आतंकवाद के सामने हमारी सरकार बेबस और असहाय क्यों?{सच का आइना}...
आतंकवाद के सामने
हमारी सरकार बेबस और असहाय क्यों?{सच का आइना}....
बॉक्स.......क्यों
आतंकी हमलों के बाद सरकार अपना पूरा ध्यान पकिस्तान के आतंकी संगठनों पर लगा देती
है ? सरकार ये क्यों नही सोचती कि इस तरह के आतंकी हमले स्थानीय सहयोग के बिना
संभव नहीं हो सकते...............
आतंकी दिन प्रति दिन सीधे भारत की आत्मा पर ही हमला कर रहे है आतंकवाद के इस भयानक तरीके ने दुनिया भर को हिला कर रख दिया है. क्या आतंकवाद का कोई रंग होता है ? क्या कोई जाति या विशेष धर्म या मजहब होता है ? जब भी किसी आतंकी ने आतंक फैलाया तो पूरी दुनिया गवाह बनी है खून से सने फर्श पर बिखरे काँच और मासूम लोगों की लाशों के बीच होती गोलियों की बौछार की, बम के धमाकों की, धुंएँ से उठी धुंध की, बदहवासी में जान बचा कर भागते लोगों की, चारों ओर चीख पुकार की आवाजें, दर्द से कराहते लोग और सीमित हथियारों पर अदम्य हौसले से आतंकी हमले का मुकाबला करते सुरक्षाकर्मी. देखा जाए तो जेहाद के नाम पर ये दहशतगर्द देश की शान्ति को भंग करने के साथ-साथ मासूम लोगों की जानें लेते हैं. कल्पते-बिलखते मानव और विस्फोट के बाद उड़ता धुआं, शवों के ढेर, मीडिया और पुलिस का हुजूम, समाचार पत्रों के मुख्य पेज की हेड लाइन और टीवी पर ऐसे दिल दहलाने वाले द्रश्य आये दिन देखने को मिल जाते हैं. इन लोगों के निशाने पर देश के बड़े-बड़े नगर कभी दिल्ली, कभी अहमदाबाद, कभी हैदराबाद तो कभी मुंबई होते है. हमारी सरकार और हमारा प्रशासन इन लोगों के आगे बेबस और असहाय नज़र आ रहे हैं. कुछ तारीखें भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुँए से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है. जब-जब इस तरह का मंजर देखने को मिलता है तब-तब भय, पीड़ा, गुस्से से मानो दिमाग सुन्न हो जाता है कुछ कह नहीं सकते, कुछ कर नहीं सकते है. एक बड़ी बिसात पर ये आतंकी मासूमों को कहीं भी आतंक फैलाने की ट्रेनिंग देते है हमले के लिए इन मासूमों को तैयार करने वाले और दरिंदगी की हद तक आतंक फैलाने वाले उन मालिकों के आगे एक इंसान की जिन्दगी की कोई कीमत नहीं होती उन दरिंदों को इंसानियत के खिलाफ आंतक फैलाने में ही आनद आता है और इसलिए जान का सौदा करके ये सौदागर इस तरह के हमलों को अंजाम देकर दुनिया में तबाही मचाते है और अपने द्वारा फैलाई दहशत से हर किसी को नुकसान पहँचाने में सफल हो जाते है. पर सोचने का विषय है कि इन सब हादसों के पीछे कोई न कोई राजनैतिक सम्बन्ध अवश्य होता है. क्योंकि जैसे ही देश मैं कोई भी एक काण्ड होता है और कई दिनों तक मीडिया और पब्लिक के द्वारा ज्यादा उछालने पर बात बढ़ जाती है और काबू में नही हो रही होती है तो पब्लिक का ध्यान भटके इसलिए एक नए हादसे को जन्म दे दिया जाता है. इसके पीछे वो लोग होते हैं जिनकी मानसिकता शोहरत और पैसों के साथ-साथ सियासत से रंगी होती है. इस गंभीर समस्या से भारत को लड़ना पड़ रहा है. हैरत तो इस बात की है कि जिस सवाल का जवाब इतना साफ दिखाई देता हो उसे भारतीय राजनीतिकार समझ क्यों नही पा रहे हैं. भारत में अब राजनीति एक गन्दे खेल के अलावा कुछ नही है. भारतीय राजनीति के खेल ने आतंकवाद को एक ऐसा रंग दे दिया है कि मासूमों की जिन्दगी दांव पर लगाकर ये आतंकी आतंक पर राज कर रहे हैं. देश के ऊपर हुए बेहद खतरनाक आतंकी हमलों ने कई मामलों में देश के सरकारी और निजी तंत्र की पोल खोल कर कर रख दी है. वैसे इन आतंकी हमलों में किसी हिन्दू या मुस्लिम को चुनकर नहीं मारा जाता बल्कि एक आम भारतीय को मारा जाता है.
