गन्ना किसानों की पीड़ा......

गन्ना किसानों की पीड़ा...



185 ग्राम का पैकेट है, 39/- रूपये का ये गन्ना है, छिला हुआ, कटा हुआ, पैकेटबंद और रिलायंस के मॉल में बिक रहा है । देखा जाए तो इस हिसाब से इसकी कीमत हुई 2,10,810/- रूपया प्रति टन । लेकिन जो इस देश के अन्नदाता हैं जिनकी रात दिन की मेहनत से हम जीवित रहते हैं वही किसान लोग 3250/- प्रति टन के लिए अपनी जान दे रहे हैं, वो भी उधारी में, और ऊपर से ये कि पैसा साल भर के भीतर मिल जाए तो बहुत बड़ी बात l कमी कहाँ और किसमे है ? ये विचारणीय है l आज गाँव मे रहने वाला हर युवा नेट से जुड़ा है हर तरह की जानकारी उसके पास है बाहर बहुत आकर्षण है और खेती मे हाडतोड मेहनत के बाद भी जीवन यापन के लाले हैं l इन हालातों को देखते हुए  अगर आने वाली पीढ़िया खेती से विमुख हो गई तो कौन ज़िम्मेदार होगा ? और ऐसे कब तक हम कृषि प्रधान बने रहेंगे ? गन्ने से हजारों करोड़ रूपये कमाने वाली सरकार की झोली तो भर जाती है परन्तु कड़वी सच्चाई ये है कि गन्ना किसानों की बदहाली चरम पर है l  इतने साल देश को आज़ाद हुए हो गए तो फिर देश मे क्यू नही एक सही व्यवस्था का निर्माण हुआ ? बस बिचौलिँए मलाई खा जाते है और दिन रात मेहनत करने वाला किसान सही से गुज़र बसर भी नही कर पाता.
एक टन गन्ने में करीब 45 किलो शीरा बनता है जिसमें करीब 10 लीटर देशी शराब बनती है इतनी शराब पर सरकार के खजाने में करीब 1500 रुपये जाते है इसीलिए मिलों को अपने शीरे का 15 प्रतिशत अनिवार्य रूप से देसी शराब के उत्पादकों को देना होता है इसके अलावा उन्हें खुले बाजार में बेचे जाने वाले हर 9 क्विंटल शीरे में से एक क्विंटल देशी दारू बनाने वालों को भी देना होता है
गन्ना मिले कई महीनों की किसानों की मेहनत उनका गन्ना ले लेती है उसके बदले मे उन्हे पर्चियाँ थमा देती है गन्ने से चीनी बना कर बेचती है सीरा,अल्कोहल, बनाती है पेपर बनता है अगर पेपर नही बनाती तो उसे जला कर बिजली बनाती है और बचे वेस्ट से फरटिलाजर बनाती है l मिल मालिक इतना फ़ायदा उठाकर भी गन्ना किसानों का भुगतान नही करते l किसानों के लिए अपने पैसे लेने के लिए आंदोलन करने तक की नौबत आ जाती है l इन मेहनतकश किसानों के साथ इतनी नाइंसाफ़ी होती है तो कैसी सरकारें l ये आज से नही हो रहा पिछले अनगिनत सालों से यही हो रहा है l गन्ने से हजारों करोड़ रुपये कमाने वाली सरकार अगर इसका एक चौथाई भी किसानों पर खर्च कर दे तो इस मामले पर बात हर तरफ से बन सकती है.
शुरू से ही सरकारे अगर इन प्राइवेट कंपनियों पर लगाम रखती तो देश तरक्की पर होता या तो इसका 50 प्रतिशत किसान को मिलना चहिये या फिर इन सबकी कीमत सरकार को तय करनी चाहिये ताकि ये मनमानी न कर सके जिससे किसान और जनता दोनो का फ़ायदा हो......
 सुनीता दोहरे ....


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