दुल्हन ही दहेज़ है ....
दुल्हन ही दहेज़
है ।....
चौधरी साहब की
बड़ी बेटी की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे और काफी धनी परिवार में तय हुई थी। चौधरी
साहब के बड़े अरमान थे कि वो अपनी बेटी कि शादी अच्छे परिवार में करें l वो कहते थे मेरी बेटी के परिवार वाले बहुत ही
सज्जन और भले लोग हों ताकि मेरी बेटी कभी दुखी ना रहे क्यूंकि उनकी बेटी बड़ी ही
सुशील और प्रतिभावान थी l
चौधरी साहब उदास
बैठे थे l क्यूंकि बेटी के होने
वाले ससुर का कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं ।
चाय का कप हाँथ में लिए बैठे चौधरी साहब सोच रहे थे... कि बड़ी मुश्किल से यह अच्छा
लड़का मिला था । कल की बातचीत में कहीं उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा ना हो कि
मैं पूरी भी न कर सकूँ ?" सोचते सोचते उनकी
आँखें भर आयीं....
घर के प्रत्येक
सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...बेटी भी बहुत उदास
थी अपने पापा का उदास चेहरा उससे देखा नहीं जा रहा था । लेकिन करती क्या ?
खैर.. अगले दिन
होने वाले समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..
कुछ देर बैठने के
बाद लड़के के पिता ने चौधरी साहेब से कहा"
कि ...चौधरी साहब अब काम की बात हो जाए.....
चौधरी साहब के
दिल की धड़कन बढ़ गयी ।
लेकिन बोले.. हां
हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..
लड़के के पिताजी
ने अपनी कुर्सी चौधरी साहब की ओर खींची और धीरे से उनके कान में बोले.... चौधरी
साहब मुझे दहेज के बारे बात करनी है!... और आपको मेरी बात का ध्यान रखना पड़ेगा ।
चौधरी साहब ने
अपने दोनों हाथ जोड़ दिए । और अपने आपको
संयत करके ,आँखों में पानी लिए हुए,
माथे का पसीना पौंछते हुए बोले बताईए समधी
जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..
समधी जी ने धीरे
से चौधरी साहब का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....
आप कन्यादान में
कुछ भी देगें या नहीं भी देंगे... मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया
भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं.. क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में
डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही...मुझे बिना कर्ज
वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी..... ऐसी
बहू नसीबों से मिलती है ।
चौधरी साहब हैरान
हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा ।
ये बातें महज
शब्दों का जाल नहीं, बल्कि मेरे
द्वारा कागज पर उतारी गई एक ऐसी दर्द की दास्ताँ है जो दहेज ना लेने की मिसाल देती
हुई प्रतीत होती है l दहेज प्रथा जैसी
कुप्रथाएं आज भी नारी वर्ग को अपमानित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। इसी वजह
से आधुनिक परिवेश में समाज में नारी की स्थिति पर प्रश्चचिन्ह लग गया है। अब समाज
को समझना होगा कि दुल्हन ही दहेज है। दहेज न लेंगे, न ही देंगे। क्यूंकि दहेज दुल्हन के पिता को अत्यंत मानसिक
पीड़ा देता है l देखा जाये तो
दहेज एक ऐसा समाजिक अभिशाप है जो न जाने कितनी ही पीढि़यों से नारी के स्वाभिमान व
प्रतिष्ठा को कलंकित करता आ रहा है। साथ ही लड़की के परिवार वालों के साथ उत्पीड़न
की एक नई कहानी को जन्म देता है।
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति
उप सम्पादक / सरस्वती मंथन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति
उप सम्पादक / सरस्वती मंथन न्यूज़
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