कई
दशकों से आतंकवाद का दंश झेलने के बावजूद सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया है. हर आतंकी घटना के बाद फौरी
तौर पर कुछ कदम उठाये जाते हैं और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों की भूमिका के
बारे में भी बात की जाती है. लेकिन इससे क्या फायदा ? सभी जानते हैं कि
पाकिस्तान आतंक का केंद्र है और पाकिस्तान से आंतकी संगठनों पर रोक लगाने की उम्मीद
करना बहुत बड़ी बेवकूफी है. इसलिए पाकिस्तान पर आरोप लगाने की बजाय, सरकार
को भारत में इन संगठनों के मददगार लोगों पर नकेल कसनी चाहिए, वो तो करेगी नहीं ये
सरकार क्योंकि हमारे देश में आतंकवाद पर भी राजनीति होती है. राजनीतिक दल अकसर
तात्कालिक लाभ के लिए इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश करते हैं. जबकि हमें समझना चाहिए कि आतंकवाद
का कोई धर्म या मजहब नहीं होता है. आतंकवाद को किसी मजहब या किसी रंग
की नजर से नहीं देखना चाहिए. देखा जाए तो आतंकी हमलों के बाद
सरकार अपना सारा ध्यान पाकिस्तान के आतंकी संगठनों पर लगा देती है वो ये नहीं
सोचती कि इतने बड़े हमले स्थानीय सहयोग के बिना संभव नहीं होते. इन हमले के स्लीपर सेल को पकड़ने पर जोर नहीं दिया
जाता और यही स्लीपर सेल फिर से सक्रिय होकर आगे के धमाकों की साजिश दुबारा नए
धमाके को अंजाम देने के लिए रच रहे होते हैं. और सरकार हांथ पर हांथ धरे बैठी रहती
है.
आतंकवादी घटना की आशंका के बारे में राज्यों को सूचित भर कर देने से केन्द्र के जिम्मदारी की इतिश्री नहीं हो जाती है. ये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमले की आशंका की जानकारी दिये जाने के बाद भी आतंकवादी ऐसा करने में सफल हो जाते हैं.
आतंकवादी घटना की आशंका के बारे में राज्यों को सूचित भर कर देने से केन्द्र के जिम्मदारी की इतिश्री नहीं हो जाती है. ये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमले की आशंका की जानकारी दिये जाने के बाद भी आतंकवादी ऐसा करने में सफल हो जाते हैं.
हमें अक्सर यह भी देखने को मिलता है
कि धमाके के बाद खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां तत्पर तो होती हैं, लेकिन मास्टरमाइंड
तक पहुंच नहीं पाती हैं. और पुलिस जब
तक थोड़ी बहुत जानकारी जुटाने के साथ-साथ दूसरे राज्यों के समकक्षों से उसे साझा
करती है, तब तक साजिशकर्ता फरार हो जाते हैं. इन हालातों को देखते हुए यही कहा जा
सकता है कि अगर पुलिस पेशेवर ढंग से काम करती तो कई आतंकी घटनाओं को समय रहते रोका
जा सकता था.
बहरहाल
जो भी हो ये बात तो एकदम सत्य है कि सरकार का आतंकवादियों के खिलाफ ढुलमुल रवैये
के कारण ही आये दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं. हमें सुरक्षा के साथ-साथ आतंकियों को करारा
जबाब देना होगा तभी ऐसी घटनाओं पर विराम लग सकेगा. आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए इस
सोच को स्वीकार करने के साथ पूरे देश को और सभी दलों को एक होना होगा. तभी सही मायने में आतंकवाद के
खिलाफ लड़ाई में सफलता पाई जा सकती है. इतिहास साक्षी है गलत इरादों पर मानवता के
बुलंद हौसलों ने हमेशा विजय पाई है. आतंकी हादसों से सबक लेकर देश की आवाम को और
सरकार को तैयार रहना चाहिए कर्मठता और हिम्मत की नई परिभाषा रचने के लिए......
सुनीता
दोहरे......
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