आखिर 1961 से 2012 तक पूरा भारतीय क्षेत्र बरेली और असम सहित साम्प्रदायिक दंगे की चपेट में क्यों ? -( सच का आईना )



उत्तर- प्रदेश के बरेली शहर के शाहबाद इलाके में कांवड़ियों और दूसरे
समुदाय के लोगों के बीच गत 22 जुलाई को हुए मामूली विवाद ने हिंसा का रूप
ले लिया ! हिंसा में कई लोगों कि मौत हुई ! सैकड़ों को गिरफ्तार किया गया
! और हिंसा के कारण बिगड़े हुए हालत को देखते हुए प्रशासन ने शहर में
कर्फ्यू लगा दिया गया ! हिंसा में साथ देने वाले और शांति भंग करने वाले
करीब 300 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया ! पर नतीजा जस का तस ! धर्म
को पालन करने का चस्का लोगों में एक नशे कि लत कि तरह होता है ! जो
व्यक्ति को खोखला  होने के उपरान्त भी त्यागना नहीं चाहता है !
कांवड़ियों और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच झगड़े ने इतना तूल पकड़ा ! कि
दोनों ओर से पथराव और गोलीबारी होने लगी ! दंगाइयों ने दुकानों में आग
लगा दी ! बरेली को नजर एक दिन में नहीं लगी वहां का माहौल खराब करने की
कोशिश बहुत पहले से हो रही थी ! और वही हुआ ! देखते-देखते इस दंगे कि आग
पूरे शहर में फ़ैल गई ! गोलीबारी में बारादरी स्थित रोली टोला निवासी
इमरान नामक व्यक्ति कि मौत हुई कई संख्या में लोग घायल हुए !
आम जनता त्रस्त है ! और वहीँ नौकरशाह परेशान ! गरीबों को खाने के लाले
पड़े है ! सबसे ज्यादा असर गरीबों और मजदूरों पर पड़ा है ! जो मजदूर रोज
की कमाई से अपने परिवार का पेट पालता है ! इन दंगों के कारण वह घर से
निकल नहीं सकता ! लिहाजा परिवार के सदस्य भूखे रहते है ! सड़क यातायात
पूरी तरह ठप्प हो जाता है ! जिसकी वजह से आवश्यक बस्तुओं की कीमतें आसमान
छूने लगती है !
 अब देखें कि आंकड़े क्या बोलते है ;--
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गृहमंत्रालय के द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे भारत में पिछले  चार सालों में लगभग
2,420  से अत्यधिक छोटी बड़ी साम्प्रदायिक हिंसाये हुई जिनमें कई
बेगुनाहों कि जाने गईं ! कई घायल हुये ! साम्प्रदायिक हिंसा के औसत के
अनुसार अगर देखा जाए ! तो देश के किसी न किसी हिस्से में हर दिन कोई न
कोई साम्प्रदायिक हिंसा घटित हो ही जाती है !
साम्प्रदायिक हिंसा समाज पर अपना दूरगामी प्रभाव छोड़ती है ! जिससे समाज
में कटुता वैमनस्य और अपराध का ग्राफ बढता है ! देश कि बागडोर संभालने
वाले जनता के प्रतिनिधी ही किसी न किसी तरह साम्प्रदायिकता की आड़ में
अपनी राजनीत को परवान चढ़ाते है ! तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है ! इस
देश के भ्रष्ट नेता साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देकर जनता की भावनाओं से
खिलवाड़ करते हैं ! पर जब जनता धैर्य और सहनशीलता की सीमा पार कर जाती है
! तो फिर देश में साम्प्रदायिक दंगे होते हैं ! हाल ही के पिछले सालों के
आंकड़े ये कहते हैं ! कि 2008  में साम्प्रदायिक हिंसा की 256  घटनाओं
में 123  लोग मारे गए ! 2,270  लोग घायल हुये थे ! वहीँ 2009 में 773
घटनाओं में सौ से ऊपर लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और भारी मात्रा
में लोग घायल हुये ! 2010   साम्प्रदायिक हिंसा कि 651 घटनाएं हुईं !
दंगे होते क्यों है और कौन सी ताकतें इसकी वजह है :-- 
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देखा जाये तो समूचे भारत में दंगे आखिर होते क्यों हैं ! और इन आंकड़ों कि
आवाज क्या है ! 1961 में पहला साम्प्रदायिक दंगा मध्य प्रदेश के जबलपुर
शहर में हुआ था ! फिर तो मानो इन साम्प्रदायिक दंगों कि शुरूआत ही हो गई
! फिर बात चाहें गुजरात में  1969 के दंगे कि हो ! या सिख्ख विरोधी हिंसा
1984 की  हो ! या फिर मेरठ के दंगे 1987 के हों जो पूरे दो महीने चले !
और अपने पीछे छोड़ गया आम जनता के लिए एक अंतहीन दर्द ! भागलपुर का दंगा
1989 में हुआ था ! बाबरी कांड की इन्तहां देखिये जो 1992-1993 में हुआ था
! और 2002 में  गुजरात दंगा हुआ जिसने पूरे गुजरात को हिला कर रख दिया !
दूर क्यों जाते है पिछले दिनों फैली उत्तर-प्रदेश बरेली में हिंसा ! जो
पिछले नौ दिनों से लगातार जारी है ! और साथ ही साथ असम में भी वही हिंसा
का दौर चल रहा है ! जिसमें करीब दो लाख लोग बेघर हो चुके है ! और सरकार
द्वारा बनाये हुए शिवरों में रहने को मजबूर है ! कोई भी साम्प्रदायिक
