आप चाहे कितने भी ईमानदार हो पर दुनिया आपकी एक गलती के इन्तजार में..{सच का आइना}...




आप चाहे कितने भी ईमानदार हो पर दुनिया आपकी एक गलती के इन्तजार में......

बॉक्स...... भाजपा में सबको बैठे-बैठे प्रधानमंत्री बनना है. देखा जाये तो ऐसे नेता भाजपा के ताबूत मे कील का काम कर रहे है..........


गोवा में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी चुनाव समिति की कमान सौंप दी गई है। ऐसा तब है जब बीजेपी के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी जो अपनी उम्र के 85 वें साल में हैंइस फैसले से बेहद नाराज हैं. आज ऐसी स्थिति है कि आडवाणी खुद को भाजपा से अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. अडवानी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उनकी नाराजगी को कोई ठन्डे दिमाग से समझने के लिए तैयार ही नही है. सूत्रों की माने तो आडवाणी पार्टी के हितों को लेकर ही नरेंद्र मोदी पर इतना सख्त हैं. आडवाणी का मानना है कि यदि नरेंद्र मोदी को इलेक्शन कमिटी का चीफ और फिर 2014 के आम चुनाव के लिए प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया जाता है तो बीजेपी की कांग्रेस के खिलाफ सारी रणनीति पानी में मिल जाएगी। आडवाणी का मानना है कि बीजेपी का चुनावी कैंपेन के दौरान ज्यादा वक्त नरेंद्र मोदी की सेक्युलर इमेज पर सफाई देने में जाएगा। जबकि बीजेपी को मनमोहन सरकार में हुए बड़े घोटालों पर फोकस रहना चाहिए.
यह अध्यक्ष राजनाथ सिंह की भी अग्निपरीक्षा थी कि उन्होंने मोदी बनाम आडवाणी के इस विवाद को कैसे सुलझाया. 
बहरहाल जो भी हो अब तो मोदी की अध्यक्षता में 2014 का चुनाव लड़ेगी बीजेपी.
आज से ठीक 
11 साल पहले इसी गोवा में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में जो आडवाणी मोदी की ढाल बने थेवही आज उनके समक्ष चुनौती बनकर खड़े हैं. गुजरात दंगे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ˜राजधर्म™ निभाने का सुझाव दिया था. गोवा की कार्यकारिणी की बैठक में उनसे इस्तीफा लिया जाना था। किंतु उस समय अटल और मोदी के बीच आडवाणी दीवार बन खड़े हुए थे। आज वर्ष 2013 में उसी मोदी को वर्ष 2014 के चुनाव अभियान की कमान सौंपने के विरुद्ध आडवाणी दीवार बन गए हैं। यह अनायास नहीं है। आरएसएस ने वर्ष 2009 के चुनाव में हार के बाद ही आडवाणी को भाजपा का संरक्षक मान लिया था. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि मोदी कभी भी पीएम नहीं बन सकते. क्योंकि कुछ बजह हैं जो उमको पीएम् की कुर्सी से दूर कर रही हैं. पहली तो ये कि बीजेपी को चाहिए लोकसभा में 272 सीटें लेकिन साथ कोई आना नहीं चाहता. आपसी टूटन और बिखराव से घर में झगड़ा भारी तो फिर कैसे खेलें मोदी पारी लेकिन मोदी हैं कि मानते ही नहीं. उत्तर-प्रदेश में पार्टी के पास कोई उत्तर नहीं है और दक्षिण में मिलता है पार्टी को बस जीरो. सबसे बड़ी खूबी कि वनमैन शो के चलते नहीं चलेगा गठबंधन और नीतियां इसके साथ ही साथ मोदी को संसदीय राजनीति का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है क्योंकि गुजरात के बाहर कहीं भी भाजपा को जीत नहीं दिलाई और सबसे महत्वपूर्ण है कि दंगों का दाग दामन से अभी तक नहीं हटा है. अब तक 272 वो नंबर हैजिसे बीजेपी तब भी हासिल नहीं कर पाईजब देश में 'अबकी बारी अटल बिहारीका शोर था1998 और 1999, ये दो साल हैंजब केंद्र में वाजपेयी के नेतृत्व में बहुमत वाली एनडीए सरकार बनी1998 में बीजेपी 388 सीटों पर चुनाव लड़ी और 182 सीटें जीतीअगले साल कारगिल विजय की लहर और लोकसभा में एक वोट से विश्वास मत खोने की सहानुभूति पर सवार वाजपेयी की सदारत वाली बीजेपी ने सहयोगियों को ज्यादा सीटें दी.
