हैं कि इस सम्बंध में एक व्यापक कानून लागू करने के लिए आवश्यक विधेयक को राज्य सभा भी जल्द ही पारित कर देगी. सच तो ये है कि वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. बदलाव उसका मिजाज है......

सुनीता दोहरे....

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