आँगन की किलकारी... ( एक कहानी )


आँगन की किलकारी... ( एक कहानी )

“नाम काल्पनिक”

मेरी नन्ही सी गुडिया तृप्ति की किलकारियां जब मेरे घर मे गूंजी, बस खुशिया ही खुशीया चारों ओर छायी थी, जैसे लगता हो कि मेरा बचपन मुझे मिल गया हो l प्यारी-प्यारी बातें और खेल तमाशे, कभी हंसनारुठना, फिर कभी मुझे मनाना, छोट छोटे पैरों से ठुमक - ठुमक कर चलना, कभी शरारतों से मन गुद्गुदाना, कभी इठलाना, कभी छोटे भाई को दुलारना, ना जाने कितनी ऐसी सुनहरी यादें हैं जिन्हें बेटी एक पल में पराया कर इक नई जिन्दगी को गले लगाती है l पैदा होने से विदाई तक वो अपनी माँ के आँचल में अपने आपको सहेजती है और अचानक ही एक दिन वो किसी के आँगन की खुशी बन जाती है l कहते हैं माता पिता से बड़ा दिल इस दुनियां में किसी के पास नहीं है, वे अपने जिगर को किसी और के घर का चिराग रौशन करने भेज देते हैं l ....बस यही उम्मीद लिए माँ रहती है कि पराये आँगन की बुलबुल बनने के बाद उनकी बेटी सदा खुश रहेगी l इतना नाज़ुक और इतना भावनापूर्ण है कि दोनों एक दुसरे की जान हैं। बेटी अगर दुखी तो इक माँ खून के आंसू बहाती है और इक माँ अगर दुखी हो तो बेटी का दिल रोता है .दोनो एक दूसरे के दर्द से इस तरह जुड़ी हुई हैं कि जब दोनो गले मिलती हैं तो घंटों एक दूसरे से अलग नही होती l कहते हैं जब एक औरत माँ बनती है तब वह संपूर्ण हो जाती है माँ और बच्चे का रिश्ता दुनियाँ के सभी रिश्तों से विशिष्ट और पवित्र रिश्ता होता है........




बङे ही किस्मत वाले है वो, जिनके घर होती है बेटी l


मेरे घर के आँगन का सच्चा,  मोती है मेरी बेटी ll
तेरे आने से मेरे आँगन में, कोयल सी आवाज़ चहकती है ।
बेटी की चमकती आँखों में, मुझे मेरी दुनिया दिखती है ll
सुबह-सुबह जब बिटिया मुझको मम्मी मम्मी कहती है।
जब जब तूं हंसती है बेटी, तब तेरी मुस्कान महकती है ll 
न भूलूंगी ये पल कभी मैं, जिस पल तू मेरी गोद में खेली है l  
लगे है मुझको ऐसा कि माँ लक्ष्मी, खुद मेरे घर की बेटी है ।l
बेटी तृप्ति तुझे पाकर, मेरी ज़िंदगी खुशहाल हो गई l
तृप्ति संग प्रशांत देख, दामन मे मेरे खुशियां हज़ार हो गईं ll
मांग लूंगी मैं खुदा से, तेरे लिए इस जहाँ की हर खुशी l
और बदले में इसकी हर कीमत को मैं अदा करुंगी ll
सुन बेटी तेरी महिमा का, क्या मै गुण-गान करु l
तू तो खुद सम्मान है मेरा, मै तेरा क्या सम्मान करु ll
पलकों में बसी, सांसों में छिड़ी, इक ऐसी शहनाई है तू l
हर पल मुस्काती गाती सी, इक सुखद एहसास लाई है तू ll
व्यथित ह्रदय है, आँखों में दरिया, विनती यही हमारी है l
सुनो जवाई राजा जी, अब मेरी बेटी हुई तुम्हारी है ll
मेरी ममता का सागर ये, मेरी ऑंखों का ये तारा है l
कैसे बतलाऊं तुमको मैं, बड़े नाजों से इसको पाला है ll
जिस राह से तूं गुज़रे मेरी बिटिया, वहां फूल ही फूल बिछा दूंगी l
होगी विदाई जब तेरी, मेरी लाड़ो, मेरे घर की अंगनाई से ll
ख्वाहिश यही है मेरी, ज़मीं तो जमीं पूरा आसमां सजा दूंगी ।  
सुन मेरी बेटी तेरे सौभाग्य का, सिंदूर घोलकर मैं लाई हूं ll
लिखा विधाता ने भाग्य में तेरे जो, वो वर ढूंढ के लाई हूँ l
दिल की दुआ है बेटी तुम प्रशांत संग, अपना घर संसार बसाओ ll 
अपनी खुशबू से घर आंगन महकाते हुए, उम्मीदो के फूल खिलाओ l
सुन मेरी लाड़ो तुझ बिन सूना हो जाएगा, इस घर का ये अंगना ll
रिश्तों को प्यार से बांधने वाली, उस अंगने में हर पल खनके तेरा कंगना ........

सुनीता दोहरे

प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराब बंदी संघर्ष समिति
उप सम्पादक / सरस्वती मंथन न्यूज़



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