मदिरा मानव और समाज के लिये एक अभिशाप....
मदिरा मानव और समाज के लिये एक अभिशाप....
हमारे देश का अतीत
गौरवशाली रहा है लेकिन वर्तमान में आडंबर व दिखावा हावी होता जा रहा है l जिसमें देश
की आवाम पिसती जा रही हैl जिस प्रकार राजस्व के लिए सरकारों ने जगह-जगह शराब
की दुकानें खुलवा रखीं हैं, उस पर भी चिंता करने की आवश्यकता है। जब तक
सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को
नहीं बचा सकते l अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा
सेवन करेंगे ही l
इस दिशा में जागरूकता
लाने के लिए “शराबबंदी संघर्ष समिति” संयुक्त रूप से
प्रयास कर रही है l वर्षों से समाज को अपना उल्लेखनीय योगदान देने
वाले “शराबबंदी संघर्ष समिति” के अध्यक्ष जनाब
मुर्तजा अली की सेवा प्रंशसनीय और अनुकरणीय है l “शराबबंदी संघर्ष
समिति” की हमेशा यही कोशिश रही है कि और व्यापक रूप से समाज को
अपनी सेवाएं दें सकें l
अगर ध्यान दिया जाये तो मोदी
सरकार ने देशहित में कई अहम निर्णय लिये हैं पर शराबबंदी से सम्बन्धित कोई ठोस
निर्णय नहीं लिया l लेकिन जो देशहित में निर्णय लिए गये उन निर्णयों का समुचित लाभ
ज़रूरतमंद तबकों को मिल पा रहा है कि नहीं, यह देखना भी
सरकार और सरकारी नुमाइंदों की ही जबावदेही बनती है। भारत में तेजी से आर्थिक और राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं। जब
आर्थिक और राजनीतिक बदलाव होते हैं तो उसका सीधा असर समाज पर पड़ता है और ऐसे में
सामाजिक संरचनाएं टूटती हैं। संरचनाओं के टूटने का असर लोगों की मानसिकता पर गहरा
पड़ता है। तय है इससे हर उम्र और हर तबके के लोगों पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन क्या
जो सामाजिक बदलाव हो रहा, वो सही है? जिन हालात में हम रह रहे हैं क्या उससे हम संतुष्ट हैं? क्या समाज के हर
तबके तक वो सारी चीज़े पहुंच रही हैं जिसकी उन्हें उम्मीद है? इन सारे सवालों
से जूझती आवाम को और गंभीरता से सोचना होगा
। देखा जाये तो समाज में एकता की कमी है। एकता से
बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। एकता ही समाजोत्थान का आधार है । जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र
में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ एकता नहीं है वह समाज
ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को
कायम रख सकता है। इसीलिए हमारी "शराब बंदी संघर्ष समिती” ने भी
समाज को जागरूक करने के लिए कुल 32 संगठनों को मिलाकर एक महासंगठन बनाया है l जो कि एकता की एक अनूठी मिसाल है l जो शराबबंदी हेतु कार्य के
साथ साथ समाज में फैली अनेक कुरीतियों से जनता को जागरूक कर रहा है l
चिंता की बात तो यह है कि
हमारी सरकारों ने आजादी के बाद जो सबसे बुरा काम किया है वह है देश को शराबी, नशेड़ी बनाने का
काम। शराब से सर्वाधिक परेशानी निम्न वर्ग को होती है। महिलाएं और बच्चे अधिक
परेशान होते हैं। गरीब बस्तियों में महिलाएं सर्वाधिक पीड़ित हैं। उन पर कपड़े तक
नहीं हैं। जो पैसा बच्चों की पढ़ाई, घर के खाने पर
खर्च होना चाहिए, वो व्यक्ति शराब पर खर्च करता है। वैसे भी
सत्ता पर काबिज हर सरकार की कोशिश रहती है कि वह राजस्व बढ़ाने के लिए शराब के
धंधे का ज्यादा से ज्यादा दोहन कर ले l जाहिर है, ऐसे में सरकारें
नशाबंदी का कदम उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं l शराब के मामले में सरकारों
ने नशाबंदी लागू करने के बजाय उन्होंने गांवों, शहरों, कसबों में
लाइसैंसी दुकानें खुलवा कर शराब पर कानूनी होने का ठप्पा लगा दिया है l उत्तर-प्रदेश
की सरकार को अन्य राज्यों से प्रेरित होकर शराब बंद कर देनी चाहिए। इससे देश को
प्रगति मिलेगी.
सुनीता दोहरे
महिला अध्यक्ष/शराबबंदी
संघर्ष समिति
प्रबंध सम्पादक/इण्डियन
हेल्पलाइन न्यूज़
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