जीवन की वास्तविकताओं से बेखबर है आज का युवा वर्ग ....
जीवन की वास्तविकताओं से बेखबर है आज का युवा वर्ग ....
बलात्कार की घटनाओ पर काबू पाने के लिये अन्य उपायो के साथ
साथ शराब की बिक्री पर भी रोक लगानी चाहिये l शराब इंसान को ही नही बल्कि उसकी
आत्मा का भी नाश कर देती है इसके नशे मे इंसान को कुछ भी भला और बुरा नही सूझता
.....
आधुनिक युग के नौजवान, जीवन की वास्तविकताओं से बेखबर हो, अनजान रास्तों की भूलभुलैयों में भटक कर रह गये हैं l युवाओं को दूध से ज्यादा
शराब भाने लगी है। युवाओं में शराब के प्रति बढ़ता क्रेज समाज व परिवार के लिए
चिंता का सबब बनता जा रहा है। शराब के नशे में युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। देश
का युवा तबका अब कम उम्र में ही मयखाने का दरवाजा तलाश रहा है. देश में बढ़ते सड़क
हादसों की यह एक प्रमुख वजह है l
दुनिया भर में शराब पीना
मौत और अपाहिज होने का पांचवा सबसे प्रमुख कारण बन गया है l एड्स, हिंसा और क्षय रोग की वजह से जितनी जानें जा रही हैं, उनसे ज्यादा जानें शराब पीने की वजह से जा रही हैं l कहा जाता है कि किसी भी
राष्ट्र का विकास वहां के युवाओ पर निर्भर
करता, है जिस देश के युवा जितने ज्यादा जागरूक जोश जूनून और जज्बे से भरे होंगे उस देश
की विकास दर भी उतनी ही अधिक होगी, इसलिए कहा जाता है युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति होती है l यह सच्चाई है कि मादक
पदार्थों के नशे के लती, समाज के बीच तिरस्कृत होते है और उन्हे घृणा की
दृष्टि से देखा जाता है । प्रबल नैतिक आंदोलन की कमी के कारण राज्य में सामाजिक दबाव
न बनने पर लोग शराबा जैसे निर्णयों को गंभीरता से नहीं लेते । वहीं मुफ्त शराब का
आदी वर्ग, भ्रष्ट नौकरशाही और शराब के धंधे में लगे
उद्योगपति ही शराबबदी जैसे फैसलों के विरुद्ध सरकार के लिए समस्या बन खड़े होते हैं l हमारे आस पास बढ़ते बलात्कार और अपराध का एक
महत्वपूर्ण कारण शराब है। कितनी ही महिलाओं और बच्चों को शराब का नशा वो जख्म दे
गया जिनके निशान उनके शरीर पर से समय ने भले ही मिटा दिए हों लेकिन रूह तो आज भी
घायल है। यह सिद्ध हो चुका है कि घरेलू हिंसा में शराब एक अहम कारण है।
देखा जाए तो "मुंह, लीवर और स्तन समेत कैंसर
की कई किस्मों का संबंध शराब के सेवन से है." कम उम्र के युवकों के साथ
युवतियों में बढ़ती शराबखोरी गहरी चिंता का विषय है. युवतियों को होने वाली
विभिन्न बीमारियों का प्रभाव उनकी संतान पर भी पड़ता है. लिहाजा, बढ़ती शरबाखोरी के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं l दरअसल आज इसने
हमारे समाज में जाति, उम्र, लिंग, स्टेटस, अमीर, गरीब हर प्रकार के
बन्धनों को तोड़ कर अपना एक ख़ास मुकाम बना लिया है।
अगर गौर किया जाये तो चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राजनैतिक दल
और प्रत्याशी शराब बांटते हैं। इससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा
प्रभावित होती है। सामाजिक बुराई बन चुकी
शराब, समाज को धीरे धीरे खोखला कर रही है l नशा सामजिक बुराई व मानसिक बीमारी भी
है l पीड़ित व्यक्ति खुद के साथ साथ समाज का भी नुक्सान करता है l पीड़ित आस पास के
लोगों को भी नशे की ओर आकर्षित करता है l आज शराब परिवारों की खुशहाली को उजाड़ रही
है। ऐसे में शराब पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाकर ही समाज को स्वस्थ व खुशहाल बनाया
जा सकता है। हमें ज्ञात है कि अनेक गांवों में शराब की अवैध बिक्री करने वाले लोग
अपने घर की महिलाओं को भी इस धंधे में झोंक रहे हैं और महिलाएं भी बेझिझक शराब
बेंचती हैं जिन्हें रोक पाने में आबकारी व पुलिस विभाग नाकाम रहे हैं l ऊपर से दूसरे उत्पादों के बहाने टीवी चैनलों और अखबारों में शराब की विभिन्न
किस्मों के लुभावने विज्ञापन दिखाए और छापे जा रहे हैं लेकिन कोई भी सरकार इस पर
अंकुश लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखाती है l इन लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित होकर
कम उम्र के किशोर भी शराब की बोलत को मुंह लगा रहे हैं l विडम्बना यह है कि नशे और
नशीले पदार्थो को रोकने के लिए कानून तो बना दिये गये लेकिन उन पर कोई ठोस अमल
नहीं किया जाता है।प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब
फूलफल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं.