हिंसा भड़कने  का कारण किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं का आहात होना
है ! धैर्य और सहनशीलता की कमी के साथ-साथ किसी भी क्रिया का
प्रतिकारात्मक उत्तर देना शामिल होता है ! अभी पिछले  9  दिनों से
उत्तर-प्रदेश के बरेली शहर में भड़की साम्प्रदायिक हिंसा के पीछे मूल वजह
थी ! कि कांवडियों के द्वारा साउंड सिस्टम बजाने से दूसरे समुदाय के
लोगों की भावनाएं आहत हुई ! और पूरा बरेली शहर दंगे की चपेट में आ गया !
अब देखिये हिंसा का खौफनाक रूप मेरठ में 2011 में हुआ ! और मध्य-प्रदेश
के उज्जैन शहर के दौलतगंज चौराहे पर गणेश की प्रतिमा की स्थापना को लेकर
सितम्बर 2011 में जो साम्प्रदायिक दंगे हुए उसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई
 देखा जाये तो विभिन्न समुदाय के लोग एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं पर
कुठाराघात करते है ! और उनके इस आचरण से मामूली सा विवाद एक बड़ी
साम्प्रदायिक हिंसा का कारण होता है ! अब प्रश्न ये उठता है ! कि
साम्प्रदायिक हिंसा से आम जनता की रोजी-रोटी पर जो असर पड़ता है उसे न तो
सरकार पूरा कर पाती है !और न ही हिंसा के बीच गुजरे दिनों की भरपाई पूरी
हो पाती है !
भारत में धर्मनिरपेक्षता और संविधान :--
--------------------------------हमारे भारतीय संविधान के
अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ! जहाँ कई धर्मों को मानने वाले लोग
रहते हैं ! सबसे अहम बात ये है ! कि 1976 में धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान
के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में मान्य हुआ था ! भारत का
अपना कोई अधिकारिक धर्म न होने के कारण यहाँ सभी धर्मों का सम्मान किया
जाता है ! न तो किसी से धार्मिक भेदभाव और न ही किसी धर्म को बढ़ावा देते
है यहाँ के लोग !
भारत देश कि खूबी ये है कि हर व्यक्ति अपने पसन्द के किसी भी धर्म का
पालन और प्रचार का अधिकार रखता है ! देश के क़ानून की नजर में सभी नागरिक
एक बराबर है ! और न ही किसी सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई
धार्मिक अनुदेश लागू है !
साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के उपाय ;---
-------------------------------ध्यान देने योग्य ये है
! कि साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं अक्सर देखा गया है ! कि त्योहारों के
आस-पास ही होती है ! अतः सरकार को त्योहारों के समय चौकस हो जाना चाहिए !
और संवेदनशील इलाकों में पुलिस की चौकसी बढ़ाकर कुछ हद तक घटनाओं को रोका
जा सकता है ! भारत सरकार को चाहिए ! कि आम जनता की कठिनाइयों को समझे !
और बिना देर किये सभी दलों के सहयोग एवं सहमति के आधार पर संसद में
क़ानून बनाकर साम्प्रदायिक हिंसा पर नियंत्रण करें ! आंतकवाद ,हत्या
,भ्रष्टाचार ,अपरहण ,साम्प्रदायिक हिंसा किसी भी देश के विकास के लिए
वाधा है ! धर्म से जुड़ी  साम्प्रदायिक हिंसा बहुत ही खतरनाक होने के
साथ-साथ भारत की मिली जुली संस्क्रति पर हमला है ! किसी भी देश के लिए
परस्पर साम्प्रदायिक सौहाद्र का होना नितांत आवश्यक है ! आज के दौर में
समुदायों के बीच गलत विभाजन रेखा का विकास किया जा रहा है ! कुछ विदेशी
ताकतें भी आड़े आ रही है जो भारत की एकता , अखंडता को बनाये रखने में
बाधक है ! अक्टूबर 2011 में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बढ़ने से
केन्द्रीय ग्रहमंत्री पी. चिदंबरम ने मुख्यमंत्रियों को भेजे हुए पत्र
में साम्प्रदायिक एवं संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षाकी द्रष्टि से कड़ी
नजर रखने को कहा था ! पर सरकार समय से नहीं चेती ! और इसका खामियाजा
साम्प्रदायिक हिंसा पर कुर्बान हुये लोगो के परिवारों को भुगतना पड़ा !
ये सरकार की संवेदन हीनता की परकाष्ठा है ! सारे दल अपनी सरकार की
उपलब्धि बताते है !और ये कहते है ! कि हमारे कार्यकाल में साम्प्रदायिक
हिंसा , अपराध जैसे कोई कार्य नहीं होते है !  सरकार इस मसले को हलके में
लेती है ! क्योंकि उनेह तो सिर्फ कुर्सी से लगाव है ! साम्प्रदायिक हिंसा
का बुरा असर तो जनता पर ही होता है !
     










सुनीता दोहरे 

प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

महिला अध्यक्ष / शराबबंदी संघर्ष समिति 



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