भाजपा के चाहने वालों के लिए यह बहुत ही दुख और चिंता का विषय है कि भाजपा के इतने सारे सीनियर लीडर सच्चाई का सामना और पार्टी मे अपना रूतवा कम होने के आकलन के डर से पार्टी अधिवेशन मे नही गये. एक दुसरे पर आरोप लगाना उनका यह व्यवहार निश्चित ही पार्टी की छवि खराब कर रहा है. कम से कम अधिवेशन मे जा कर आगे चुनावी रणनीति की चर्चा तो करते 
सबको बैठे-बैठे प्रधानमंत्री बनना है. देखा जाये तो ऐसे नेता भाजपा के ताबूत मे कील का काम कर रहे है अगर भाजपा अभी भी एक हो जाए तो आपको सत्ता मे वापस लौटने का इससे अच्छा मौका और नही मिलेगा क्योंकि आम जनता काग्रेस के भ्रष्टाचार से वैसे ही त्रस्त है. जब आडवाणीजी को मौका मिला था तब कुछ नही कर पाये कम से कम अब मोदी जी को आगे ला कर देश का भला कर दीजिये जिससे मोदी के शासन के रंग भी जनता देख ले.
सब समय का फेर है. एक जमाना था जब एनडीए में आडवानी को साम्प्रदायिकता के नाम पर किनारे लगा दिया गया थाऔर आज वही अडवाणी उसी भूत से बीजेपी को डराने में लगे है ओर कह रहे है कि मोदी के नाम से एनडीए बिखर जायेगा. लगता है लगता है आज अडवानी जी बैसाखियों का डर दिखाकर भाजपा को सदा के लिए लंगड़ा पार्टी बना देना चाहते हैं. देखा जाये तो आज बीजेपी के पास वक्त है जनता से जुड़ने का जनता भी चाहती है कि भाजपा से जुड़े मजबूती सेअब इस बार मोदी को अगर दावेदार नही बताया जायेगा तो कहीं ऐसा न हो कि जनता का धैर्य जबाब दे जाये ओर भाजपा हाथ मलती रह जाये क्योंकि जनता भाजपा को वोट सिर्फ इसलिए देना चाहती है कि भाजपा के पास मोदी जैसा दिग्गज है. वो इसलिए नहीं देना चाहती कि उसके पास आडवानी या सुषमा है या कोई ओर सूरमा इनके नाम से न तो पहले कभी ना आज और न कल कोई जनाधार जुड़ा न जुड़ रहा और न जुड़ने वाला है.एक बात तो भाजपा को अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि घर की कलह खुल गयी तो जग हसाई होती है और लड़ाई हौसलों से जीती जाती है बैसाखियों से नहींसरकार आपसी तालमेल से बनती है एक दूसरे पर छींटाकशी से नहीं.
आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि हम तो डूबेंगे सनम 
तुम्हे भी लेकर डूबेंगे '' (हम तो प्रधानमंत्री बन नहीं पाए थे  तुम्हे भी नहीं बनने देंगे)...भाजपा मे हर उम्मीदवार को पद का मोह अजीब बात हेभाजपा नेता तो कहते थे कि हम कुर्सीके लिये नही जनता की सेवा के लिये हें, फिर यह ज़िद क्योंलगता है कि हाथी के दांत वाळी काहावत सही है खाने के दांत और दिखाने के कुछ और......
अडवाणी के द्वारा की हुई घटना से भाजपा की अंतर्कलह उजागर हो गयी और यह भी सिद्द हुआ कि नीतीश कुमार
शिव सेना का मोदी विरोध अभियानआडवाणी और आडवाणी समर्थित भाजपा के नेताओ द्वारा परोक्ष रूप से चलाया गया अभियान था. अगर मोदी तो साइड लाइन किया गया तो एनडीए का मिशन 2014 
का फेल होना पूर्णतया निश्चित है ऐसा आम जनता का मानना है........
सुनो एक पीपल रोप देना हर गाँव हर गली !
जो बेघर हुए मुसाफिर तनिक ठहर तो सकेंगे !!..........
सुनीता दोहरे ..........
 
 

Comments

Popular posts from this blog

इस आधुनिक युग में स्त्री आज भी पुरुषों के समकक्ष नहीं(सच का आइना )

किशोरियों की व्यक्तिगत स्वच्छता बेहद अहम...

10 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस ( सच का आईना )

.देवदासी प्रथा एक घिनौना रूप जिसे धर्म के नाम पर सहमति प्राप्त !

बड़की भाभी का बलिदान . ✍ (एक कहानी ) "स्वरचित"

डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक महान नारीवादी चिंतक थे।

महिला पुरुष की प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि पूरक है(सच का आईना )

कच्ची पक्की नीम निबोली, कंघना बोले, पिया की गोरी

भड़कीले, शोख व अंग-दिखाऊ कपड़ों में महिलाओं की गरिमा धूमिल होने का खतरा बना रहता है...