सरकार के पास पढ़ेलिखे, अनपढ़, अमीरगरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंगरेजी शराब तक का बंदोबस्त है l शराब को घर घर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी
बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए l उपर से इसके
अंधाधुंध प्रचार व प्रसार ने असामाजिक व अपराधिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया है ।
यह सत्य है कि शराब और अपराध एक-दूसरे के पूरक हैं । दुर्भाग्य से शराब की लत से
सबसे ज्यादा गरीब और कमजोर तबके प्रभावित होते हैं । जो पैसे वाले है या
प्रभावशाली अधिकारी, उद्योगपति या
राजनेता हैं उन पर कोई असर नहीं होता । नशा एक ऐसी प्रवृति है। जो युवकों को
अंधकार के गर्त में ले जा रही है। इसकी लत लगने पर मुश्किल से ही छुटकारा पाया जा
सकता है। युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेने वाली यह बुराई उस दीमक के समान है जो एक
बार लगने पर व्यकित को खोखला करके ही दम लेती है l सरकार इन सबको दर किनार कर शराब
बेचकर लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहीं है। अल्कोहल कई अंगों पर बुरा असर डाल
सकता है या फिर 200 से ज्यादा
बीमारियां पैदा कर सकता है l शराब आज की तारीख
में एक बड़ी सामाजिक समस्या है l कोई भी ढंग का और
सामाजिक सरोकार रखने वाला व्यक्ति शराब की सार्वजनिक वकालत कतई नहीं कर सकता.
जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट
में आने से लोगों को नहीं बचा सकते. अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल
देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही. जहां शराब बंद करने का
दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और खराब
गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है,
जो जानलेवा साबित होती
है. शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है l देश भर में महिलाओं पर अत्याचार तथा घरेलू हिंसा, यौन हिंसा आदि का प्रमुख कारण शराब ही है l समाज का तथाकथित उच्च वर्ग स्वयं
को आधूनिक तथा धनी प्रदर्शित करने के लिए इसका उपयोग करता है | शराब के सेवन को समृध्धि और फैशन का प्रतीक समझता है | परिणाम स्वरूप उस परिवार का बेटा, बेटी, बहु भी इस और अग्रसर होते हैं और मध्यवर्ग के अपने मित्रों
को भी इस दलदल में घसीटते हैं |
मध्यवर्ग के युवा इस चकाचोंध
में अनजाने ही शामिल होते चले जाते है और इस लत के शिकार हो जाते है | धीरे धीरे इस लत के कारण आर्थिक तंगी आने लगती है और ये तंगी उन्हें गलत राह
पर ला छोडती है l जहाँ से वापस
मुड़ना नामुमकिन सा प्रतीत होने लगता है.
सरकार को चाहिए कि तुरंत शराब बंदी लागू करे, क्योकि अब तक जितने ऐसे घिनौने
जुर्म के वाकये सामने आये है l उन सब की
जड़ शराब ही है l हर आरोपी शराब के नशे में इस प्रकार के घृणित कृत्य करता है l सरकार
को तुरंत प्रदेश मे शराब बंद करनी चाहिये जिससे प्रदेश में अपराधिक गतिविधियो पर
अंकुश लग सके l राज्य सरकार को यहाँ की जम्हूरियत के प्रति अपने सबसे मूलभूत
दायित्वों का सम्मान करना चाहिए और साथ ही कानून के शासन को बनाए रखने के लिए कठोर
नियमों को लाना चाहिए l अगर सरकार नियमों
के तहत दंड बढायेगी तो स्वतः ही कई प्रक्रियाएं स्वचालित हो जाएंगी, जिससे एक मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली का जन्म होगा l जिसके चलते वह खुद ही पर्याप्त
परिणाम उपलब्ध कराएगी l जब कठोर कानून का शासन होगा तो हम एक कुशल समाज भी बना
पाएंगे l शराब एक समस्या
है तो उससे निबटने के सार्थक और व्यवाहारिक प्रयास भी होने चाहिए, कोरे नैतिकतावादी आदर्शवादी रवैए से सबका नुक़सान होगा l सरकार जहां आबकारी कर
से होने वाले लाभ के कारण नयी-नयी शराब की दुकानें खोलकर शराबखोरी को बढावा देती
है वही शराब पीकर होने वाली मौतों से सरकार कोई सबक नहीं लेती । भारतीय समाज, स्वास्थ्य विभाग, पत्र-पत्रिकाएं, कानून शराब के खिलाफ
कितना भी प्रचार प्रसार करें मगर
यह सत्य है कि देश मे शराबखोरी का दायरा लगातार बढता जा रहा है.
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति
उप सम्पादक / सरस्वती मंथन न्यूज़
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