जनाब मुर्तजा अली से: एक मुलाक़ात ....
जनाब
मुर्तजा अली से: एक मुलाक़ात ....
मादक पदार्थों के बढ़ते सेवन से आये दिन होने
वाली मौतों को मद्देनजर रखते हुए "शराबबंदी संघर्ष समिती उत्तर प्रदेश” के अध्यक्ष जनाब मुर्तजा अली ने जनहित के लिए कई
संस्थाओं के साथ मिलकर एवं संगठन नशामुक्त अभियान का संचालन कर उत्तर प्रदेश को
नशामुक्त करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं l "शराब बंदी संघर्ष समिती
उत्तर प्रदेश” का प्रयास है कि
नशीले पदार्थो की आपूर्ति को रोका जाये l शराबबंदी संघर्ष समिति के अध्यक्ष जनाब
मुर्तजा अली ने अपने कार्यों से आम-जन पर होने वाले अन्याय व अत्याचारों पर अंकुश
लगाने का काम किया है निश्चित ही शराबबंदी संघर्ष समिति आम-जन के विश्वास का
पर्याय बन चुका है l आइये जनाब मुर्तजा
अली जी से मिलकर उनके कुछ विचार जानते हैं l
सौरभ दोहरे : सर, आजमगढ़ : रौनापार के केवतहिया, रसूलपुर व सलेमपुर में जहरीली शराब से
मरने वालों की बढती संख्या को देखकर पूरे तहसील क्षेत्र में दहशत का माहौल था ।
जिसके चलते सीएम के निर्देश पर डीएम ने थानाध्यक्ष रौनापर, इलाके के
सब इंस्पेक्टर समेत तीन को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था और साथ ही
मजिस्ट्ररियल जांच के आदेश दे दिए गए थे l
सर ! मेरा सवाल यह है कि क्या निलंबन
और मजिस्ट्ररियल जांच से मृतकों के परिजनों को न्याय मिल पाएगा और क्या इस तरह का
गोरखधंधा बिना पुलिस की मिलीभगत के संभव है। सरकार क्या भविष्य में इस तरह की
घटनाओं पर रोक लगा पाएगी।”
जनाब मुर्तजा अली : सब इंस्पेक्टर समेत
तीन को निलंबित कर अपने आपको पाक साफ बताने का सरकार ने जो असफल प्रयास किया है उसको
जनता बखूबी समझ रही है l ये तो साफ़ जाहिर है कि यूपी में जहरीली शराब से हुई मौतों
ने सरकार की नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। देश में ऐसे राज्य और शहर की कमी नहीं, जहां पुलिस की मदद से चाय की दुकानों के साथ
अवैध शराब की दुकानें खुल जाया करती हैं। हाईवे पर ठेका, देशी शराब के विज्ञापन और शराब पीकर गाड़ी न
चलायें की सरकारी नसीहत व चेतावनियों का ही नतीजा है कि शराब पहले से ज्यादा अधिक
मात्रा में लोगों तक पहुँच रही है l उत्तर – प्रदेश में
जिस तरह बनाई और शराब बेचीं जा रही है उससे साफ पता चलता है कि सरकार को जनता की बिल्कुल
भी परवाह नहीं हैl उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कच्ची शराब पीने से 40
लोगों की मौत हो गयी लेकिन सरकार इसे एक आम घटना मान कर भूल जायेगी मगर मेरे लिए
ये आम घटना नही बल्कि, एक चिंता का विषय है l
जहां एक तरफ इससे सरकार को भारी राजस्व प्राप्त
हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इससे हो रही या इसके चलते हो रहीं मौतों का ग्राफ
लगातार बढ़ता जा रहा है। टीवी और वेबसाइटों की स्क्रीन से लेकर अखबारों के पन्नों
तक रोज हम ऐसा कुछ न कुछ जरूर पढ़ते हैं जिसमें या तो शराब से हुई मौतों का जिक्र
होता है या फिर ये बताया जाता है कि कहीं शराब के प्रभाव से व्यक्ति ने हत्या, बलात्कार, लूट का प्रयास किया या वो सड़क हादसे से जुड़ी घटनाओं का
शिकार हुआ। महिलाओं के साथ होने वाले 70 से 85% अपराधों में महिलाओं का हाँथ होता
है l अगर सरकार जहरीली शराब पीने से हुई मौतों पर अपना रुख साफ नहीं कर सकती है तो
फिर, ऐसी
सरकार का हमें बहिष्कार करना चाहिए l क्यूंकि उत्तर प्रदेश में कच्ची शराब से हो
रहीं मौतों की खबरें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं l दारू से आमदानी बढ़ाना किसी
भी सरकार के लिये बहुत आसान होता है, शराब को सामाजिक बुराई समझा जाता है। इस लिये जब दारू की
कीमत बढ़ाई जाती है तो कहीं कोई विरोध नहीं होता।
सरकार को कभी यह चिंता नहीं रहती है कि शराब का समाज पर कितना बुरा प्रभाव
पढ़ रहा है, उसे तो हर समय अपना
राजस्व बढ़ाने की चिंता रहती है l
जब शराब से बड़ी वारदात हो जाती है जैसे आजमगढ़
में 40 लोगों की मौत हो गई तो आबकारी विभाग और पुलिस विभाग मिलकर इस तरह की
कार्यवाही करते हैं और उन्हें इस तरह कार्यवाहियों में बड़ी कामयाबी मिलती है
क्योंकि उनको सब पहले से पता होता है फिर कुछ दिनों बाद जैसे पहले चल रहा होता है
वैसे फिर शुरू हो जाता है और तब तक यह चलता रहता है जब तक कोई बड़ी वारदात नहीं हो जाती l सरकार, पुलिस विभाग, आबकारी विभाग यह
तीनों की मिलीभगत से ऐसे ही चलता रहेगा जब तक शराब पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया
जाता है l
एक पियक्कड़ अपनी जेब का भार कम करने के चक्कर में अन्य राज्यों से तस्करी करके
लाई जाने वाली और अवैध तरीके से तैयार की जाने वाली शराब का सेवन करके अपनी सेहत
और जान से खिलवाड़ कर रहे हैं, अवैध तरीकों से बनने वाली शराब का सेवन करके
मरने वालों की लिस्ट भी लगातार लम्बी होती जा रही है। लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में
अवैध शराब का धंधा पुलिस संरक्षण में खूब फलफूल रहा है जो अक्सर ही जानलेवा साबित
होता है l इसी को मद्देनजर रखते हुए हमने दिनॉंक 16-7-2017 को सदर गुरूद्धारा लखनऊ में सदर गुरूद्धारा के अध्यक्ष एवं
पूर्वमंत्री श्री हरपाल सिंह जग्गी के साथ आजमगढ़ में जहरीली शराब पीकर मरें लोगों
के मुद्दे पर गहन चर्चा की। जिसके उपरान्त बैठक में उपस्थित सदस्यों ने एक विशेष
सर्वधर्म सम्मेलन कराकर, शराब के विरोध में
लोगों जागरूक करने और सरकार को इसे शराब बन्द करने की मांग की जाएगी।
अगर बात जिले-जिले अवैध शराब के धंधे की करी जाये
तो कई कारणों से चर्चा में रहने वाला आजमगढ़ आजकल अवैध शराब के कारोबार के कारण भी
खूब नाम कमा रहा है। क्षेत्र में कच्ची शराब बनाने का धंधा धीरे-धीरे कुटीर
उद्योग बनता जा रहा है। महराजगंज, घुरघुटवा, इब्राहिमाबाद,
जेठवनी, मठ, गाजीपुर,
अल्पीपुरवा, बडेलानरायनपुर,
टेमा, सुखीपुर, धुनौली,
आदि गांवों में आबकारी विभाग व पुलिस की मिलीभगत से कच्ची
शराब के धंधे बाज बेखौफ हैै। गांव-गांव शराब की भट्टियां धधक रही हैं जो
अक्सर गरीब पियक्कड़ो की मौत का कारण भी
बनती है। तीर्थनगरी इलाहाबाद में ही अवैध शराब गांव-गांव में बन
रही है। यहां के सोरांव नवाबगंज, नैनी, बारा,
लालापुर व कौंधियारा में शराब का कारोबार उद्योग की तरह चल
रहा है। जिला कौशाम्बी के पूरामुफ्ती, चरवा, मंझनपुर, सैनी, करारी व सरायअकिल में भी यह धंधा फल-फूल रहा
है। वाराणसी के आसपास देसी दारू बनाने का
धंधा लम्बे समय से चल रहा है। यही हाल कानपुर, आगरा, पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के जिलों मुरादाबाद, मेरठ, गाजियाबाद आदि जिलों का है। उत्तर प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई जिला होगा
जहां जहरीली शराब का धंधा न चल रहा हो और इससे किसी की कभी मौतें न हुई होगी।
शराब के कारोबार के प्रति सरकारी दृष्टि में एक
और विरोधाभास है। सरकार कई सख्त कदम उठाने का दावा करती है। वह कहती है कि प्रशासन
गुनहगारों को नहीं छोड़ेगा। ये दावे सही भी हो सकते हैं। इस तरह की कार्रवाइयों से
किसी का विरोध नहीं हो सकता। लेकिन शराब से मौत की घटनाओं का जारी सिलसिला सरकार
के दावों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। जहरीली शराब से मौत के प्रकाशित समाचारों से यह
भ्रम बना रहता है कि लोग सरकारी शराब यानी वैध शराब से नहीं, बल्कि जहरीली शराब यानी अवैध शराब से मर रहे
हैं। इन घटनाओं से बाजार के इस अर्थशास्त्र को हवा मिलती है कि बाजार में शराब की ‘मांग’ के विरुद्ध बराबर की ‘आपूर्ति’ नहीं हो रही है; सरकार ‘मांग’ और ‘आपूर्ति’ में संतुलन के लिए वैध शराब (सरकारी शराब) का धंधा तेज करे
तो मौत की घटनाएं कम होंगी! लेकिन शराब से मरनेवाले लोगों के परिवारों एवं परिजनों
की गुहार का आशय इससे बिल्कुल अलग और उल्टा है। उनकी गुहार से यह ध्वनित होता है
कि वैध शराब के ‘रूट मैप’ से ही अवैध शराब के कारोबार का रास्ता गुजरता है.
सौरभ दोहरे :
सर, क्या आपको लगता है कि शराब की दुकानों की संख्या में कमी लानी चाहिए, शराब को
केवल शहरी क्षेत्र में ही बेचने की इजाजत हो, जिससे गरीब जनता
इससे दूर रह सके l क्या हमारे सरकार को कोई ऐसा कानून नहीं बनाना चाहिए जिससे उन
निर्दोष गरीबो के घर उजड़ने से बचाये जा सके ?
जनाब मुर्तजा अली : क्या आपको लगता है कि, शराब इंसान के लिए इतनी जरूरी है कि इसका व्यवसाय बढ़ाया
जाये या फिर क्या शराब ज़िंदगी के लिये इतनी ज़रूरी चीज़ है कि ये उस आदमी को भी पीनी
चाहिये जो दिन भर मे सिर्फ़ 100 रुपये कमाता है. और जब पैसे नही मिलते तो अपने
पत्नी की पिटाई करता है, उधार लेता है, घर के बर्तन गिरवी रखता है, चोरी करता है, और फिर किसी देसी के अड्डे से निकल कर रात भर सड़क के किनारे किसी नाली मे पड़ा
रहता है l क्या इतनी शराब की छूट
देना फायदेमंद है ? अगर नहीं तो सरकार को जरुर ऐसा कोई कानून बनाना
चाहिए जिसमे कुछ शर्ते हो जिन्हें पूरा करने के बाद ही आदमी को शराब छूने की इजाजत
हो l आपको पता होना चाहिए कि एक दिहाड़ी मजदूर जो दिन भर मे 300 रूपये मुश्किल से
कमा पाता है,
और उसमे से 150 से 200 रूपये घटिया देशी शराब के दो पाउच पर लगा देता है तो उसका सेहत और जेब दोनो बर्बाद हो
जाता है साथ मे उसका पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है । मैं ये ज़रूर कहूंगा कि उच्च, मध्यम या निम्न, वर्ग कोई हो शराब ने सिर्फ़ खराबियां ही फैलाई
हैं और विडंबना ये है कि ये खराबी पीने वालों तक ही सीमित नही रहती उसके
रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ साथ अंजान लोगों को भी अपने लपेटे मे ले लेती है l
शराबबंदी के विरोध में यह
भी तर्क दिया जाता है कि प्रतिबंधित करने के बाद भी शराब तस्करी के माध्यम से चोरी
छिपे राज्य में आएगी। ये बात कुछ हद तक ठीक हो सकती है, लेकिन सरकार में प्रतिबंधित करने की इच्छाशक्ति हो तो इसे भी रोका जा सकता है।
राज्य में शराबबंदी में रुकावट का एक बड़ा कारण शराब-लॉबी की राजनेताओं से साठगांठ
है। चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को यह शराब माफिया साम-दाम की नीति द्वारा
नियंत्रित कर लेता है। चुनावों के लिए इन्हें सर्वाधिक चंदा व अन्य संसाधन इन्हीं
शराब कारोबारियों से मिलते हैं।
सौरभ दोहरे : सर,
"शराब बंदी संघर्ष समिती उत्तर प्रदेश” के क्या - क्या
प्रयास हैं तथा आप नवयुवाओं को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
जनाब मुर्तजा अली : "शराब बंदी
संघर्ष समिती उत्तर - प्रदेश” का प्रयास है कि नशीले पदार्थो की आपूर्ति
को रोका जाये, स्वच्छ भारत अभियान में सहयोग किया जाये,
स्वच्छता अभियान के तहत लोगों को उनके दैनिक कार्यों में से कुछ घंटे निकालकर भारत
में स्वच्छता संबंधी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना है, महिलाओं को उनके
अधिकार दिलाने सम्बन्धित और साथ ही महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक पहल और बाल
मजदूरी पर रोक लगाईं जाये आदि l
इसके साथ ही मेरा युवाओं से आह्वान है कि वे
नशीले पदार्थों के सेवन के खिलाफ जनमत तैयार कर इन नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों
के प्रति जनमानस को जागरूक करने का बीड़ा उठाएं। आज हमें ये अच्छे से समझना होगा
कि जो भ्रष्ट है, वो शराब का धंधा करता है, सरकारी योजनाओं, परियोजनाओं को अपनी या अपने परिजनों
की मुट्ठी में रखता है; जातीय या सांप्रदायिक नारे के बल पर
अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाता है, गुंडों का आतंक फैला कर
हमारा वोट हड़पना चाहता है, ऐसा व्यक्ति किसी भी पार्टी से
टिकट लेकर क्यों न सामने आ जाए, उसे हमारा वोट नहीं मिलना
चाहिए, ऐसे लोगों को वोट देकर लोकसभा में भेजना हम जनता के
लिए देश के साथ गद्दारी होगी l सरकार को जनहित में शराब बंदी लागू करनी चाहिए, क्यूंकि शराब की लत से केवल कुछ
परिवार ही नहीं, बल्कि पूरा समाज इससे प्रभावित होता है l इससे निपटने के लिए हमें पूर्ण शराबबंदी के लिए समाज सुधार आंदोलन चलाना
होगा, जिसमें हम सभी को शामिल होना होगा l ये सच है कि शराबबंदी के फरमान के पहले
अवैध शराब की भट्ठी बंद हों, क्योंकि जब तक अवैध रूप से शराब की बिक्री होगी, तब तक पूरी तरह से शराबबंदी संभव नहीं है इसके लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा l शराबबंदी अभियान जागरूकता और सामाजिक आंदोलन
के बाद ही सफल हो पायेगा l
सौरभ दोहरे
विशेष संवाददाता
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
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